गढमीरपुर में कांग्रेस का ध्वस्त होता जनाधार : आपसी फूट बन रही बड़ी वजह, प्रदेश नेतृत्व पद बांटने में मशगूल, अनुशासन और एकता ठप, जमीनी कार्यकर्ता नेताओं से आगे निकले, जनप्रतिनिधियों को किया नजरअंदाज, कार्यकर्ताओं ने संभाला मोर्चा, नेताओं को दिखाया आईना, आखिर पद बांटकर क्या साधना चाहते हैं?, गढमीरपुर में जमीनी सच्चाई भारी, कागजी संगठन रह गया पीछे, कांग्रेस कार्यकर्ताओं की कलह बनी चुनौती, जनता से कटते जा रहे जनप्रतिनिधि

इन्तजार रजा हरिद्वार- गढमीरपुर में कांग्रेस का जनाधार ध्वस्त: आपसी फूट बन रही बड़ी वजह,
प्रदेश नेतृत्व पद बांटने में मशगूल, अनुशासन और एकता ठप,
जमीनी कार्यकर्ता नेताओं से आगे निकले, जनप्रतिनिधियों को किया नजरअंदाज,
कार्यकर्ताओं ने संभाला मोर्चा, नेताओं को दिखाया आईना, आखिर पद बांटकर क्या साधना चाहते हैं ?,
गढमीरपुर में जमीनी सच्चाई भारी, कागजी संगठन रह गया पीछे,
कांग्रेस कार्यकर्ताओं की कलह बनी चुनौती, जनता से कटते जा रहे जनप्रतिनिधि
गढमीरपुर में कांग्रेस की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। कभी जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ रखने वाली पार्टी आज आपसी फूट और गुटबाजी की शिकार बनकर रह गई है। स्थानीय कार्यकर्ताओं में दो स्पष्ट धड़े बन चुके हैं, और इसका सबसे बड़ा खामियाजा भुगत रहे हैं मौजूदा कांग्रेसी जनप्रतिनिधि। पार्टी की किसी भी गतिविधि या मंच पर इन जनप्रतिनिधियों को तवज्जो नहीं मिल रही है। कार्यकर्ता खुद को ही रणनीतिकार मानते हुए अलग थलग मंचों से अपनी राजनीति चला रहे हैं, जिससे कांग्रेस की पकड़ गांव-गांव में लगभग खत्म हो चुकी है।
आपसी खींचतान से संगठन बना मज़ाक
गढमीरपुर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच जारी अंदरूनी कलह ने संगठन को खोखला बना दिया है। एक तरफ पुराने व वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं, जो पार्टी की रीति-नीति और अनुशासन की बात करते हैं, तो दूसरी ओर कुछ ऐसे युवा कार्यकर्ता हैं जो खुद को संगठन से ऊपर मानकर अपनी चलाते हैं। इसका नतीजा यह है कि जब भी कोई पार्टी आयोजन होता है, तो यह साफ नजर आता है कि दो अलग-अलग धड़े अपनी-अपनी सभा और रणनीति में लगे होते हैं।
प्रदेश नेतृत्व को जब इसकी भनक लगी तो उसने सभी को साधने की कोशिश में हर पक्ष को पद बांटना शुरू कर दिया। किसी को किसी पक्ष का महामंत्री बना दिया गया तो किसी को ब्लॉक तो किसी को प्रदेश स्तर के पद की कुर्सी थमा दी गई। लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ पद बांटने से संगठन मजबूत होगा? जब जमीन पर कार्यकर्ता एक-दूसरे की सूरत देखना नहीं चाहते, तो क्या ऐसे में संगठन की पद बांटकर एकता कायम रह सकती है? या केवल आपसी मेल-जोल को देखते हुए पद बांटने का कारखाना लगाया गया है
जनप्रतिनिधियों की अनदेखी, भूमिका सीमित होती गई
गढमीरपुर की कांग्रेस में मौजूदा हालात इस हद तक बिगड़ चुके हैं कि पार्टी के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी सीमित होती जा रही है। पहले जो नेता पार्टी के मंचों की शान हुआ करते थे, आज उन्हीं की उपस्थिति कई आयोजनों में सिर्फ औपचारिक बनकर रह गई है। कुछ अवसरों पर मंच साझा करने तक से बचा जा रहा है, जिससे उनके अनुभव और नेतृत्व क्षमता का सदुपयोग नहीं हो पा रहा। यह स्थिति न केवल संगठन के भविष्य के लिए खतरा है, बल्कि इससे कार्यकर्ताओं और जनता के बीच भ्रम और असंतोष भी गहराता जा रहा है।
कार्यकर्ता बन बैठे रणनीतिकार, पार्टी की जमीन खिसकी
प्रदेश नेतृत्व की सबसे बड़ी विफलता यह है कि उसने कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाने के बजाय पद और सम्मान देकर संतुष्ट करने की नीति अपना ली है। इसका परिणाम यह हुआ कि आज हर दूसरा कार्यकर्ता खुद को रणनीतिकार समझने लगा है। कोई सोशल मीडिया का प्रभारी बना घूम रहा है, तो कोई खुद को युवा कांग्रेस का चेहरा बताता है। लेकिन जब चुनाव आते हैं या कोई जनहित का मुद्दा उठाना होता है, तो यही कार्यकर्ता गायब हो जाते हैं।
गढमीरपुर में कांग्रेस अब पाताल की स्थिति में पहुंच चुकी है। जनाधार सिमटता जा रहा है और विपक्षी दल इसका फायदा उठाने में लगे हैं। जनता का भरोसा अब कांग्रेस से हटकर अन्य विकल्पों की ओर जाता दिख रहा है। संगठन में सामंजस्य की कमी, कार्यकर्ताओं का अनुशासनहीन रवैया और प्रदेश नेतृत्व की ढुलमुल नीति ने कांग्रेस को उस मोड़ पर ला खड़ा किया है जहां से वापसी आसान नहीं दिखती।
अब भी वक्त है चेत जाने का
कांग्रेस के लिए यह स्थिति एक गंभीर चेतावनी है। अगर गढमीरपुर जैसे इलाकों में पार्टी की साख इस तरह गिरती रही तो आने वाले चुनावों में नुकसान तय है। प्रदेश नेतृत्व को अब केवल पद बांटने की बजाय जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच संवाद, अनुशासन और एकजुटता की ओर ध्यान देना होगा। हर किसी को पद देकर संगठन नहीं चलाया जा सकता, बल्कि विचारधारा और जनसेवा की मूल भावना को फिर से स्थापित करना होगा।
वरना गढमीरपुर की यह टूटन पूरी पार्टी की जड़ें हिला सकती है।