⚖️ धोखाधड़ी से हुई शादी का खुलासा,, 💔 पति निकला नपुंसक, मानसिक रोग छिपाकर कराया विवाह,, 🏛️ फैमिली कोर्ट में पहुंची पत्नी, विवाह शून्य घोषित करने की मांग

इन्तजार रजा हरिद्वार ⚖️ धोखाधड़ी से हुई शादी का खुलासा,,
💔 पति निकला नपुंसक, मानसिक रोग छिपाकर कराया विवाह,,
🏛️ फैमिली कोर्ट में पहुंची पत्नी, विवाह शून्य घोषित करने की मांग
डेली लाइव उत्तराखण्ड – ब्यूरो/हरिद्वार:
हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में एक युवती ने पति और ससुराल पक्ष पर गंभीर आरोप लगाते हुए विवाह को शून्य घोषित करने के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। युवती का कहना है कि उसके साथ धोखाधड़ी कर शादी कराई गई, क्योंकि दूल्हे की असली स्थिति – मानसिक बीमारी और शारीरिक अक्षमता – को विवाह से पहले छिपा लिया गया था।
🚩 शादी के पहले दिन ही सामने आई सच्चाई
पीड़िता के अनुसार, विवाह के बाद जब पति से संबंध बनाने की कोशिश की गई तो उसने इनकार कर दिया। पति ने खुद स्वीकार किया कि वह इस मामले में सक्षम नहीं है और यहां तक कह दिया कि यदि पत्नी चाहे तो किसी और पुरुष से संबंध बना सकती है। यह सुनकर युवती स्तब्ध रह गई। जब उसने यह बात सास को बताई तो सास ने उसे चुप रहने के लिए मजबूर कर दिया।
🩺 इलाज की पोल खुली, नौकरी भी गई हाथ से
बाद में युवती को पता चला कि पति का लंबे समय से इलाज चल रहा है और परिवार वालों ने यह बात छिपाकर उसकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया। इतना ही नहीं, पति का असामान्य व्यवहार भी सामने आया। कभी वह पत्नी को बदनाम करने वाली बातें करता, तो कभी मोबाइल पर अजीबोगरीब मैसेज लिखकर स्टेटस पर डाल देता। इस मानसिक तनाव के चलते युवती का कामकाज प्रभावित हुआ और आखिरकार उसकी नौकरी भी चली गई।
⚖️ अदालत में दायर अर्जी और अगली सुनवाई
युवती ने अदालत में अर्जी दाखिल कर विवाह को शून्य घोषित करने की मांग की है। साथ ही उसने मुकदमे का खर्च दिलाने की भी गुहार लगाई है। कोर्ट ने मामला दर्ज कर लिया है और पति व ससुराल पक्ष को नोटिस जारी कर दिया है। अगली सुनवाई की तारीख तय कर दी गई है।
📜 कानूनी पहलू
इस तरह के मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(a) और (c) का विशेष महत्व है।
- धारा 12(1)(a) कहती है कि यदि विवाह के समय पति/पत्नी नपुंसक हो तो विवाह शून्य-योग्य (voidable) माना जाएगा।
- धारा 12(1)(c) के अनुसार, यदि विवाह से पहले किसी पक्ष ने अपने शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर जानकारी छिपाई हो, तो विवाह को धोखाधड़ी के आधार पर रद्द किया जा सकता है।
इसके अलावा, अदालत धारा 25 के तहत पत्नी को भरण-पोषण और मुकदमे का खर्च दिलाने का आदेश भी दे सकती है। ऐसे मामलों में अदालत अक्सर महिला की सुरक्षा और सामाजिक न्याय को ध्यान में रखकर फैसला सुनाती है।
🔎 समाज के लिए बड़ा सवाल
यह मामला न केवल एक युवती की व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि समाज में फैली उन कुप्रथाओं और धोखाधड़ी पर भी सवाल उठाता है, जिनमें विवाह जैसी पवित्र संस्था को भी छल-प्रपंच का माध्यम बना दिया जाता है। अब देखना होगा कि अदालत इस मामले में क्या रुख अपनाती है और पीड़िता को किस हद तक न्याय मिल पाता है।