बेटी-दामाद ने मिलकर बुजुर्ग पिता को लगाया करोड़ों का चूना, LIC और निवेश के नाम पर बुना धोखाधड़ी का ताना-बाना, हरिद्वार में बुजुर्ग की शिकायत पर दंपति के खिलाफ मुकदमा दर्ज

इन्तजार रजा हरिद्वार- बेटी-दामाद ने मिलकर बुजुर्ग पिता को लगाया करोड़ों का चूना,
LIC और निवेश के नाम पर बुना धोखाधड़ी का ताना-बाना,
हरिद्वार में बुजुर्ग की शिकायत पर दंपति के खिलाफ मुकदमा दर्ज
हरिद्वार में रिश्तों को शर्मसार करने वाली एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां एक बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी ही बेटी और दामाद पर एक करोड़ दस लाख रुपये की धोखाधड़ी करने का गंभीर आरोप लगाया है। पीड़ित बुजुर्ग ने जब अपने बैंक खातों की जांच की तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। यह मामला अब पुलिस के संज्ञान में है और रानीपुर कोतवाली पुलिस ने दंपति के खिलाफ धोखाधड़ी और विश्वासघात का मुकदमा दर्ज कर लिया है।
बेटी-दामाद ने बुजुर्ग पिता की गाढ़ी कमाई पर डाला डाका
हरिद्वार के ज्वालापुर स्थित दयानंद नगरी निवासी महेश महाराज, जो वर्ष 2010 में भेल (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) से सेवानिवृत्त हुए थे, ने यह मामला उजागर किया है। उन्होंने बताया कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें जो राशि मिली थी, वह उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई मानकर दो बैंकों – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (रानीपुर शाखा) और पंजाब नेशनल बैंक (आर्यनगर वानप्रस्थ आश्रम शाखा) में सुरक्षित जमा कर दी थी।
महेश महाराज के अनुसार, इन खातों में क्रमशः 93 लाख और 20 लाख रुपये जमा थे। आरोप है कि उनकी अपनी बेटी शोभा शर्मा और दामाद आशुतोष शर्मा, जो शिवालिकनगर के निवासी हैं, ने उन्हें भरोसे में लेकर यह कहा कि वे उनकी धनराशि को एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा निगम) और म्यूचुअल फंड में निवेश करेंगे ताकि उन्हें बेहतर रिटर्न मिल सके।
बुजुर्ग पिता ने भरोसे में आकर कई चेकों पर हस्ताक्षर कर दिए। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि यह भरोसा उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल बन जाएगा।
बैंक से सांठगांठ कर फर्जी हस्ताक्षरों से निकाले गए करोड़ों रुपये
पीड़ित की शिकायत के अनुसार, बेटी और दामाद ने बैंक कर्मचारियों से साठगांठ कर फर्जी हस्ताक्षरों के माध्यम से उनके बैंक खातों से पैसे निकालने शुरू कर दिए। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के खाते से 90 लाख रुपये की राशि धीरे-धीरे निकाल ली गई। इसी प्रकार, पंजाब नेशनल बैंक में उनके और बेटी के नाम का संयुक्त खाता था, जिसका दुरुपयोग कर 20 लाख रुपये निकाल लिए गए।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इतने बड़े पैमाने पर पैसे की निकासी के बावजूद बुजुर्ग को इसकी भनक तक नहीं लगी, क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि उनके निवेश की प्रक्रिया चल रही है और बेटी-दामाद उनके पैसे को सही दिशा में लगा रहे हैं।
बुजुर्ग को तब झटका लगा जब वे बैंक शाखा में गए और खाता विवरण निकलवाया। स्टेटमेंट में दिखी शून्यता ने उन्हें हतप्रभ कर दिया। उन्होंने पाया कि न तो कोई एलआईसी की गई थी, और न ही म्यूचुअल फंड में कोई निवेश। उनके करोड़ों रुपये का कोई अता-पता नहीं था।
पुलिस ने दर्ज किया धोखाधड़ी का मुकदमा, जांच शुरू
बुजुर्ग महेश महाराज की ओर से रानीपुर कोतवाली में दर्ज कराई गई शिकायत पर पुलिस ने बेटी शोभा शर्मा और दामाद आशुतोष शर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। कोतवाली प्रभारी कमल मोहन भंडारी ने मामले की पुष्टि करते हुए बताया कि आरोपी दंपति पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी और विश्वासघात जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
पुलिस अब बैंक कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच कर रही है, क्योंकि इतना बड़ा फर्जीवाड़ा बैंक की मिलीभगत के बिना संभव नहीं माना जा सकता। पीड़ित का यह भी आरोप है कि चेकों पर उनके फर्जी हस्ताक्षर कर पैसे निकाले गए, जो स्पष्ट रूप से बैंकिंग प्रक्रिया में गंभीर चूक और मिलीभगत की ओर इशारा करता है।
रिश्तों की मर्यादा को तार-तार करने वाला मामला
इस घटना ने न केवल पुलिस और समाज को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि जब अपनों से ही विश्वासघात होने लगे, तो इंसान कहां जाए? बुजुर्ग महेश महाराज की हालत अब बेहद दयनीय हो गई है। वह मानसिक और आर्थिक दोनों ही रूप से टूट चुके हैं।
वृद्धावस्था में जब उन्हें अपने बच्चों से सहारा और समर्थन की आवश्यकता थी, तब उन्हें धोखा और लूट का सामना करना पड़ा। एक ओर जहां समाज में बेटी को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, वहीं इस मामले ने रिश्तों के उस आदर्श को गहरे आघात पहुंचाया है।
निष्कर्ष
हरिद्वार का यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की धोखाधड़ी नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक संकट की ओर इशारा करता है – जहां पारिवारिक विश्वास को व्यक्तिगत स्वार्थ और लालच ने निगल लिया है। अब देखना होगा कि पुलिस जांच में कितनी तेजी लाई जाती है और क्या बुजुर्ग महेश महाराज को न्याय मिल पाता है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि बैंकिंग संस्थानों में पारदर्शिता और जिम्मेदारी तय हो, ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
यह मामला हर उस नागरिक के लिए चेतावनी है, जो आंख मूंदकर अपनों पर विश्वास कर अपनी पूंजी सौंप देता है। जागरूकता, सतर्कता और समय-समय पर वित्तीय दस्तावेजों की जांच ही ऐसे खतरों से बचाव का एकमात्र उपाय है।