दरगाह पिरान कलियर दानपात्र गबन घोटाला: सुपरवाइजर राव सिकंदर हुसैन निलंबित के बाद — लेकिन बहाली की कोशिशें क्यों तेज़? मुकदमा दर्ज क्यों नहीं,, सीईओ ने अपने पत्र मे आखिर क्या लिखा होगा,, निलंबन के बाद सियासी हलचल तेज़ — क्या गोलक गिनती घोटाले की फाइल बिना मुकदमे के बंद हो जाएगी?,, धामी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर उठे सवाल — पारदर्शिता की परीक्षा में फंसा वक्फ प्रशासन!,, निलंबन के बाद अब बढ़ा “फोन प्रेशर” — बहाली पर क्यों हो रहा बार-बार मंथन?,, ‘मिल्क मशीन’ का खेल —तो पारदर्शिता से डर क्यों?,, धामी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति की परीक्षा!
दरगाह पिरान कलियर में गोलक गिनती के दौरान सामने आए गबन/घोटाले ने प्रशासन और वक्फ दोनों के लिए नई मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रुड़की दीपक रामचंद्र सेठ द्वारा सुपरवाइजर राव सिकंदर हुसैन को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का फैसला जहां पारदर्शिता की दिशा में सख्त कदम माना जा रहा है, वहीं अब इसी निलंबन को लेकर देहरादून से लेकर रुड़की तक सियासी और प्रशासनिक गलियारों में खलबली मच गई

इन्तजार रजा हरिद्वार- दरगाह पिरान कलियर दानपात्र गबन घोटाला: सुपरवाइजर राव सिकंदर हुसैन निलंबित के बाद — लेकिन बहाली की कोशिशें क्यों तेज़? मुकदमा दर्ज क्यों नहीं,, सीईओ ने अपने पत्र मे आखिर क्या लिखा होगा,,
निलंबन के बाद सियासी हलचल तेज़ — क्या गोलक गिनती घोटाले की फाइल बिना मुकदमे के बंद हो जाएगी?,,
धामी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर उठे सवाल — पारदर्शिता की परीक्षा में फंसा वक्फ प्रशासन!,,
निलंबन के बाद अब बढ़ा “फोन प्रेशर” — बहाली पर क्यों हो रहा बार-बार मंथन?,,
‘मिल्क मशीन’ का खेल —तो पारदर्शिता से डर क्यों?,,
धामी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति की परीक्षा!

दरगाह पिरान कलियर में गोलक गिनती के दौरान सामने आए गबन/घोटाले ने प्रशासन और वक्फ दोनों के लिए नई मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रुड़की दीपक रामचंद्र सेठ द्वारा सुपरवाइजर राव सिकंदर हुसैन को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का फैसला जहां पारदर्शिता की दिशा में सख्त कदम माना जा रहा है, वहीं अब इसी निलंबन को लेकर देहरादून से लेकर रुड़की तक सियासी और प्रशासनिक गलियारों में खलबली मच गई है।
निलंबन के बाद अब बढ़ा “फोन प्रेशर” — बहाली पर क्यों हो रहा बार-बार मंथन?
सूत्रों के अनुसार, राव सिकंदर हुसैन के निलंबन के कुछ ही घंटों के भीतर देहरादून स्थित उच्च अधिकारियों के फोन लगातार वक्फ कार्यालय और स्थानीय प्रशासन तक पहुंचने लगे। सवाल यह है कि —
“एक साधारण सुपरवाइजर की बहाली पर इतना दबाव आखिर क्यों?” दरअसल, राव सिकंदर हुसैन लंबे समय से दरगाह कार्यालय में एक प्रभावशाली भूमिका में रहे हैं। बताया जाता है कि गोलक गिनती और नकद प्रबंधन से जुड़ी फाइलों पर उनका विशेष नियंत्रण था। कई वर्षों से वह उसी पद पर बने हुए थे, और स्थानीय श्रद्धालु भी यह सवाल उठाते रहे हैं कि दरगाह दफ्तर में हर बार वही चेहरे क्यों दिखाई देते हैं?
‘मिल्क मशीन’ का खेल —तो पारदर्शिता से डर क्यों?
दरगाह के सूत्रों के अनुसार, गोलक की रकम और दान की गिनती में पारदर्शिता की कमी लंबे समय से शिकायत का विषय रही है। कहा जाता है कि हर गिनती के बाद रकम की पूरी जानकारी केवल कुछ सीमित लोगों तक ही सीमित रहती थी। अब जब ज्वाइंट मजिस्ट्रेट दीपक रामचंद्र सेठ ने जीरो टॉलरेंस नीति लागू करते हुए सीधे कार्रवाई की, तो उन लोगों की बेचैनी बढ़ गई जिनके “हित” इस व्यवस्था से जुड़े थे। लोगों में चर्चा है कि —
“कहीं राव सिकंदर हुसैन वही ‘मिल्क मशीन’ तो नहीं, जिससे कई हाथ वर्षों से लाभान्वित हो रहे थे?”
अब बड़ा सवाल — मुकदमा दर्ज क्यों नहीं?
निलंबन के बाद जनता के मन में यह सवाल सबसे बड़ा बनकर उभरा है कि क्या निलंबन ही पर्याप्त कार्रवाई है?
अगर दरगाह की गोलक गिनती में वित्तीय गड़बड़ी सामने आई है, तो फिर इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हेतु मुकदमा दर्ज क्यों नहीं कराया जा रहा है?
क्या वर्षों की कुर्सी और रसूख दरगाह के ऊपर भारी पड़ रहा है? लोगों का मानना है कि अगर यह मामला सिर्फ निलंबन तक सीमित रहा, तो यह कार्रवाई केवल “औपचारिक कदम” बनकर रह जाएगी। जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली सरकार को इस मामले में एफआईआर दर्ज कर पारदर्शी जांच सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि धार्मिक संस्थान में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह न बचे।
वक्फ प्रशासन की स्थिति असमंजस में — सख्ती या समझौता?
वक्फ बोर्ड के सूत्र बताते हैं कि जांच रिपोर्ट उच्च स्तर पर भेजे जाने की तैयारी है। बोर्ड के अधिकारी कहते हैं कि “जो भी व्यक्ति दरगाह की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।” लेकिन साथ ही यह भी साफ है कि अब इस पूरे मामले में कई रसूखदारों की निगाहें वक्फ की अगली चाल पर टिकी हैं। यदि वक्फ बोर्ड इस मामले में सख्ती दिखाता है, तो यह धार्मिक संस्थानों में पारदर्शिता के नए युग की शुरुआत साबित होगी। लेकिन यदि राजनीतिक और व्यक्तिगत दबाव के चलते राव सिकंदर हुसैन की बहाली होती है, तो यह वक्फ प्रशासन की साख पर गहरी चोट होगी।
धामी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति की परीक्षा!
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार “जीरो टॉलरेंस” शासन की बात करते हैं। लेकिन अब सवाल यह है कि दरगाह घोटाले जैसे संवेदनशील धार्मिक मामलों में क्या वही सख्ती दिखाई देगी?
क्योंकि अगर बिना मुकदमा दर्ज किए फाइलें बंद कर दी जाती हैं, तो यह संदेश जाएगा कि “निलंबन ही समझौते का माध्यम बन गया।”
सवाल जो अब भी बरकरार हैं —
- क्या दरगाह दफ्तर में वर्षों से जमे “स्थायी चेहरों” का नेटवर्क अब खुलकर सामने आएगा?
- राव सिकंदर हुसैन की बहाली को लेकर इतना दबाव आखिर क्यों?
- क्या गोलक गिनती की फाइलों में ऐसे राज छिपे हैं जिनसे कई लोगों की नींद उड़ गई है?
- और सबसे अहम — क्या धामी सरकार इस घोटाले में सचमुच जीरो टॉलरेंस दिखाएगी या फिर सिस्टम पुरानी राह पर लौट आएगा?
दरगाह पिरान कलियर में गोलक गिनती घोटाले के बाद हुआ यह निलंबन सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि उस गहरे जड़ें जमा चुके सिस्टम के खिलाफ चेतावनी है जो वर्षों से कुछ रसूखदार हाथों के इशारों पर चलता रहा है। अब देखना यह है कि —
“पारदर्शिता की इस लड़ाई में वक्फ प्रशासन और सरकार सच के साथ खड़ी होती है या समझौते की परछाई में दब जाती है।”