दरगाह पिरान कलियर में गोलक गिनती गबन/घोटाले पर कड़ी कार्रवाई!,, सुपरवाइजर राव सिकंदर हुसैन निलंबित — लेकिन अब बड़ा सवाल — आखिर इस निलंबन पर इतनी “हाय-तौबा” क्यों मच रही है? बहाली पर दो-तीन दिन में ही मंथन क्यों? एक निलंबन, और रुड़की से देहरादून तक सियासत में मचा घमासान!

इन्तजार रजा हरिद्वार- दरगाह पिरान कलियर में गोलक गिनती गबन/घोटाले पर कड़ी कार्रवाई!,,
सुपरवाइजर राव सिकंदर हुसैन निलंबित —
लेकिन अब बड़ा सवाल — आखिर इस निलंबन पर इतनी “हाय-तौबा” क्यों मच रही है? बहाली पर दो-तीन दिन में ही मंथन क्यों?
एक निलंबन, और रुड़की से देहरादून तक सियासत में मचा घमासान!
दरगाह पिरान कलियर में गोलक गिनती के दौरान सामने आई गड़बड़ी ने प्रशासनिक गलियारों में भूचाल ला दिया है। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रूड़की दीपक रामचंद्र सेठ ने सुपरवाइजर राव सिकंदर हुसैन को तत्काल प्रभाव से निलंबित करते हुए स्पष्ट किया कि धार्मिक संस्थान में पारदर्शिता सर्वोच्च प्राथमिकता है।
दरगाह कार्यालय में हुए इस एक्शन से जहां वक्फ प्रबंधन ने एक सख्त संदेश दिया है, वहीं दूसरी ओर इस निलंबन के बाद मची “राजनीतिक और प्रशासनिक हायतौबा” अब नए सवाल खड़े कर रही है।
एक निलंबन, और देहरादून तक सियासत में मचा घमासान!
दरगाह दफ्तर के एक सुपरवाइजर के निलंबन पर रुड़की से लेकर देहरादून तक अचानक सक्रियता बढ़ गई है।
सूत्रों का कहना है कि कुछ प्रभावशाली राजनीतिक और धार्मिक हस्तियां अब राव सिकंदर हुसैन की बहाली के लिए दबाव बनाने में जुट गई हैं।
विभागीय सूत्रों के अनुसार, निलंबन आदेश जारी होने के कुछ ही घंटों में देहरादून स्थित उच्च कार्यालयों से लगातार फोन कॉल्स शुरू हो गए। सवाल यह है कि —
एक साधारण सुपरवाइजर की बहाली को लेकर इतना मंथन आखिर क्यों?
क्या सुपरवाइजर की दरगाह दफ्तर में जड़ें बहुत गहरी हैं?
दरगाह पिरान कलियर का प्रशासनिक ढांचा लंबे समय से सवालों के घेरे में रहा है। करीब दस सालों से कुछ चुनिंदा बाबू और सुपरवाइजर ही दफ्तर की कुर्सियों पर जमे हुए हैं।
स्थानीय लोग और श्रद्धालु लगातार पूछते रहे हैं — “दरगाह दफ्तर में स्थायी बाबू की नियुक्ति क्यों नहीं होती? हर बार वही चेहरे क्यों बने रहते हैं?”
राव सिकंदर हुसैन भी इन्हीं “स्थायी चेहरों” में से एक थे, जिनके पास वर्षों से गोलक से जुड़ा पूरा नियंत्रण माना जाता था। यही कारण है कि जब कार्रवाई हुई, तो कई गुटों के हित प्रभावित हुए।
क्या है असल मिल्क मशीन’ का खेल — किसे डर है पारदर्शिता से?
दरगाह से जुड़े सूत्रों ने बताया कि गोलक की आय और दान प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी लंबे समय से शिकायत का विषय रही है। हर गिनती के बाद रकम का हिसाब केवल कुछ सीमित लोगों तक ही पहुंचता था।
अब जब ज्वाइंट मजिस्ट्रेट दीपक रामचंद्र सेठ ने जीरो टॉलरेंस नीति लागू की और जांच बैठा दी, तब “सुविधा प्राप्त” वर्ग के लिए यह कदम खतरे की घंटी बन गया।
इसी वजह से अब कहा जा रहा है कि —
“कहीं राव सिकंदर हुसैन वही ‘मिल्क मशीन’ तो नहीं, जिससे कई हाथ वर्षों से लाभ उठा रहे थे?”
वक्फ प्रबंधन की सख्ती — पारदर्शिता की नई दिशा
वक्फ प्रबंधन ने इस पूरे मामले में स्पष्ट कहा है कि “जो भी अनियमितता में लिप्त पाया जाएगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।”
, “यह सिर्फ एक निलंबन नहीं, बल्कि पारदर्शी शासन की दिशा में निर्णायक कदम है। जो भी व्यक्ति दरगाह की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।” वक्फ बोर्ड को पूरी जांच रिपोर्ट भेजी जा सकती है ताकि उच्च स्तर पर जवाबदेही तय की जा सके।
सवाल अब भी बरकरार…
- क्या दरगाह दफ्तर में वर्षों से जमे “स्थायी चेहरों” के नेटवर्क का पर्दाफाश होने जा रहा है?
- राव सिकंदर हुसैन की बहाली को लेकर इतना दबाव क्यों?
- क्या गोलक से जुड़ी फाइलों में छिपे हैं वो राज, जिनसे कई लोगों की नींद उड़ गई है?
दरगाह पिरान कलियर में गोलक गिनती घोटाले के बाद हुआ यह निलंबन सिर्फ एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि उस सिस्टम की जड़ों को हिलाने वाला कदम है, जो वर्षों से कुछ हाथों के इशारों पर चल रहा था।
अब हर निगाह इस बात पर टिकी है कि — क्या वक्फ प्रशासन वास्तव में इस पारदर्शिता की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाएगा, या फिर पुराने रसूखदारों की “हायतौबा” के आगे सिस्टम एक बार फिर झुक जाएगा।