उत्तराखंड प्रशासन में बड़ा झटका: 2004 बैच के IAS बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने मांगा VRS, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्जी ने बढ़ाई हलचल, पारिवारिक कारण या निजी क्षेत्र का आकर्षण? पहले भी कई अधिकारी छोड़ चुके हैं समय से पहले सेवा, जानें किन-किन नामों ने किया हैरान, क्या ब्यूरोक्रेसी में पोस्टिंग पॉलिटिक्स का साइड इफेक्ट?, क्या सोचने को मजबूर करता है ये फैसला ?

इन्तजार रजा हरिद्वार- उत्तराखंड प्रशासन में बड़ा झटका: 2004 बैच के IAS बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने मांगा VRS,
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्जी ने बढ़ाई हलचल, पारिवारिक कारण या निजी क्षेत्र का आकर्षण?
पहले भी कई अधिकारी छोड़ चुके हैं समय से पहले सेवा, जानें किन-किन नामों ने किया हैरान, क्या ब्यूरोक्रेसी में पोस्टिंग पॉलिटिक्स का साइड इफेक्ट?, क्या सोचने को मजबूर करता है ये फैसला ?
ब्यूरो रिपोर्ट:
उत्तराखंड शासन में एक बार फिर प्रशासनिक हलकों में चर्चा का बाजार गर्म है। इस बार चर्चा का केंद्र हैं 2004 बैच के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बीवीआरसी पुरुषोत्तम, जिन्होंने अचानक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) के लिए आवेदन कर दिया है। यह फैसला न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि राज्य की ब्यूरोक्रेसी में व्याप्त अंदरूनी हालातों की ओर भी इशारा करता है।
बीवीआरसी पुरुषोत्तम इस समय पशुपालन और मत्स्य विभाग के सचिव के पद पर तैनात हैं। वे एक कर्मठ और निष्पक्ष अफसर के तौर पर जाने जाते हैं, जिन्होंने अब तक अपने दायित्वों को निष्ठा से निभाया है। लेकिन अब, जब उनके रिटायरमेंट में 12 साल बाकी हैं, उनका VRS की अर्जी देना कई सवाल खड़े कर रहा है।
पारिवारिक कारण या अन्य कोई बेहतर विकल्प?
पुरुषोत्तम ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का कारण पारिवारिक जिम्मेदारियां बताया है, लेकिन सूत्रों की मानें तो इसके पीछे की कहानी कुछ और है। बताया जा रहा है कि उनके पास अपने मूल राज्य आंध्र प्रदेश में निजी क्षेत्र में बेहतर अवसर उपलब्ध हैं, जिनमें वे भविष्य देख रहे हैं।
गौरतलब है कि पुरुषोत्तम ने पहले ही भारत सरकार से इंटर स्टेट डेपुटेशन के तहत आंध्र प्रदेश जाने की मांग की थी, जिसके लिए उत्तराखंड सरकार ने उन्हें NOC भी प्रदान कर दी थी। मगर भारत सरकार के कड़े नियमों के कारण उनका डेपुटेशन मंजूर नहीं हुआ। इसके बाद ही उन्होंने VRS लेने का फैसला किया।
यह घटना साफ दिखाती है कि केंद्र और राज्य के बीच ब्यूरोक्रेटिक प्रक्रियाओं की जटिलता कभी-कभी अच्छे अधिकारियों को हतोत्साहित कर देती है। जब एक सीनियर अफसर, जिसकी सेवा का लंबा अनुभव हो और जिसके पास काम करने की ऊर्जा हो, सेवा छोड़ने पर मजबूर हो—तो यह एक गहरी चिंता का विषय है।
उत्तराखंड में पहले भी अफसरों ने लिया VRS
बीवीआरसी पुरुषोत्तम इस कड़ी के पहले अधिकारी नहीं हैं। उत्तराखंड में इससे पहले भी कई आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों ने समय से पहले सेवा छोड़ने का फैसला किया है।
उमाकांत पंवार, एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, ने अपनी सेवा से लगभग 10 साल पहले ही वीआरएस ले लिया था। इसके बाद उनकी पत्नी मनीषा पंवार ने भी स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर वीआरएस ले लिया।
राकेश कुमार, जो बाद में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKPSC) के अध्यक्ष बने, उन्होंने भी समय से पहले वीआरएस ले लिया था। भूपेंद्र कौर औलख, आईपीएस वी विनय कुमार, और हाल ही में आईएफएस मनोज चंद्रन ने भी इसी राह को चुना।
इससे यह समझा जा सकता है कि उत्तराखंड प्रशासन में कहीं न कहीं ऐसी स्थितियां बन रही हैं, जो अधिकारियों को सेवा से विमुख कर रही हैं।
ब्यूरोक्रेसी में पोस्टिंग पॉलिटिक्स का साइड इफेक्ट?
उत्तराखंड में ट्रांसफर-पोस्टिंग सिस्टम लंबे समय से सवालों के घेरे में रहा है। कई अधिकारी साइड पोस्टिंग पर वर्षों तक टिके रहते हैं, जबकि कुछ गिने-चुने अफसर ही महत्वपूर्ण विभागों पर बने रहते हैं। इस प्रणाली को लेकर हमेशा से ही असंतोष की स्थिति बनी रही है।
यह भी देखा गया है कि मुख्यमंत्री के करीबियों की सलाह पर अफसरों की पोस्टिंग तय होती है, जिससे कई ईमानदार और कर्मठ अधिकारी हाशिए पर चले जाते हैं। बीवीआरसी पुरुषोत्तम जैसे अफसर, जिन्होंने अपने काम से पहचान बनाई, उनका इस तरह सेवा छोड़ना इस असंतोष का संकेत हो सकता है।
क्या निजी क्षेत्र का बढ़ता आकर्षण है विकल्प?
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो निजी क्षेत्र की सुविधाएं, लचीलापन, और वेतन पैकेज कई बार सिविल सेवकों को भी आकर्षित करते हैं। खासकर उन अफसरों के लिए जो अपने मूल राज्य में बेहतर पारिवारिक और सामाजिक सपोर्ट सिस्टम के साथ काम करना चाहते हैं।
पुरुषोत्तम जैसे अनुभवी अधिकारी, जो तकनीकी और प्रशासनिक दक्षता रखते हैं, निजी क्षेत्र में बड़ी कंपनियों या एनजीओ संस्थाओं में ऊंचे पदों पर काम कर सकते हैं। इससे उन्हें न केवल बेहतर आर्थिक लाभ मिल सकता है, बल्कि अपने राज्य में रहकर पारिवारिक जीवन को भी प्राथमिकता दे सकते हैं।
क्या सोचने को मजबूर करता है ये फैसला ?
बीवीआरसी पुरुषोत्तम का वीआरएस का फैसला न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि यह उत्तराखंड की प्रशासनिक संरचना की स्थिति को भी उजागर करता है। जब इतने वरिष्ठ और सक्रिय अफसर सेवा छोड़ने की ओर बढ़ते हैं, तो यह सिस्टम के भीतर की कमियों और चुनौतियों को सामने लाता है।
अब देखने वाली बात होगी कि क्या सरकार इस घटना को एक सिर्फ़ अफसर का निजी फैसला मानकर नजरअंदाज कर देगी, या फिर ब्यूरोक्रेसी में बढ़ते असंतोष को गंभीरता से लेकर नीतिगत सुधारों की दिशा में कदम उठाएगी।