हरिद्वार में गरजी भोजनमाताएं, शोषण, अपमान और न्यून वेतन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन, सरकारी कर्मचारी का दर्जा और सामाजिक सुरक्षा की मांग

इन्तजार रजा हरिद्वार- हरिद्वार में गरजी भोजनमाताएं,
शोषण, अपमान और न्यून वेतन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन,
सरकारी कर्मचारी का दर्जा और सामाजिक सुरक्षा की मांग
हरिद्वार, 20 मई —
हरिद्वार में आज प्रगतिशील भोजनमाता संगठन के नेतृत्व में जनपद की सैकड़ों भोजनमाताएं अपने हक की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरीं। भोजनमाताओं ने विकास भवन से ज़िला शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक जुलूस निकाला और कार्यालय के बाहर धरना-प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के केंद्र में था स्कूलों में उनके साथ हो रहा अनुचित व्यवहार — अतिरिक्त कार्यभार, देर तक रोका जाना, और बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी।
धरना स्थल पर भोजनमाताओं ने जिला शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपा, जिसमें मांग की गई कि उन्हें सौंपे गए कार्यों की स्पष्ट सूची लिखित रूप में दी जाए ताकि अतिरिक्त और गैर-कानूनी काम को रोका जा सके। साथ ही, एक अलग ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजा गया जिसमें भोजनमाताओं को स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, न्यूनतम वेतन लागू करने, और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की मांग की गई।
शोषण के खिलाफ संगठन की हुंकार
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की कोषाध्यक्ष नीता ने बताया कि हरिद्वार के कई विद्यालयों में भोजनमाताओं से जबरन झाड़ू-पोंछा, बर्तन धोना, और अन्य घरेलू कार्य कराए जाते हैं। “हमसे यह उम्मीद की जाती है कि हम खाना बनाएं, फिर सफाई करें, फिर बच्चों को पानी पिलाएं और छुट्टी तक वहीं रहें। कई जगह तो गैस चूल्हा होते हुए भी हमें लकड़ी और कंडों से खाना बनवाया जाता है। यह सरासर उत्पीड़न है,” नीता ने कहा।
उन्होंने प्रशासन को चेतावनी दी कि संगठन लिखित रूप में सभी विद्यालयों की कार्य प्रणाली की जानकारी लेगा और यदि कोई विद्यालय शासनादेशों का उल्लंघन करता पाया गया, तो उस पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
न्यून वेतन, बढ़ती महंगाई और सरकार की चुप्पी
संगठन की प्रदेश उपाध्यक्ष रजनी ने कहा, “हम महिलाओं को ‘माता’ कहा जाता है, लेकिन वेतन ऐसा दिया जाता है मानो हम बोझ हों। महंगाई की मार के बीच 3000 रुपये मासिक मानदेय बेहद अपमानजनक है। वह भी केवल 11 महीनों के लिए। जून का भुगतान तो वर्षों से नहीं मिलता। सरकार ने कई बार 5000 रुपये मानदेय की घोषणा की, पर वो केवल कागजों तक ही सीमित रही।”
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार का स्पष्ट शासनादेश है कि भोजनमाताओं से केवल मध्याह्न भोजन से संबंधित कार्य लिए जाएं, लेकिन यह आदेश स्कूलों में लागू नहीं किया जा रहा।
मजदूर संगठनों का समर्थन और तीखी आलोचना
धरना स्थल पर इंकलाबी मजदूर केंद्र के हरिद्वार प्रभारी पंकज कुमार ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर भोजनमाताओं का मानदेय तय करते हैं, लेकिन यह शर्मनाक है कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर केवल 3000 रुपये में इनसे बेगारी करवाई जा रही है। कई राज्यों में भोजनमाताओं को 18 से 19 हजार रुपये तक मिलते हैं। उत्तराखंड में यह अन्याय क्यों?”
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, और संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा की 8 ट्रेड यूनियनों ने भी भोजनमाताओं की मांगों का समर्थन किया और धरना स्थल पर आकर एकजुटता दिखाई।
आंदोलन अब देहरादून की ओर
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की हरिद्वार संयोजिका दीपा ने अंत में घोषणा की कि यदि सरकार ने शीघ्र उनकी मांगें नहीं मानीं, तो 2 और 3 जून को राज्यभर की भोजनमाताएं देहरादून में विशाल प्रदर्शन करेंगी।
मुख्य मांगों में शामिल हैं:
- भोजनमाताओं को स्थायी कर्मचारी का दर्जा
- न्यूनतम वेतन ₹18000 लागू करना
- पीएफ, ईएसआई, प्रसूति अवकाश, आकस्मिक अवकाश की सुविधा
- सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की व्यवस्था
- ‘अक्षय पात्र फाउंडेशन’ जैसी निजी संस्थाओं पर रोक
इस प्रदर्शन में कुमाऊं और गढ़वाल मंडल की सैकड़ों भोजनमाताएं भाग लेंगी। हरिद्वार से प्रदर्शन में शामिल भोजनमाताओं में लक्सर, बहादराबाद, रुड़की, नारसन, भगवानपुर, और खानपुर ब्लॉक की महिलाएं प्रमुख रूप से शामिल रहीं।