CJI गवई का महाराष्ट्र आगमन बना प्रोटोकॉल विवाद, राज्य के शीर्ष अधिकारियों की अनुपस्थिति से गवई खिन्न, बोले- तीनों संवैधानिक स्तंभों को दिखाना चाहिए सम्मान, सम्मान समारोह में भावुक हुए CJI, कहा- जो प्यार और स्नेह मिला, वो अविस्मरणीय

इन्तजार रजा हरिद्वार- CJI गवई का महाराष्ट्र आगमन बना प्रोटोकॉल विवाद,
राज्य के शीर्ष अधिकारियों की अनुपस्थिति से गवई खिन्न, बोले- तीनों संवैधानिक स्तंभों को दिखाना चाहिए सम्मान,
सम्मान समारोह में भावुक हुए CJI, कहा- जो प्यार और स्नेह मिला, वो अविस्मरणीय
भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का मुंबई दौरा उस समय चर्चा का विषय बन गया जब उन्हें रिसीव करने के लिए महाराष्ट्र सरकार का कोई शीर्ष अधिकारी हवाई अड्डे पर नहीं पहुंचा। चीफ सेक्रेटरी, डीजीपी और मुंबई पुलिस कमिश्नर की अनुपस्थिति पर सार्वजनिक मंच से अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए CJI ने कहा कि यह राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से प्रोटोकॉल का खुला उल्लंघन है।
गवई ने यह बात रविवार को महाराष्ट्र-गोवा बार काउंसिल द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में कही। उन्होंने कहा, “मैं ऐसे छोटे मुद्दों पर बात नहीं करना चाहता, लेकिन यह निराशाजनक है कि महाराष्ट्र के बड़े अफसर प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते। अगर भारत का मुख्य न्यायाधीश पहली बार राज्य में आ रहा हो तो राज्य के अधिकारियों की मौजूदगी अपेक्षित होती है।”
संवैधानिक मर्यादा पर सवाल, संवेदनशील प्रतिक्रिया
गवई ने यह भी जोड़ा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ — न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका — समान हैं और उनमें आपसी सम्मान अनिवार्य है। उन्होंने यह भी दोहराया कि न कोई संस्था सर्वोच्च है, न कोई व्यक्ति — भारत का संविधान सर्वोच्च है और हर अंग को संविधान के तहत काम करना चाहिए।
उनके अनुसार, “किसी संस्था का प्रमुख पहली बार राज्य में आ रहा हो, विशेषकर जब वह भी उसी राज्य का हो, तो यह स्वाभाविक है कि उसका गरिमामय स्वागत हो। ऐसे में प्रोटोकॉल की अनदेखी एक गंभीर संकेत देती है।”
भावुक हुए गवई, मां के साथ मंच पर किया अनुभव साझा
सम्मान समारोह के दौरान गवई भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि उन्हें जो सम्मान और स्नेह मिला है, वह उनके लिए अविस्मरणीय है। “मुझे 40 वर्षों से जो प्यार मिल रहा है, आज वो चरम पर दिखा। यह पल मेरे जीवन का सबसे भावनात्मक क्षण है। मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं ढूंढ पा रहा हूं।”
इस मौके पर उनकी मां कमला गवई भी मौजूद थीं, और मंच पर विशेष रूप से जस्टिस गवई के 50 प्रमुख फैसलों पर आधारित एक पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
CJI की न्यायिक दृष्टिकोण पर दो टूक: “जज जमीनी हकीकत से कटे नहीं रह सकते”
इससे पहले शनिवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक अन्य समारोह में गवई ने न्यायपालिका की भूमिका पर भी खुलकर विचार रखे। उन्होंने कहा कि आज की न्यायपालिका मानवीय अनुभवों की जटिलताओं को नजरअंदाज करते हुए कानूनी मामलों को केवल काले और सफेद रंगों में नहीं देख सकती।
उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को समाज से दूरी बनाकर नहीं चलना चाहिए, बल्कि समाज की जमीनी हकीकत को समझना और उससे जुड़ना आवश्यक है। उन्होंने उस धारणा को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा जाता है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को आम जन से दूर रहना चाहिए।
राजनीति से दूरी की घोषणा, संविधान की रक्षा का संकल्प
समारोह के बाद मीडिया से बातचीत में CJI गवई ने रिटायरमेंट के बाद राजनीति में आने की अटकलों को खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा, “CJI पद पर रहने के बाद किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी लेना उचित नहीं। जब देश को खतरा होगा, सुप्रीम कोर्ट कभी मूकदर्शक नहीं रहेगा, लेकिन मैं किसी पद या राजनीति में नहीं जाऊंगा।”
उन्होंने आगे कहा कि 14 मई को बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर CJI की शपथ लेना उनके लिए अत्यंत गौरव का विषय है। उन्होंने अपने पूरे करियर और इस क्षण तक पहुंचने के सफर को बाबासाहेब अंबेडकर और संविधान के सिद्धांतों को समर्पित किया।
CJI गवई का महाराष्ट्र दौरा केवल एक सम्मान समारोह तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक संवैधानिक बहस और मूल्यों की पुनर्पुष्टि का मंच बन गया। राज्य के शीर्ष अधिकारियों की ओर से प्रोटोकॉल की अनदेखी एक चिंताजनक संकेत देती है कि देश में संस्थागत सम्मान और संतुलन कितना संवेदनशील विषय है। गवई का यह दौरा न केवल न्यायपालिका की संवेदनशीलता को दर्शाता है, बल्कि संविधान की सर्वोच्चता और तीनों अंगों के बीच सम्मानजनक संबंधों की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।