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उत्तरांचल पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने अधिशासी अभियंता पदों पर लंबित पदोन्नति को लेकर एमडी यूपीसीएल को सौंपा पत्र उच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना पर नाराज़ अभियंताओं ने दी आंदोलन और अवमानना याचिका की चेतावनी

“पदोन्नति दो या अदालत में मिलो!”—इंजीनियरों के सब्र का बांध टूटा, न्यायालय के आदेश के बाद भी पदोन्नति अधर में! उम्मीदों की बिजली, न्याय की चमक जब इंजीनियर्स बोले - 'अब नहीं सहेंगे अन्याय!' यूपीसीएल के गलियारों में गूंजा – 'पदोन्नति दो या अदालत में मिलो' यह बिजली की कहानी नहीं, न्याय की मांग है – और जब इंजीनियर आंदोलन पर उतरें, तो समझिए सिस्टम में ज़रूर शॉर्ट सर्किट हो चुका है।

इन्तजार रजा हरिद्वार- उत्तरांचल पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने अधिशासी अभियंता पदों पर लंबित पदोन्नति को लेकर एमडी यूपीसीएल को सौंपा पत्र
उच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना पर नाराज़ अभियंताओं ने दी आंदोलन और अवमानना याचिका की चेतावनी
“पदोन्नति दो या अदालत में मिलो!”—इंजीनियरों के सब्र का बांध टूटा,
न्यायालय के आदेश के बाद भी पदोन्नति अधर में! उम्मीदों की बिजली, न्याय की चमक
जब इंजीनियर्स बोले – ‘अब नहीं सहेंगे अन्याय!’
यूपीसीएल के गलियारों में गूंजा – ‘पदोन्नति दो या अदालत में मिलो’ यह बिजली की कहानी नहीं, न्याय की मांग है – और जब इंजीनियर आंदोलन पर उतरें, तो समझिए सिस्टम में ज़रूर शॉर्ट सर्किट हो चुका है।

इन्तजार रजा हरिद्वार, 30 अप्रैल:
उत्तराखंड पावर कॉरिडोर में इन दिनों गर्मी सिर्फ मौसम की नहीं, बल्कि इंजीनियरों की नाराजगी की भी है। उत्तरांचल पॉवर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने यूपीसीएल प्रबंधन को ऐसा करंट वाला पत्र भेजा है, जिसने प्रशासन की नींद उड़ा दी है। वर्षों से अधिशासी अभियंता के पदों पर खाली पड़ी कुर्सियों की कहानी अब चुपचाप नहीं सुनी जाएगी—अब यह गाथा न्याय की गूंज के साथ न्यायालय तक पहुँच चुकी है।

न्यायालय के आदेश के बाद भी पदोन्नति अधर में!

जिस देश में अदालत के फैसले संविधान से कम नहीं माने जाते, वहाँ उत्तराखंड में इंजीनियरों के फैसलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। उत्तरांचल पॉवर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने साफ शब्दों में यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक को अवगत कराया कि माननीय उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश के बावजूद, सीधी भर्ती से आए सहायक अभियंताओं को अधिशासी अभियंता की पदोन्नति नहीं दी गई है।

वर्ष 2018 में ही पदोन्नत सहायक अभियंताओं को ऊपर चढ़ा दिया गया, लेकिन सीधी भर्ती के अभियंताओं की फ़ाइलें अभी भी धूल फांक रही हैं। एसोसिएशन का कहना है कि यह न सिर्फ अन्याय है बल्कि पूरे सिस्टम की निष्क्रियता का आईना भी है।

दबाव की राजनीति बनाम संवैधानिक अधिकार

एसोसिएशन ने यह भी कहा कि जो अभियंता प्रबंधन पर दबाव बनाकर पदोन्नति मांग रहे हैं, उनका माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से कोई लेना-देना ही नहीं है। यहाँ सवाल सिर्फ एक पद की नहीं, बल्कि उस न्याय की है जो सालों से इंतज़ार में है। दबाव की राजनीति अगर नियोजन प्रक्रिया में हस्तक्षेप करेगी, तो फिर योग्यता का क्या स्थान रह जाएगा?

एसोसिएशन का यह पत्र किसी धमकी की तरह नहीं, बल्कि चेतावनी की तरह है – “अब और नहीं!” यदि समय रहते पदोन्नति नहीं हुई तो अदालत में अवमानना याचिका तो जाएगी ही, आंदोलन की गूंज भी पूरे प्रदेश में सुनाई देगी।

समिति का कार्यकाल समाप्त, धैर्य भी समाप्त

इस मामले में खास बात यह है कि विवाद सुलझाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति भी बनाई गई थी, जिसने एक समयसीमा में हल देने का वादा किया था। लेकिन समिति की समयसीमा भी बीत गई, और अब तो माननीय उच्च न्यायालय द्वारा तय की गई 8 सप्ताह की अवधि भी समाप्त हो चुकी है।

मतलब – ‘न समिति रही, न समाधान। न जवाब मिला, न सम्मान।’
अब बचा है तो सिर्फ आंदोलन का रास्ता और न्यायालय की दहलीज।

अभियंताओं के सब्र का बांध टूटा तो…

उत्तरांचल पॉवर इंजीनियर्स एसोसिएशन की ओर से यह साफ संकेत दे दिया गया है कि यदि अब भी प्रबंधन आँख मूँद कर बैठा रहा, तो उसे इसका जवाब न्यायालय और सड़कों – दोनों जगह सुनना होगा। इंजीनियर अब सिर्फ योजनाओं का निर्माण नहीं करेंगे, बल्कि न्याय की नई रेखाएं भी खींचेंगे।

जनता का सवाल – जब कुर्सियाँ खाली हैं, तो पदोन्नति क्यों नहीं?

जनता के बीच भी यह सवाल तेजी से उठने लगा है – जब अधिशासी अभियंता के पद खाली हैं, तो योग्य अभियंताओं को आगे क्यों नहीं बढ़ाया जा रहा? क्या यह बिजली विभाग की सुस्त कार्यशैली का एक और उदाहरण नहीं है? और यदि योग्य अभियंता नहीं बढ़ेंगे, तो परियोजनाओं का क्या होगा?

आखिरी करंट – ‘पदोन्नति दो, वरना मुकदमा लो!’

एसोसिएशन का रुख अब एकदम स्पष्ट है – या तो न्यायालय के आदेश का सम्मान करें और योग्य अभियंताओं को उनका हक दें, या फिर माननीय उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका का सामना करें। और अगर ये भी न सुना गया, तो सड़कों पर संघर्ष तय है।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है कि उत्तराखंड में अब सरकारी चुप्पी नहीं चलेगी, और कर्मचारी अपने अधिकारों के लिए पूरी ताकत से सामने आएंगे।


यह बिजली की कहानी नहीं, न्याय की मांग है – और जब इंजीनियर आंदोलन पर उतरें, तो समझिए सिस्टम में ज़रूर शॉर्ट सर्किट हो चुका है

 

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