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गंगा के किनारे मौत के कारोबार पर हाईकोर्ट का हथौड़ा,, हरिद्वार के 48 स्टोन क्रशरों को तुरंत बंद करने का आदेश,, डीएम, एसएसपी को बिजली-पानी कनेक्शन काटने और एक हफ्ते में रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश

इन्तजार रजा हरिद्वार- गंगा के किनारे मौत के कारोबार पर हाईकोर्ट का हथौड़ा,,

हरिद्वार के 48 स्टोन क्रशरों को तुरंत बंद करने का आदेश,,

डीएम, एसएसपी को बिजली-पानी कनेक्शन काटने और एक हफ्ते में रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश

इन्तज़ार रज़ा, हरिद्वार | विशेष रिपोर्ट

हरिद्वार में गंगा नदी किनारे चल रहे अवैध स्टोन क्रशरों पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बड़ी सख्ती दिखाई है। बुधवार रात को कोर्ट ने 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल प्रभाव से बंद करने और उनके बिजली-पानी के कनेक्शन काटने का आदेश दिया। यह ऐतिहासिक फैसला जस्टिस रविंद्र मैठाणी और जस्टिस पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया।

गंगा के किनारे अवैध खनन का बड़ा खुलासा

यह याचिका हरिद्वार स्थित मातृ सदन संस्था द्वारा दाखिल की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि रायवाला से लेकर भोगपुर तक और कुंभ मेला क्षेत्र में खुलेआम गंगा नदी में अवैध खनन किया जा रहा है। यह भी कहा गया कि राज्य और केंद्र सरकार के द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को पूरी तरह नजरअंदाज़ कर दिया गया है, जबकि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन बार-बार चेतावनी जारी कर चुका है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इन क्रशरों से निकलने वाला धूल और अवशेष सीधे गंगा में जाकर गिर रहा है, जिससे न सिर्फ जलप्रदूषण फैल रहा है बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था और स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है।

अदालत ने कहा- ‘यह कोर्ट की अवमानना है’

खंडपीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “न्यायालय के पहले दिए गए आदेशों का पालन न करना, सीधे तौर पर अदालत की अवमानना है।” अदालत ने जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए कि वे एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई कर रिपोर्ट दाखिल करें। अगली सुनवाई की तारीख 12 सितंबर तय की गई है।

यह भी स्पष्ट किया गया कि केवल नोटिस जारी कर कार्रवाई की इतिश्री नहीं मानी जाएगी, बल्कि मौके पर जाकर क्रशरों को बंद करना और उनके बिजली-पानी की आपूर्ति तत्काल रोकना अनिवार्य होगा।

कौन हैं जिम्मेदार? प्रशासन पर भी उठे सवाल

इस आदेश के बाद सवाल उठ रहे हैं कि यदि अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा तो स्थानीय प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका क्या थी? क्या ये विभाग केवल आंखें मूंदकर इन अवैध गतिविधियों को संरक्षण दे रहे थे?

हरिद्वार में पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय नागरिकों ने पहले भी कई बार इन क्रशरों के खिलाफ आवाज उठाई थी, लेकिन अब जाकर हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन हरकत में आया है।

गंगा बचाओ आंदोलन को मिली नैतिक जीत

मातृ सदन की यह कानूनी लड़ाई वास्तव में उस जन आंदोलन का हिस्सा है जो गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए वर्षों से लड़ा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी तक बार-बार कहा जा चुका है कि गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक आत्मा है।

इस निर्णय को ‘गंगा बचाओ’ आंदोलन की एक बड़ी नैतिक जीत माना जा रहा है। यदि यह आदेश समयबद्ध तरीके से लागू होता है तो हरिद्वार क्षेत्र में गंगा का प्रवाह और पर्यावरणीय संतुलन फिर से बहाल हो सकता है।

स्थानीय निवासियों में खुशी, लेकिन डर भी कायम

ग्रामीण इलाकों के लोगों में इस आदेश के बाद आशा की किरण जगी है। विशेषकर रायवाला, भोगपुर, सिडकुल, शांतरशाह और आसपास के गांवों में लोग लंबे समय से इन क्रशरों की वजह से होने वाले प्रदूषण, ध्वनि और स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान थे।

हालांकि कुछ लोगों को यह भी डर सता रहा है कि कहीं यह आदेश सिर्फ कागज़ी ना रह जाए, जैसा कि पहले भी कई बार हुआ है। स्थानीय निवासी सुरेश चौहान कहते हैं, “हमने कई बार डीएम और एसडीएम को ज्ञापन दिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसका सख्ती से पालन होना चाहिए।”

राजनीतिक प्रतिक्रिया और आगे की रणनीति

इस पूरे प्रकरण पर फिलहाल राज्य सरकार की कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री कार्यालय ने भी जिलाधिकारी से रिपोर्ट मांगी है। वहीं उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “हमें इस आदेश की प्रति मिल गई है और हम अपनी कार्रवाई की शुरुआत कर चुके हैं।”

मातृ सदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा कि, “यह जनता की नहीं बल्कि प्रकृति की जीत है। हम अदालत का आभार व्यक्त करते हैं, लेकिन हमारी निगरानी अब और तेज होगी कि कहीं आदेश के बाद फिर कोई अवैध गतिविधि शुरू न हो जाए।”

क्या कहते हैं कानूनविद और विशेषज्ञ

पर्यावरण कानूनों के जानकार अधिवक्ता अनूप बहुगुणा का कहना है कि, “यह आदेश एक मिसाल बन सकता है अगर प्रशासन समय पर इसका पालन करता है। नदियों के किनारे खनन को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट सख्त रुख अपना चुका है।”

वहीं, “गंगा नदी के प्रति हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए शुद्ध जल और पर्यावरण नहीं छोड़ सकते तो हमारे विकास का कोई औचित्य नहीं बचता।”

 अब जिम्मेदारी प्रशासन की

इस निर्णय के बाद जिम्मेदारी अब हरिद्वार प्रशासन की है कि वह 48 स्टोन क्रशरों को न केवल बंद कराए, बल्कि इस पूरी प्रक्रिया की पारदर्शी रिपोर्ट अदालत में पेश करे। यदि आदेश की अनदेखी हुई तो यह अदालत की अवमानना मानी जाएगी, जिसकी सजा तय है।

यह मामला एक बार फिर यह साबित करता है कि जब जनहित में लड़ाई होती है और अदालत सख्त होती है, तब भी ढुलमुल सिस्टम को जवाब देना ही पड़ता है।

 

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