उत्तराखंड के स्कूलों में अनिवार्य होंगे गीता श्लोक,, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बड़ा फैसला,, विद्यार्थियों में नैतिक शिक्षा, आत्मबल और संस्कारों की दिशा में नई पहल

इन्तजार रजा हरिद्वार- उत्तराखंड के स्कूलों में अनिवार्य होंगे गीता श्लोक,,
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बड़ा फैसला,, विद्यार्थियों में नैतिक शिक्षा, आत्मबल और संस्कारों की दिशा में नई पहल
हरिद्वार, 18 जुलाई 2025….उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए प्रदेश के सभी विद्यालयों में भगवद् गीता के श्लोकों का पाठ अनिवार्य करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। इस निर्णय को लेकर प्रशासनिक अमले ने तुरंत अमल शुरू कर दिया है। हरिद्वार जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि इस पहल का मुख्य उद्देश्य बच्चों में नैतिक मूल्यों, आत्मबल, अनुशासन और भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान का भाव विकसित करना है।
प्रारंभिक चरण में जागरूकता अभियान
हरिद्वार के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि, “मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुरूप शिक्षा विभाग की ओर से सभी स्कूलों को लिखित आदेश भेजे जा रहे हैं। फिलहाल इस योजना का प्रचार-प्रसार प्रारंभ हो चुका है ताकि बच्चों और अभिभावकों को इस निर्णय के उद्देश्य और लाभ की स्पष्ट जानकारी मिल सके।”
उन्होंने कहा कि कक्षा अनुसार उपयुक्त श्लोकों का चयन कर पाठ्यक्रम में समावेश किया जाएगा, जिससे छोटे बच्चों को सरल भाषा में श्लोकों का अर्थ भी समझाया जा सके। इसके लिए शिक्षकों को भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।
नैतिक मूल्यों के साथ मानसिक मजबूती की दिशा में कदम
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस निर्णय के पीछे का कारण स्पष्ट करते हुए कहा –
“हमारे देश की संस्कृति हजारों वर्षों पुरानी है, जिसमें गीता जैसे ग्रंथ आज भी जीवन का मार्गदर्शन देते हैं। यदि हम अपने बच्चों को प्रारंभ से ही इन शाश्वत ज्ञानों से जोड़ें, तो वे न केवल अच्छे विद्यार्थी बनेंगे बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक भी।”
उन्होंने आगे कहा कि इस निर्णय से विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, धैर्य और संकल्पशक्ति जैसे गुणों का विकास होगा, जो उन्हें जीवन की चुनौतियों से लड़ने में मदद करेंगे।
राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा तेज
मुख्यमंत्री के इस फैसले के बाद प्रदेशभर में राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर इस पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। जहां एक ओर भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के समर्थक इस फैसले को “आध्यात्मिक पुनर्जागरण” का प्रतीक बता रहे हैं, वहीं कुछ वर्गों का मानना है कि इसे वैकल्पिक रूप में भी रखा जा सकता था।
हालांकि सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि यह निर्णय किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए नहीं बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक विकास की दृष्टि से लिया गया है।
शिक्षकों की भूमिका और प्रशिक्षण
शिक्षा विभाग की ओर से बताया गया है कि गीता श्लोकों के प्रभावी पठन-पाठन के लिए प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च स्तर के शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके लिए विभाग अलग से मॉड्यूल तैयार कर रहा है। शिक्षकों को श्लोकों के अर्थ, उनके जीवन में महत्व और उनके प्रभाव को समझाने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
विद्यार्थी और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
अभी तक जो प्रतिक्रिया सामने आई है, उसमें अधिकांश अभिभावक इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं। हरिद्वार निवासी और एक स्कूल की अभिभावक, श्रीमती कविता शर्मा ने बताया –
“यह एक बेहतरीन पहल है। गीता का ज्ञान बच्चों में एक सकारात्मक सोच और अनुशासन की भावना जागृत करेगा।”
वहीं कुछ छात्र इसे एक नया अनुभव मान रहे हैं और उत्सुकता जता रहे हैं कि उन्हें अब प्राचीन भारतीय ग्रंथों से कुछ नया सीखने को मिलेगा।
🗣️ मयूर दीक्षित, जिलाधिकारी हरिद्वार
“हम मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार इस निर्णय को सभी स्कूलों में लागू करने की प्रक्रिया में हैं। प्राथमिक चरण में प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और जल्द ही प्रत्येक विद्यालय को लिखित दिशा-निर्देश भेजे जाएंगे। यह विद्यार्थियों में नैतिक शिक्षा, संस्कार और आत्मबल विकसित करने की दिशा में एक अहम कदम होगा।”“गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। इसके श्लोकों में जीवन की हर स्थिति के लिए समाधान निहित है। बच्चों में यदि शुरू से ही इन मूल्यों की शिक्षा दी जाए, तो वे अच्छे इंसान और सफल नागरिक बन सकते हैं।”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का यह निर्णय उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था को एक आध्यात्मिक और नैतिक दिशा देने वाला कदम माना जा रहा है। आने वाले समय में इसके क्रियान्वयन और प्रभाव को लेकर राज्य भर में इसकी प्रभावशीलता पर चर्चा जारी रहेगी। लेकिन एक बात तय है – गीता श्लोकों की यह पहल विद्यार्थियों में सोच और व्यवहार के स्तर पर एक सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है।
यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो यह अन्य राज्यों के लिए भी एक प्रेरणादायी मॉडल बन सकता है।