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पंचपुरी गढ़मीरपुर के मुख्य मार्ग क्षैत्र में प्रस्तावित एसटीपी प्लांट के खिलाफ फिर भड़का जनाक्रोश सिंचाई विभाग से मिली वैध ज़मीन पर प्रशासन की नजर, हरिद्वार के बाद डीएम टिहरी से भी ग्रामीणों ने लगाई गुहार, “खेती की ज़मीन पर गंदगी का कारखाना नहीं!”, शांतिपूर्ण विरोध के बाद भी नहीं रुकी सर्वे की प्रक्रिया गढ़मीरपुर में एसटीपी प्लांट की प्रस्तावित योजना ने एक बार फिर ‘विकास बनाम जन अधिकार’ की बहस को जन्म दिया

इन्तजार रजा हरिद्वार- पंचपुरी गढ़मीरपुर के मुख्य मार्ग क्षैत्र में प्रस्तावित एसटीपी प्लांट के खिलाफ फिर भड़का जनाक्रोश

सिंचाई विभाग से मिली वैध ज़मीन पर प्रशासन की नजर, हरिद्वार के बाद डीएम टिहरी से भी ग्रामीणों ने लगाई गुहार,

“खेती की ज़मीन पर गंदगी का कारखाना नहीं!”, शांतिपूर्ण विरोध के बाद भी नहीं रुकी सर्वे की प्रक्रिया

गढ़मीरपुर में एसटीपी प्लांट की प्रस्तावित योजना ने एक बार फिर ‘विकास बनाम जन अधिकार’ की बहस को जन्म दिया

पंचपुरी गढ़मीरपुर (हरिद्वार/टिहरी):
“जिस मिट्टी ने हमें रोटी दी, हम उसे गंदे नाले की भेंट नहीं चढ़ने देंगे!” – कुछ इसी संकल्प के साथ सोमवार को पंचपुरी गढ़मीरपुर क्षेत्र के ग्रामीणों ने टिहरी जिलाधिकारी से मुलाक़ात कर प्रस्तावित एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) का पुरजोर विरोध दर्ज कराया।

ग्रामीणों का आरोप है कि जिस भूमि पर प्रशासन प्लांट लगाने की योजना बना रहा है, वह सिंचाई विभाग द्वारा वैध रूप से ग्रामीणों को खेती-बाड़ी के लिए पट्टों पर दी गई भूमि है। यह न केवल उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत है, बल्कि उस पर उनका कानूनी अधिकार भी है। इसके बावजूद प्रशासन द्वारा लगातार सर्वेक्षण की कार्रवाई चुपचाप की जा रही है, जिससे जनता में भारी आक्रोश पनप रहा है।

पट्टेदार किसान बोले—“हम अपनी जमीन खून-पसीने से सींचते हैं”

पंचपुरी गढ़मीरपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में कई दशक पूर्व सिंचाई विभाग ने स्थानीय गरीब किसानों को खेती के लिए भूमि आवंटित की थी। पट्टा दस्तावेजों के अनुसार यह ज़मीनें किसानों को  दी गई थीं ताकि वे अपने परिवारों का भरण-पोषण कर सकें और खेती को बढ़ावा दिया जा सके। स्थानीय किसान अर्जुन सिंह कहते हैं, “हमने इस ज़मीन को जंगल से खेत में बदला है। पथरीली ज़मीन को उपजाऊ बनाया, मेहनत से सब्ज़ी, धान, गेहूं उगाया। अब प्रशासन बोलता है कि यहां गंदे पानी का प्लांट बनेगा। ये कैसा न्याय है?” ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि वे न तो अपनी खेती छोड़ेंगे और न ही प्रशासन को ज़मीन पर क़ब्जा करने देंगे।

प्रशासनिक चुप्पी और अचानक हो रहे सर्वेक्षणों से फिर गहराया संदेह

हालांकि एसटीपी प्लांट को लेकर प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक अधिसूचना जारी नहीं की गई है, फिर भी पिछले कुछ महीनों से सर्वे टीमें बार-बार खेतों में पहुँचती रही हैं। न तो किसानों को कोई जानकारी दी गई, न ही उनकी सहमति ली गई। यह रवैया ग्रामीणों को बेहद आहत कर रहा है। स्थानीय पट्टाधारकों ने कहा, “अगर सरकार को कोई योजना बनानी ही है तो पहले जनता को भरोसे में ले। ये क्या तरीका है कि खेतों में चुपचाप नापजोख हो रही है, जैसे हम यहां किरायेदार हों!”

शांतिपूर्ण विरोध के बाद भी नहीं रुकी सर्वे की प्रक्रिया

ग्रामीणों ने बताया कि कुछ दिन पहले उन्होंने विधायक रवि बहादुर के नेतृत्व में हरिद्वार स्थित जिलाधिकारी कार्यालय पर शांतिपूर्ण धरना दिया था। सैकड़ों की संख्या में लोग एकत्र हुए और अपने विरोध को लोकतांत्रिक तरीके से दर्ज कराया। लेकिन प्रशासन ने उनकी भावनाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए दोबारा सर्वेक्षण शुरू करवा दिए।अब जनता का धैर्य जवाब देने लगा है। “हम सरकार से भिड़ना नहीं चाहते, लेकिन अपनी ज़मीन बचाने के लिए अगर सड़क पर उतरना पड़ा, तो हम पीछे नहीं हटेंगे,” – यह चेतावनी अब ग्रामीण बार-बार दोहरा रहे हैं।

टिहरी डीएम से मुलाकात, समाधान की मांग

ग्रामीणों का एक प्रतिनिधिमंडल न्यू टिहरी पहुंचा और जिलाधिकारी से मुलाकात की। उन्होंने ज्ञापन सौंपते हुए आग्रह किया कि पंचपुरी गढ़मीरपुर क्षेत्र की पट्टेदार भूमि पर एसटीपी प्लांट लगाने की योजना को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।

प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि जिस भूमि पर सर्वे किया जा रहा है, वह क्षेत्र न केवल उपजाऊ है बल्कि घनी आबादी वाला भी है। अगर यहां सीवेज प्लांट बना, तो दुर्गंध, प्रदूषण और भूजल संकट जैसी समस्याएं विकराल रूप ले लेंगी।

गांव की महिलाएं और युवा भी आऐगे आगे

इस बार आंदोलन में गांव की महिलाएं और युवा भी मुखर होकर सामने आए हैं। “हम अपनी अगली पीढ़ियों के भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर आज ज़मीन गई तो कल कुछ भी नहीं बचेगा,” – यह कहते हुए दर्जनों महिलाएं डीएम कार्यालय तक पहुंचीं। युवा वर्ग सोशल मीडिया पर भी अभियान चला रहे हैं। उन्होंने प्रशासन से सार्वजनिक संवाद की मांग की है ताकि ‘छिपी हुई योजनाओं’ पर स्पष्टता लाई जा सके।

क्या हैं ग्रामीणों की प्रमुख मांगे?

  1. प्रस्तावित एसटीपी प्लांट को आबादी और खेती से दूर बंजर भूमि पर स्थानांतरित किया जाए।
  2. सर्वे की सभी कार्यवाहियों को तत्काल रोका जाए जब तक स्पष्ट अधिसूचना न जारी हो।
  3. सिंचाई विभाग से मिली पट्टेदार ज़मीन को कानूनी और व्यावहारिक रूप से संरक्षित किया जाए।
  4. जन संवाद की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए और जनता को विश्वास में लेकर ही कोई फैसला लिया जाए।

सरकार और प्रशासन के लिए चेतावनी का संकेत

यह आंदोलन अब सिर्फ पंचपुरी गढ़मीरपुर तक सीमित नहीं रहा। आस-पास के कई गांवों से भी समर्थन मिलने लगा है। अगर प्रशासन ने जल्द ही समाधान नहीं किया, तो यह संघर्ष ज़िला स्तर से राज्य स्तर तक पहुंच सकता है।ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी इस विषय में हस्तक्षेप की मांग की है।

“यह सिर्फ ज़मीन की लड़ाई नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व, हमारी पहचान और हमारी आजीविका की रक्षा की लड़ाई है,” – इन शब्दों के साथ ग्रामीणों ने साफ कर दिया है कि वे अब पीछे नहीं हटेंगे।पंचपुरी गढ़मीरपुर में एसटीपी प्लांट की प्रस्तावित योजना ने एक बार फिर ‘विकास बनाम जन अधिकार’ की बहस को जन्म दिया है। सरकार को तय करना होगा कि क्या वह जनता की आवाज़ सुनेगी या बिना संवाद के निर्णय थोपेगी। लेकिन एक बात तय है—खेती की ज़मीन को लेकर ग्रामीण अब एकजुट हैं और लड़ाई लंबी चलेगी।

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