उत्तराखंड की राजनीति में फिर उबाल, विधायक उमेश शर्मा के काफिले पर सनसनीखेज हमला, ‘प्रणव चैंपियन’ पर फिर उठी उंगली, सियासत में फिर तूफान, “कुर्सी की लड़ाई या जान की दुश्मनी?” – राजनीति में बदले की आग या लोकतंत्र का अपमान! पुलिस एक्शन में, पर सवाल अब भी?, जनता की जुबान पर एक ही सवाल — क्या नेता अब नेताओं से ही डरें?

इन्तजार रजा हरिद्वार- उत्तराखंड की राजनीति में फिर उबाल,
विधायक उमेश शर्मा के काफिले पर सनसनीखेज हमला,
‘प्रणव चैंपियन’ पर फिर उठी उंगली, सियासत में फिर तूफान,
“कुर्सी की लड़ाई या जान की दुश्मनी?” – राजनीति में बदले की आग या लोकतंत्र का अपमान!
पुलिस एक्शन में, पर सवाल अब भी?, जनता की जुबान पर एक ही सवाल — क्या नेता अब नेताओं से ही डरें?
उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं लग रही। एक ओर विधायक उमेश शर्मा हैं, जो अपने क्षेत्र में विकास के वादों और साफ छवि को लेकर चर्चा में रहते हैं, और दूसरी ओर हैं पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह ‘चैंपियन’ – विवादों से पुराना नाता रखने वाले, बेबाक और बेकाबू बयानों के लिए बदनाम। दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा अब दुश्मनी की शक्ल ले चुकी है, और इसका ताज़ा सबूत है शुक्रवार शाम हुआ हमला, जिसने पूरे राज्य की सियासी ज़मीन हिला दी।
शुक्रवार की शाम, जब उमेश शर्मा अपने काफिले के साथ लक्सर से रुड़की लौट रहे थे, अचानक रास्ते में हमला हो गया। गोलियों की आवाज़, अफरातफरी, और सायरनों की चीख के बीच विधायक बाल-बाल बच गए। हालांकि कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन इस हमले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल — क्या यह राजनीति है या रंजिश का खूनी रूप?
उमेश शर्मा बोले – “मैं डरने वाला नहीं, अब आर-पार की लड़ाई है”
हमले के तुरंत बाद उमेश शर्मा ने मीडिया से बात करते हुए सीधे-सीधे आरोप जड़ दिए – “ये हमला कुंवर प्रणव सिंह ‘चैंपियन’ की साजिश है। ये वही लोग हैं जिन्होंने 26 जनवरी को मेरे कैंप कार्यालय पर गोलियां चलाई थीं। मैं झुकने वाला नहीं। अब लड़ाई सड़क से सदन तक लड़ी जाएगी।”
उनके इस बयान ने जैसे पूरे राजनीतिक गलियारों में आग लगा दी। वीडियो वायरल हुए, सोशल मीडिया पर ‘#JusticeForUmesh’ ट्रेंड करने लगा। जनता भी इस खुलेआम गुंडागर्दी से हैरान और नाराज़ नज़र आई।
चैंपियन फिर चर्चा में, छवि पहले ही विवादित
‘चैंपियन’ का नाम सुनते ही लोगों को उनके पुराने कांड याद आने लगते हैं — शराब के नशे में हथियार लहराते वायरल वीडियो, भड़काऊ बयान, और अपने ही समर्थकों से बदसलूकी। भाजपा ने भले ही उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया हो, लेकिन उनके रसूख और दबदबे का सिक्का आज भी चलता है।
अब सवाल यह है कि अगर चैंपियन पर पहले से इतने गंभीर आरोप थे, तो उन्हें इतनी जल्दी ज़मानत कैसे मिली? क्या ये महज संयोग है कि जेल से निकलते ही विधायक पर फिर हमला हो गया?
राजनीति अब बदले की आग में जल रही है, लोकतंत्र कराह रहा है
उत्तराखंड की राजनीति, जो कभी सादगी और विकास की मिसाल मानी जाती थी, आज व्यक्तिगत दुश्मनी और सत्ता की भूख में लिपटी दिख रही है। यह केवल उमेश शर्मा या चैंपियन की लड़ाई नहीं रह गई, यह अब उत्तराखंड की सियासी संस्कृति पर सीधा सवाल है।
राजनीतिक विश्लेषक और समाजशास्त्री डॉ. रेखा चौहान का कहना है – “जब जनप्रतिनिधि आपसी दुश्मनी में कानून को हाथ में लेने लगें, तो यह जनता के भरोसे की हत्या है। यह लड़ाई केवल दो नेताओं की नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है।”
पुलिस एक्शन में, पर सवाल अब भी अनुत्तरित
हमले के बाद हरिद्वार पुलिस हरकत में आ गई। उमेश शर्मा के घर और कार्यालय पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। रूट डायवर्ट किए गए हैं, और इलाके में अतिरिक्त फोर्स तैनात है। एसएसपी अजय सिंह ने कहा – “हम मामले की तह तक जाएंगे। जांच शुरू कर दी गई है, और जो भी दोषी होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।”
लेकिन जनता अब पूछ रही है – “क्या पहले वाली फायरिंग का दोषी सामने आया? क्या जमानत देने वालों की जांच होगी? या ये भी एक और ‘फाइल बंद’ मामला बन जाएगा?”
भाजपा की चुप्पी और विपक्ष का हमला
चैंपियन कभी भाजपा के स्टार विधायक थे। लेकिन उनके विवादास्पद बर्ताव और पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। इसके बावजूद पार्टी ने अब तक हमले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया। यह चुप्पी सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे रही है।
कांग्रेस ने इस मसले को लेकर सरकार पर सीधा हमला बोला। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा बोले – “अगर भाजपा अपने ही पूर्व नेताओं को खुला छोड़ देती है, और उन पर लगते आरोपों की जांच भी नहीं करवाती, तो साफ है कि उसे सत्ता से ज्यादा लोकतंत्र की चिंता नहीं है।”
जनता की जुबान पर एक ही सवाल — क्या नेता अब नेताओं से ही डरें?
इस घटना ने आम लोगों में गहरी बेचैनी भर दी है। क्षेत्रीय व्यापारी संघ के अध्यक्ष रमेश मलिक कहते हैं – “जब विधायक सुरक्षित नहीं हैं, तो आम जनता क्या करे? ये लोग वोट मांगने तो गली-गली आते हैं, लेकिन अब एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गए हैं।”
आगे क्या? – राजनीति अब नए मोड़ पर
यह मामला अब केवल एक पुलिस केस नहीं रहा। यह उत्तराखंड की राजनीति के भविष्य का सवाल बन चुका है। क्या राज्य अपनी शालीन राजनीतिक परंपरा को बचा पाएगा? क्या चैंपियन पर कड़ी कार्रवाई होगी? या फिर सियासी दबाव में सबकुछ रफा-दफा कर दिया जाएगा?
अगले कुछ दिन बेहद अहम होंगे। अगर इस बार भी न्याय नहीं हुआ, तो यह नज़ीर बन जाएगी कि सत्ता की राजनीति में कानून और लोकतंत्र केवल किताबों की बातें हैं।