मनरेगा में महा घोटाला: क्या हरिद्वार की साख पर पड़ा भ्रष्टाचार का दाग 82 मेट बर्खास्त, 50 VDO अधिकारी-सेवक घेरे में गरीबों की रोज़गार योजना बनी लूट का अड्डा, प्रशासन ने कसी कमर, कागज़ों में काम, ज़मीन पर सन्नाटा, घोटाले का खुलासा: हर ब्लॉक में फर्जीवाड़ा, कार्रवाई की शुरुआत: मेटों पर गिरी गाज, अब VDO भी लपेटे में नोटिस हुए जारी, निगरानी तंत्र पर उठे सवाल, गरीबों की योजना बनी भ्रष्टाचारियों की मलाई, हाई लेवल जांच की मांग
मुख्य विकास अधिकारी हरिद्वार आकांक्षा कोण्डे ने साफ निर्देश दिए हैं कि किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। मनरेगा की छवि को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी भरपाई केवल कठोर कार्रवाई से ही संभव है। पाई पाई का होगा हिसाब?

इन्तजार रजा हरिद्वार- मनरेगा में महा घोटाला: क्या हरिद्वार की साख पर पड़ा भ्रष्टाचार का दाग
82 मेट बर्खास्त, 50 VDO अधिकारी-सेवक घेरे में
गरीबों की रोज़गार योजना बनी लूट का अड्डा, प्रशासन ने कसी कमर, कागज़ों में काम, ज़मीन पर सन्नाटा, घोटाले का खुलासा: हर ब्लॉक में फर्जीवाड़ा, कार्रवाई की शुरुआत: मेटों पर गिरी गाज, अब VDO भी लपेटे में नोटिस हुए जारी, निगरानी तंत्र पर उठे सवाल, गरीबों की योजना बनी भ्रष्टाचारियों की मलाई, हाई लेवल जांच की मांग

हरिद्वार जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के नाम पर जो घोटाला सामने आया है, उसने पूरे शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मनरेगा का मकसद था ग्रामीण क्षेत्र के गरीब और बेरोजगार लोगों को साल में 100 दिन का रोज़गार देना, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट निकली। इस योजना को कुछ भ्रष्ट मेट, ग्राम रोजगार सेवक, ग्राम विकास अधिकारी और संभवतः ऊपरी स्तर तक के लोगों ने लूट का जरिया बना लिया। जिला प्रशासन की जांच में सामने आया है कि मनरेगा के तहत कई काम सिर्फ कागजों में हुए। ज़मीनी स्तर पर न काम हुआ, न मजदूर पहुंचे, लेकिन उपस्थिति रजिस्टर में फर्जी हस्ताक्षर कराकर लाखों-करोड़ों रुपये निकाल लिए गए।
कागज़ों में काम, ज़मीन पर सन्नाटा
जांच रिपोर्ट के अनुसार, जिन योजनाओं को सरकारी रिकॉर्ड में “पूरा” दिखाया गया है, उन स्थानों पर न तो मिट्टी खुदी, न श्रमिक नजर आए। डिजिटल उपस्थिति प्रणाली (NMMS) का भी गलत इस्तेमाल हुआ। जीपीएस आधारित हाजिरी प्रणाली को दरकिनार कर, पुराने फोटो या गलत लोकेशन से हाजिरी दर्ज कर दी गई।
नियम के अनुसार, हर कार्य की शुरुआत और पूर्णता के समय फोटोग्राफ्स अपलोड करना अनिवार्य है, लेकिन या तो फोटोज़ अपलोड ही नहीं किए गए, या पुरानी तस्वीरों को दोबारा इस्तेमाल किया गया। इससे साफ पता चलता है कि योजनाएं कागजों में ही बनाई और पूरी कर दी गईं, ताकि पैसे की निकासी आसान हो सके।
घोटाले का खुलासा: हर ब्लॉक में फर्जीवाड़ा
प्रशासन की जांच में सबसे अधिक गड़बड़ी रुड़की और लक्सर ब्लॉक में पाई गई। अकेले रुड़की ब्लॉक से 45 मेटों को हटाया गया, जबकि लक्सर से 29 मेटों की सेवाएं समाप्त की गईं। अन्य ब्लॉकों की स्थिति भी चिंताजनक रही।
क्र० | विकास खण्ड का नाम | कार्य से पृथक किये गये मेटों की संख्या | ग्राम विकास अधिकारी को कारण बताओ नोटिस की संख्या |
---|---|---|---|
1 | बहादराबाद | 10 | 06 |
2 | भगवानपुर | 07 | 07 |
3 | खानपुर | 0 | 06 |
4 | लक्सर | 29 | 07 |
5 | नारसन | 12 | 07 |
6 | रूड़की | 40 | 09 |
योग | 98 | 42 |
इसके अतिरिक्त, 50 से अधिक ग्राम विकास अधिकारियों और रोजगार सेवकों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। इन सभी से 3 दिन के भीतर संतोषजनक जवाब मांगा गया है। जिला प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया, तो निलंबन और एफआईआर तक की कार्रवाई की जाएगी।
कैसे हुआ यह घोटाला? पांच प्रमुख तरीकों से फर्जीवाड़ा
- डिजिटल हाजिरी में हेराफेरी:
NMMS ऐप के तहत श्रमिकों की उपस्थिति रीयल टाइम में ली जानी थी, लेकिन कई मामलों में या तो हाजिरी नहीं ली गई, या फर्जी लोकेशन से फोटो खींचकर अपलोड कर दिया गया। - फर्जी हस्ताक्षर से भुगतान:
मजदूरों की उपस्थिति रजिस्टर में नकली हस्ताक्षर कर दिए गए और उस आधार पर कार्य ‘पूरा’ मान लिया गया, जिससे लाखों रुपये का भुगतान हो गया। - तस्वीरों में धांधली:
कार्य स्थल की फोटो अपलोड नहीं की गईं। जहां की गईं, वहां पुरानी या किसी और जगह की तस्वीरें इस्तेमाल की गईं। इससे निगरानी प्रणाली को भी धोखा मिला। - मृत/प्रवासी मजदूरों के नाम पर फर्जी उपस्थिति:
जिन मजदूरों की मृत्यु हो चुकी थी, या जो लंबे समय से क्षेत्र में नहीं थे, उनके नाम पर भी कार्यदायी गतिविधियां दर्शाकर पैसा निकाला गया। - स्थलीय निरीक्षण में खुलासा:
जांच टीमों द्वारा स्थल पर पहुंचने पर न तो कोई कार्य मिला, न मजदूर। सरकारी रिकॉर्ड में जो काम ‘पूरा’ बताया गया था, वह जमीन पर कहीं मौजूद नहीं था।
कार्रवाई की शुरुआत: मेटों पर गिरी गाज, अब VDO भी लपेटे में
जिला विकास अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार 82 मेटों को बर्खास्त कर दिया गया है। इसके अलावा 03 बीएफटी, 19 ग्राम रोजगार सेवक, 42 ग्राम विकास अधिकारी और कुछ संबंधित ग्राम प्रधानों को नोटिस थमाए गए हैं। कुछ मामलों में दोषियों के खिलाफ मनरेगा दिशा-निर्देशों के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई भी शुरू हो चुकी है।
मुख्य विकास अधिकारी आकांक्षा कोण्डे ने साफ निर्देश दिए हैं कि किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। मनरेगा की छवि को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी भरपाई केवल कठोर कार्रवाई से ही संभव है।
निगरानी तंत्र पर उठे सवाल
यह सवाल बेहद गंभीर है कि जब हर कार्य की जानकारी ब्लॉक और जिला स्तर पर जाती है, तब इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई? क्या ऊपरी अधिकारियों की मिलीभगत इसमें शामिल थी? या फिर जानबूझकर निगरानी को नजरअंदाज किया गया? यदि जांच निष्पक्ष हुई, तो इस बात की पूरी संभावना है कि जिले के कई वरिष्ठ अधिकारी भी इस घोटाले की चपेट में आ सकते हैं। यह भ्रष्टाचार केवल नीचले स्तर पर सीमित नहीं लगता।
व्यापक जांच की मांग
हरिद्वार जिले का यह मामला पूरे राज्य के लिए एक चेतावनी है। यदि इसी तरह अन्य जिलों की भी गहन जांच की जाए, तो और बड़े घोटाले सामने आ सकते हैं।
शासन को चाहिए कि:
- राज्यभर में विशेष जांच अभियान चलाया जाए।
- स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सभी जिलों के मनरेगा कार्यों का ऑडिट कराया जाए।
- दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाए और जेल भेजा जाए।
गरीबों की योजना बनी भ्रष्टाचारियों की मलाई
मनरेगा जैसी जनकल्याणकारी योजना को इस तरह से बर्बाद करना केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि नैतिक अपराध भी है। यह गरीबों के हक पर डाका है। जिन मजदूरों को योजना का लाभ मिलना था, उनकी जगह कागजों में फर्जी नामों से पैसा उठाकर निजी जेबें भरी गईं।अब समय आ गया है कि सरकार इस पूरे मामले को गंभीरता से ले। मनरेगा जैसी योजनाओं की साख को बचाना है, तो हर स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। वरना हर साल गरीबों के नाम पर करोड़ों की लूट यूं ही चलती रहेगी, और असली हकदार यूं ही भूखे पेट सोते रहेंगे।