पंचायत चुनावों से हटी हाईकोर्ट की रोक,, सरकार को मिली बड़ी राहत,, निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होंगे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव,, नामांकन की तिथियों में तीन दिन का संशोधन,, आयोग जल्द करेगा नया शेड्यूल जारी

इन्तजार रजा हरिद्वार- पंचायत चुनावों से हटी हाईकोर्ट की रोक,,
सरकार को मिली बड़ी राहत,, निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होंगे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव,,
नामांकन की तिथियों में तीन दिन का संशोधन,, आयोग जल्द करेगा नया शेड्यूल जारी
इन्तजार रज़ा, नैनीताल/हरिद्वार।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में चल रहे पंचायत चुनावों पर 23 जून को लगाई गई रोक को हटा लिया है, जिससे राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग को बड़ी राहत मिली है। न्यायालय ने शुक्रवार, 27 जून को सुनवाई के दौरान स्पष्ट आदेश देते हुए कहा कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कराए जाएं।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि सरकार याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करे, लेकिन चुनावी प्रक्रिया बाधित नहीं होगी। इसके साथ ही नामांकन की अंतिम तिथि को तीन दिन आगे बढ़ाने और चुनाव कार्यक्रम को उसी अनुसार संशोधित करने की अनुमति दी गई है।
याचिकाओं की भरमार, लेकिन चुनावों में नहीं पड़ेगा असर
इस मामले में कुल 40 से अधिक याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें प्रमुख रूप से आरक्षण रोस्टर, ग्राम पंचायतों में वर्ग विशेष को बार-बार प्रतिनिधित्व देने, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्षों की सीटों के आरक्षण निर्धारण जैसे मुद्दे उठाए गए थे। याचिकाकर्ता गणेश दत्त कांडपाल और उनके अधिवक्ता शोभित सहारिया की मुख्य याचिका को अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ते हुए एक साथ सुनवाई की गई।
वहीं, अधिवक्ता आदित्य सिंह ने डोईवाला विधानसभा में ग्राम पंचायतों में 63 प्रतिशत सीटों के आरक्षण को असंवैधानिक बताया और कहा कि यह सामान्य वर्ग की महिलाओं को भी आरक्षित मानकर गिनने की त्रुटि पर आधारित है। हालांकि, कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि महिलाओं को दिए गए 33% आरक्षण को वर्गवार विभाजित किया जाता है — अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग में।
सरकार की दलील: नया रोस्टर, नई प्रक्रिया
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता सूर्य नारायण बाबुलकर और मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मौजूदा आरक्षण रोस्टर को शून्य घोषित करना आवश्यक था। उन्होंने बताया कि यह पंचायत चुनाव प्रथम चरण की तरह माने जाने चाहिए ताकि आरक्षण की प्रक्रिया संविधान के अनुरूप पूरी की जा सके।
इस पर न्यायालय ने सहमति जताई कि जब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक चुनाव प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि किसी प्रत्याशी को आपत्ति है तो वह चुनाव के बाद न्यायालय में अपना पक्ष रख सकता है, लेकिन चुनाव की प्रक्रिया नहीं रुकेगी।
चुनाव आयोग भी तैयार, नामांकन तिथि बढ़ी तीन दिन
पंचायती राज सचिव चंद्रेश यादव ने निर्णय के बाद मीडिया से बात करते हुए बताया कि चुनाव आयोग जल्द ही संशोधित कार्यक्रम जारी करेगा। उन्होंने कहा कि नामांकन की अंतिम तिथि को तीन दिन के लिए आगे बढ़ा दिया गया है और उसके अनुसार अन्य तिथियों में भी समायोजन किया जाएगा।
यह भी जानकारी दी गई कि ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के लिए आरक्षण व्यवस्था को लेकर जो प्रश्न उठाए गए थे, उनका जवाब आयोग और सरकार अदालत में देंगे, लेकिन चुनाव प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- स्टे हटाया गया – 23 जून को पंचायती चुनावों पर लगाई गई रोक को हाईकोर्ट ने हटा लिया।
- चुनाव प्रक्रिया यथावत – चुनाव निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कराए जाएंगे।
- सरकार को राहत – हाईकोर्ट ने सरकार को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा।
- आरक्षण विवाद जारी – याचिकाओं में आरक्षण रोस्टर, महिला आरक्षण की व्याख्या पर सवाल।
- नामांकन की तारीख बढ़ी – नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि तीन दिन आगे बढ़ी।
- नया शेड्यूल जल्द – चुनाव आयोग संशोधित कार्यक्रम शीघ्र जारी करेगा।
कानूनी दृष्टिकोण से क्या निकलता है निष्कर्ष?
- अनुच्छेद 243 के तहत पंचायती राज व्यवस्था को संविधानिक संरक्षण प्राप्त है, और समयबद्ध चुनाव आवश्यक हैं।
- बार-बार एक ही वर्ग को प्रतिनिधित्व देना संविधान के ‘घूर्णन आरक्षण’ सिद्धांत के खिलाफ है, लेकिन इसके लिए चुनाव प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आरक्षण पारदर्शिता और समयबद्ध तरीके से होना चाहिए, जिसे कोर्ट ने इस आदेश में प्राथमिकता दी।
पंचायती लोकतंत्र की दिशा में राहत और स्थायित्व
हाईकोर्ट के निर्णय से पंचायत चुनावों को लेकर बनी असमंजस की स्थिति समाप्त हो गई है। अब राज्य में पंचायत चुनाव समय पर संपन्न हो सकेंगे, जिससे स्थानीय शासन व्यवस्था को गति मिलेगी। हालांकि, याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे आने वाले समय में पंचायत व्यवस्था के ढांचे और आरक्षण नीति पर दूरगामी प्रभाव डाल सकते हैं।
“हम मेरिट के आधार पर सभी को सुनेंगे,” — यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश ने देकर संकेत दिया है कि आरक्षण संबंधी विसंगतियों की गहन पड़ताल अदालत भविष्य में जरूर करेगी, लेकिन फिलहाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नहीं रोका जाएगा।
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