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शहरीकरण, सिंचाई और पर्यटन के नए मॉडल पर उत्तराखण्ड का फोकस नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रखे राज्य के सरोकार ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ से लेकर ग्रीन गेम्स तक, उत्तराखंड कर रहा भविष्य की तैयारी

इन्तजार रजा हरिद्वार- शहरीकरण, सिंचाई और पर्यटन के नए मॉडल पर उत्तराखण्ड का फोकस
नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रखे राज्य के सरोकार
‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ से लेकर ग्रीन गेम्स तक, उत्तराखंड कर रहा भविष्य की तैयारी

नई दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की दसवीं बैठक में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बार फिर राज्य की आवश्यकताओं, संभावनाओं और चुनौतियों को मजबूती से रखा। तेजी से हो रहे शहरीकरण से लेकर पर्वतीय क्षेत्रों की जल संकट की समस्या, पर्यटन के नवाचारों से लेकर युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसरों तक—मुख्यमंत्री ने केंद्र के समक्ष एक दूरदर्शी और व्यावहारिक एजेंडा प्रस्तुत किया।

शहरीकरण से उपजी समस्याओं के समाधान की मांग: राष्ट्रीय ड्रेनेज योजना की जरूरत

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य में तेजी से हो रहे शहरीकरण ने जहां विकास के नए द्वार खोले हैं, वहीं शहरों की बुनियादी संरचना पर भी गंभीर दबाव डाला है। विशेष रूप से ड्रेनेज की समस्या अब एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। उन्होंने प्रधानमंत्री और नीति आयोग से अनुरोध किया कि देशभर के शहरी क्षेत्रों, विशेष रूप से पहाड़ी राज्यों के लिए एक “राष्ट्रीय टिकाऊ ड्रेनेज प्रणाली” विकसित की जाए, जो जलनिकासी के साथ-साथ वर्षा जल के संरक्षण में भी कारगर हो।

उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा शहरी विकास परियोजनाएं ड्रेनेज प्रणाली की उपेक्षा कर रही हैं, जिससे हर वर्ष मानसून के दौरान बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है। इससे ना केवल जन-धन की हानि होती है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी प्रभावित होता है। मुख्यमंत्री ने इस दिशा में केंद्र से विशेष वित्तीय और तकनीकी सहायता की अपेक्षा जताई।

पर्वतीय कृषि के लिए लिफ्ट इरिगेशन और नदी जोड़ो परियोजना की वकालत

पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्याओं में एक है—सिंचाई। मुख्यमंत्री ने “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” की गाइडलाइन्स में लिफ्ट इरिगेशन को शामिल करने की मांग की। उन्होंने कहा कि राज्य की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि खेत नीचे और जल स्रोत ऊपर होते हैं, जिससे गुरुत्वाकर्षण आधारित सिंचाई संभव नहीं होती। लिफ्ट इरिगेशन तकनीक ही इन परिस्थितियों में कारगर सिद्ध हो सकती है।

उत्तराखण्ड का मात्र 10% पर्वतीय क्षेत्र ही सिंचित है, जो राज्य की कृषि उत्पादकता को सीमित करता है। इसे बदलने के लिए राज्य सरकार हिमनदों से निकलने वाली नदियों को वर्षा आधारित नदियों से जोड़ने की दिशा में “नदी जोड़ो परियोजना” पर काम कर रही है। इसके साथ ही चेक डैम्स और लघु जलाशयों का निर्माण भी किया जा रहा है, जिससे जल संरक्षण हो और जल की निरंतरता बनी रहे।

राज्य सरकार की प्राथमिकता है कि ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, ताकि पलायन की दर को कम किया जा सके और लोगों को अपने गांव में आजीविका के अवसर मिल सकें।

राज्य की अर्थव्यवस्था, रोजगार और भविष्य के आयोजन: उत्तराखण्ड की विकास गाथा

मुख्यमंत्री ने नीति आयोग के समक्ष यह भी स्पष्ट किया कि उत्तराखण्ड अब सिर्फ एक “धार्मिक पर्यटन” राज्य नहीं रहा, बल्कि यह राज्य आत्मनिर्भरता और नवाचार की ओर अग्रसर है। उन्होंने बताया कि राज्य की जीडीपी में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान मात्र 9.3% है, जबकि इससे 45% जनसंख्या की आजीविका जुड़ी हुई है। इसे बदलने के लिए राज्य सरकार ने कई क्रांतिकारी कदम उठाए हैं।

हाई वैल्यू एग्रीकल्चर की ओर कदम

राज्य में “लो वैल्यू” कृषि से हटकर “हाई वैल्यू एग्रीकल्चर” को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत ‘एप्पल मिशन’, ‘कीवी मिशन’, ‘ड्रैगन फ्रूट मिशन’, ‘मिलेट मिशन’ और ‘सगंध कृषि’ को बढ़ावा देने की पहल की गई है। इन फसलों से किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बाजार में प्रतिस्पर्धा बनेगी और राज्य के कृषि क्षेत्र में नया जीवन आएगा।

राजजात यात्रा और कुंभ जैसे आयोजनों के लिए सहयोग की अपील

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2026 में “मां नन्दा राजजात यात्रा” और वर्ष 2027 में “हरिद्वार कुंभ” का आयोजन होने वाला है। ये दोनों आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने केंद्र से अपील की कि इन आयोजनों को “भव्य और दिव्य” बनाने हेतु विशेष सहयोग प्रदान किया जाए।

ग्रीन गेम्स: एक पर्यावरणीय मॉडल

मुख्यमंत्री ने बताया कि हाल ही में उत्तराखण्ड में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों को “ग्रीन गेम्स” की थीम पर आयोजित किया गया। इस आयोजन में तकनीकी नवाचारों के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा को भी प्राथमिकता दी गई। इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट से तैयार 4000 पदक, सौर ऊर्जा से बिजली की आपूर्ति और 4000–5000 टन कार्बन उत्सर्जन को रोकने जैसे प्रयोगों ने यह साबित किया कि विकास और पर्यावरण की रक्षा साथ-साथ चल सकती है।

शीतकालीन पर्यटन और स्वरोजगार की ओर बढ़ते कदम

शीतकालीन पर्यटन की अवधारणा ने भी अब आकार लेना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री द्वारा हर्षिल और मुखबा की यात्रा के बाद राज्य के शीतकालीन स्थलों को लेकर पर्यटकों में रुचि बढ़ी है। इससे न केवल पर्यटन क्षेत्र में नए अवसर उत्पन्न हुए हैं, बल्कि स्थानीय लोगों को स्वरोजगार के रास्ते भी खुले हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार “डेमोग्राफिक डिविडेंड” का लाभ उठाने के लिए विशेष रूप से आगामी दस वर्षों को निर्णायक मान रही है। इसके लिए कौशल विकास, स्टार्टअप्स, और स्वरोजगार आधारित योजनाओं पर तेज़ी से काम हो रहा है।

सुशासन, एसडीजी रैंकिंग और समान नागरिक संहिता

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की अर्थव्यवस्था में बीते तीन वर्षों में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2023-24 की नीति आयोग की एसडीजी रैंकिंग में उत्तराखण्ड ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, वहीं “केयरऐज रेटिंग रिपोर्ट” में सुशासन और वित्तीय प्रबंधन के क्षेत्र में छोटे राज्यों की श्रेणी में दूसरा स्थान हासिल किया है।

राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर भारत के संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा की गई है। यह कदम राज्य को सामाजिक समानता और न्याय की ओर ले जाता है। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि पिछले साढ़े तीन वर्षों में 23 हजार से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरियों में चयनित किया गया है, जो युवाओं में बढ़ते भरोसे का प्रमाण है।


निष्कर्ष:
नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का प्रस्तुतिकरण सिर्फ योजनाओं की बात नहीं करता, बल्कि वह राज्य के भविष्य का एक विजन रखता है। शहरी संकटों के समाधान से लेकर पर्वतीय कृषि और पर्यटन की संभावनाओं तक, उत्तराखण्ड केंद्र के सहयोग से विकास की उस दिशा में अग्रसर है जो टिकाऊ, समावेशी और आत्मनिर्भर हो। “विकसित भारत 2047” के सपने में उत्तराखण्ड की भूमिका निश्चय ही निर्णायक होने जा रही है।


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