चारधाम यात्रा में सबको मिले बराबरी का अधिकार, नैनीताल हाईकोर्ट ने गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक की याचिका की खारिज, सुरक्षा के नाम पर भेदभाव नहीं, संविधान की भावना को सर्वोपरि रखा गया

इन्तजार रजा हरिद्वार- चारधाम यात्रा में सबको मिले बराबरी का अधिकार,
नैनीताल हाईकोर्ट ने गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक की याचिका की खारिज,
सुरक्षा के नाम पर भेदभाव नहीं, संविधान की भावना को सर्वोपरि रखा गया

जनहित याचिका की पृष्ठभूमि और दलीलें
नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि चारधाम के मंदिरों — केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री — में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाई जाए। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में सुरक्षा को मुख्य आधार बनाते हुए कई पुराने आतंकी हमलों का हवाला दिया, जिनमें 2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमला, 2010 में वाराणसी के शीतला घाट पर बम विस्फोट, और हाल ही में पहलगाम में हुई हत्याएं शामिल थीं।
स्वरूप का तर्क था कि धार्मिक स्थलों पर पहले भी हमले हो चुके हैं, और तीर्थ यात्रा के समय इन स्थलों पर भारी भीड़ रहती है, जिससे किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी मांग की कि यात्रा के दौरान प्रत्येक मंदिर में पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात किए जाएं और तीर्थ यात्रियों की संख्या नियंत्रित की जाए।
हाईकोर्ट का फैसला — अधिकार और समानता की जीत
नैनीताल हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए एक बड़ा संदेश दिया है — भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और किसी धार्मिक स्थल पर किसी व्यक्ति को केवल उसके धर्म के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक कि मंदिर प्रबंधन स्वयं ऐसा कोई आंतरिक नियम न बनाएं जो संविधान के दायरे में हो।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि देश के कानून सबको बराबरी का अधिकार देते हैं, और संविधान में धर्म, जाति या भाषा के आधार पर भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं है। न्यायालय ने यह भी माना कि सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर किसी समुदाय विशेष को मंदिरों से बाहर रखने की मांग असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण है।
धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा — एक जरूरी पहलू
हालांकि याचिका खारिज की गई, लेकिन कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से यह जरूर माना कि चारधाम जैसे अतिसंवेदनशील और भीड़भाड़ वाले तीर्थ स्थलों की सुरक्षा को हल्के में नहीं लिया जा सकता। उत्तराखंड सरकार और संबंधित प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि यात्रा मार्गों पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था हो, सीसीटीवी कैमरे, बैरिकेडिंग, चिकित्सकीय सुविधा, और आपातकालीन सेवा हर स्थान पर उपलब्ध हो।
केंद्र और राज्य सरकारों के पास आधुनिक तकनीक और संसाधनों की कोई कमी नहीं है। उन्हें केवल एक समन्वित रणनीति के तहत तीर्थ स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, जिसमें श्रद्धालुओं की सुविधा और धार्मिक भावनाओं का सम्मान भी शामिल हो।
क्या धार्मिक स्थलों पर प्रवेश का धर्म से संबंध होना चाहिए?
यह सवाल भारतीय समाज की उस गहराई तक जाता है जहां धर्म, परंपरा और आधुनिक संविधान एक साथ चलते हैं। भारत का संविधान सभी नागरिकों को धर्म के पालन, प्रचार और पालन की स्वतंत्रता देता है। यह अधिकार केवल किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है। चारधाम यात्रा भले ही हिंदू धर्म की आस्था का बड़ा केंद्र हो, लेकिन इसका भारतीय संस्कृति में एक सार्वभौमिक स्थान है।
इतिहास गवाह है कि विभिन्न धर्मों के लोगों ने एक-दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान किया है। चाहे अमृतसर का स्वर्ण मंदिर हो या अजमेर की दरगाह, हर धार्मिक स्थल पर सभी धर्मों के लोगों ने समान श्रद्धा से नमन किया है। यदि गैर-हिंदू श्रद्धा और भक्ति के साथ चारधाम के दर्शन करना चाहें, तो उन्हें रोकना भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत के खिलाफ होगा।
समरसता और सुरक्षा दोनों जरूरी
नैनीताल हाईकोर्ट का फैसला केवल एक याचिका को खारिज करना नहीं था, बल्कि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और सामाजिक समरसता की पुष्टि भी थी। किसी भी धार्मिक स्थल पर सुरक्षा बेहद आवश्यक है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर धार्मिक भेदभाव करना न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि समाज में विभाजन की भावना भी पैदा कर सकता है।
चारधाम यात्रा को शांति, एकता और श्रद्धा का पर्व बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। श्रद्धालु किसी भी धर्म से हों, यदि उनका उद्देश्य आस्था, सेवा और सम्मान है, तो देवभूमि उत्तराखंड उन्हें खुली बाहों से स्वीकार करे — यही भारतीयता की पहचान है।