ईद ऊल अज़हा पर खुले में कुर्बानी से बचें: मदरसा रहमानिया के प्रधानाचार्य मौलाना अज़हरुल हक़ की अपील, फोटो-वीडियो न बनाएं, खाल और अवशेष को नगर निगम के वाहन या डस्टबिन में ही डालें, वक्फ प्रशासक हाजी मुस्तकीम ने घोषित किए शहर के विभिन्न मस्जिदों व ईदगाह में नमाज़ के समय

इन्तजार रजा हरिद्वार- ईद ऊल अज़हा पर खुले में कुर्बानी से बचें: मदरसा रहमानिया के प्रधानाचार्य मौलाना अज़हरुल हक़ की अपील,
फोटो-वीडियो न बनाएं, खाल और अवशेष को नगर निगम के वाहन या डस्टबिन में ही डालें,
वक्फ प्रशासक हाजी मुस्तकीम ने घोषित किए शहर के विभिन्न मस्जिदों व ईदगाह में नमाज़ के समय
रुड़की, 6 जून 2025 | संवाददाता: इंतज़ार रज़ा
ईदुल अज़हा (बकरीद) जैसे पवित्र पर्व के अवसर पर साम्प्रदायिक सौहार्द और स्वच्छता के संदेश को आगे बढ़ाते हुए मदरसा अरबिया रहमानिया के सदर मदर्रिस (प्रधानाचार्य) मौलाना अज़हरुल हक़ गोडावी ने मुस्लिम समुदाय से एक अहम अपील की है। उन्होंने कहा कि कुर्बानी इस्लामी परंपरा का हिस्सा है, लेकिन इसे ऐसे ढंग से अंजाम दिया जाना चाहिए जिससे किसी भी धर्म या समुदाय की भावनाएं आहत न हों और नगर की साफ-सफाई पर भी असर न पड़े।
खुले स्थानों पर कुर्बानी नहीं करें: मौलाना की विनम्र अपील
मौलाना अज़हरुल हक़ ने विशेष तौर पर कहा कि मुसलमानों को चाहिए कि खुले स्थानों या सार्वजनिक मार्गों पर कुर्बानी करने से परहेज करें। इससे न सिर्फ लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं, बल्कि इससे साफ-सफाई और स्वास्थ्य की समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। उन्होंने कहा,
“ईदुल अज़हा का मकसद बलिदान और संयम है, दिखावा नहीं। इसलिए कुर्बानी घर के भीतर या अधिकृत स्थानों पर ही की जाए।”
खाल व अवशेष फेंकने को लेकर स्पष्ट निर्देश
मौलाना अज़हरुल हक़ ने यह भी स्पष्ट किया कि कुर्बानी के बाद जानवरों की खाल और अवशेषों को सड़कों, नालियों या गली-मोहल्लों में न फेंका जाए। इसके बजाय नगर निगम द्वारा उपलब्ध कराई गई गाड़ियों या निर्धारित डस्टबिन में ही इनका निस्तारण किया जाए। यह न केवल कानूनन आवश्यक है, बल्कि नागरिक जिम्मेदारी का भी हिस्सा है।
उन्होंने स्थानीय प्रशासन से अपील की कि नगर निगम द्वारा पूर्व में घोषित विशेष सफाई व्यवस्था को समयबद्ध और प्रभावी रूप से लागू किया जाए ताकि पर्व के दौरान किसी भी प्रकार की गंदगी या दुर्गंध से आमजन को परेशानी न हो।
वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी से भी बचने की सलाह
मौलाना अज़हरुल हक़ ने युवाओं से खास अपील करते हुए कहा कि कुर्बानी करते समय फोटो या वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर करना शरई दृष्टिकोण से उचित नहीं है। इससे रिया (दिखावे) का भाव उत्पन्न होता है जो इस्लाम में निंदनीय है। उन्होंने कहा:
“सोशल मीडिया पर कुर्बानी के दृश्य साझा करने से अन्य धर्मों की भावनाएं आहत हो सकती हैं और यह आपसी भाईचारे को प्रभावित करता है।”
किसी भी भड़काऊ गतिविधि से दूर रहें
मौलाना अज़हर ने मुस्लिम समाज से आग्रह किया कि ईदुल अज़हा के इस पावन अवसर पर ऐसा कोई भी कार्य न किया जाए जिससे समाज में तनाव का माहौल बने या किसी धर्म विशेष को ठेस पहुंचे। उन्होंने कहा कि धर्मों की गरिमा बनाए रखना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है और यही भारत की गंगा-जमुनी तहजीब की पहचान है।
ईद की नमाज़ के समय घोषित, प्रशासनिक समन्वय के निर्देश
वक्फ प्रशासक हाजी मुस्तकीम ने नगर में ईदुल अज़हा की नमाज को लेकर समय-सारणी जारी की है ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। नगर के प्रमुख मस्जिदों और ईदगाह में नमाज के समय इस प्रकार निर्धारित किए गए हैं:
सुबह 5:45 बजे
- इमली रोड शेख बेंचा मस्जिद
- मलकपुर चुंगी गफुरिया मस्जिद
- मस्जिद बिलाल रिक्शा स्टैंड
सुबह 6:00 बजे
- जामा मस्जिद सोत
- मस्जिद हव्वा, मरकज़ रामपुर रोड
सुबह 6:15 बजे
- मस्जिद उमर बिन खत्ताब
सुबह 7:45 बजे
- ईदगाह, रुड़की
हाजी मुस्तकीम ने सभी ईदगाह और मस्जिद प्रबंधनों से आग्रह किया है कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से नगर प्रशासन व पुलिस से पूर्ण समन्वय बनाए रखें और नमाज़ियों को सुव्यवस्थित ढंग से प्रवेश और निकास कराएं। प्रशासन द्वारा पार्किंग, पीने के पानी, शौचालय और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को लेकर आवश्यक प्रबंध किए जा रहे हैं।
समाजसेवियों और प्रशासन की भूमिका अहम
स्थानीय समाजसेवियों, नगर निगम और पुलिस प्रशासन की भूमिका इस पर्व को शांतिपूर्ण और स्वच्छ बनाने में निर्णायक होगी। नगर आयुक्त ने भी सभी स्वच्छता निरीक्षकों को निर्देशित किया है कि ईद के तीनों दिन विशेष रूप से सफाई की व्यवस्था कराई जाए और कुर्बानी के अवशेषों को समय से उठाया जाए।
पर्व का मनाएं संयम व शांति के साथ
ईदुल अज़हा का पर्व सिर्फ त्याग का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह समाज में सौहार्द, सहिष्णुता और नागरिक उत्तरदायित्व का भी संदेश देता है। मौलाना अज़हरुल हक़ गोडावी की यह अपील एक अहम उदाहरण है कि धार्मिक पर्वों को सामाजिक समरसता के साथ मनाना ही सच्चे धर्म की परंपरा है।
नगर निगम, प्रशासन, समाजसेवी संगठन और मुस्लिम समाज यदि इस दिशा में मिलकर कार्य करें, तो रुड़की शहर एक बार फिर संयम और शांति की मिसाल कायम कर सकता है।