अपराधअलर्टउत्तराखंडएक्सक्लूसिव खबरेंदुर्घटनाधर्म और आस्थानिरीक्षणन्यायालयपॉलिटिकल तड़काप्रतिबंधितप्रदर्शनप्रशासनबदलावशिक्षास्पोर्ट्सस्वास्थ्य

शिक्षा का मंदिर, जर्जर ढांचे में तब्दील,, जर्जर भवन में पढ़ाई,, कभी भी हो सकती है अनहोनी राजकीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज की खस्ताहाल इमारतों में रोज़ दांव पर लगती है छात्रों की जान सरकारी अनदेखी से बढ़ा खतरा,, वर्षों से सिर्फ आश्वासन, नहीं मिला स्थायी समाधान

इन्तजार रजा हरिद्वार-शिक्षा का मंदिर, जर्जर ढांचे में तब्दील,,

जर्जर भवन में पढ़ाई,, कभी भी हो सकती है अनहोनी
राजकीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज की खस्ताहाल इमारतों में रोज़ दांव पर लगती है छात्रों की जान
सरकारी अनदेखी से बढ़ा खतरा,, वर्षों से सिर्फ आश्वासन, नहीं मिला स्थायी समाधान

हरिद्वार, 4 अगस्त 2025।
राजकीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज, हरिद्वार—जिसका ऐतिहासिक गौरव 1919 से जुड़ा है—आज गंभीर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। एक ओर जहां ये संस्थान उत्तराखंड में आयुर्वेद चिकित्सा की आधारशिला माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसके पुराने शैक्षणिक भवन अब मौत के साए में तब्दील हो चुके हैं। खासकर बीएमएस के छात्र-छात्राएं खस्ताहाल और जर्जर ढांचे में पढ़ाई करने को मजबूर हैं, जहां दीवारों की दरारें, झड़ती छतें और बारिश में टपकता पानी किसी भी समय एक बड़े हादसे को जन्म दे सकता है।

हम जब कॉलेज परिसर में पहुंचे, तो वहां की भयावह स्थिति कैमरे में दर्ज हुई। क्लासरूम्स की छत से झड़ता सीमेंट, सीलन से सनी दीवारें, कमरों में घुप्प अंधेरा और जंग खाए पंखे, सभी मिलकर किसी खंडहर जैसी तस्वीर पेश करते हैं। ऐसी स्थिति में रोज़ाना दर्जनों छात्र जान जोखिम में डालकर क्लास अटेंड कर रहे हैं।

छात्राओं ने जताई चिंता, कहा—सुनवाई नहीं, बस आश्वासन

कॉलेज की बीएमएस फाइनल ईयर की छात्रा अदिति त्यागी बताती हैं, “यह कोई नई बात नहीं है। जबसे हमने यहां पढ़ाई शुरू की, तबसे ये स्थिति बनी हुई है। हर बार शिकायत की, मगर कोई समाधान नहीं हुआ। किसी दिन कुछ गिर जाए तो कौन ज़िम्मेदार होगा?”

इसी तरह अदिति सिंह, बीएमएस फाइनल ईयर की ही छात्रा कहती हैं, “बारिश के दिनों में हालात और भी खराब हो जाते हैं। कमरे में पानी टपकता है, दीवारों से सीलन की बदबू आती है और पढ़ाई में ध्यान लगाना मुश्किल हो जाता है। हमें डर लगा रहता है कि कोई हादसा न हो जाए।”

संजना सिंह, थर्ड ईयर की छात्रा कहती हैं, “हर साल कहा जाता है कि जल्द मरम्मत शुरू होगी। मगर वो ‘जल्द’ पिछले कई सालों से नहीं आया। यहां पढ़ाई कम, डर ज्यादा लगता है।”

प्रशासन का दावा—मरम्मत जल्द शुरू होगी, छात्रों की सुरक्षा प्राथमिकता

कॉलेज के प्रचार्य और अधीक्षक प्रोफेसर डॉ. दिनेश चंद्र सिंह ने संवाददाता से बातचीत में बताया कि, “भवन की जर्जर हालत को लेकर कई बार शासन और विश्वविद्यालय को लिखित सूचना दी जा चुकी है। हमने सांसद, विधायक, अपर सचिव सभी को अवगत करा दिया है। बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए फिलहाल म्यूजियम रूम में अस्थायी कक्षाएं चलाई जा रही हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि शासन की ओर से मरम्मत का आश्वासन दिया गया है और जल्दी काम शुरू होने की संभावना है। “हम हर स्तर पर प्रयास कर रहे हैं कि छात्रों को सुरक्षित वातावरण में शिक्षा मिले। लेकिन हम भी चाहते हैं कि शासन स्तर से प्राथमिकता दी जाए,” उन्होंने जोड़ा।

100 साल पुराना भवन, अब बन चुका है खतरे की घंटी

ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज की यह इमारत वर्ष 1919 में बनी थी। तबसे अब तक इसका कोई बड़ा पुनर्निर्माण नहीं हुआ है। एक सदी पुरानी यह संरचना अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इसके भीतर अब भी शैक्षणिक गतिविधियां चल रही हैं। कहीं कोई दीवार हल्की सी धंस जाए या कोई बीम कमजोर पड़ जाए, तो जानलेवा स्थिति बन सकती है।

कॉलेज में हर साल सैकड़ों छात्र-छात्राएं बीएमएस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेते हैं और अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं। मगर जिस माहौल में उन्हें पढ़ाई करनी पड़ रही है, वह न केवल मानसिक दबाव पैदा करता है, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी गंभीर चुनौती पेश करता है।

न सरकार जागी, न व्यवस्था ने चेतना दिखाई

छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों की चिंताओं के बावजूद अब तक न राज्य सरकार और न उच्च शिक्षा विभाग ने इस मसले को गंभीरता से लिया है। हर वर्ष बजट प्रस्तावों में मरम्मत और विकास के नाम पर योजनाएं दिखाई तो देती हैं, लेकिन धरातल पर कोई ठोस कार्य नहीं होता।

यह स्थिति केवल एक संस्थान की नहीं, बल्कि उत्तराखंड के कई पुराने सरकारी शिक्षण संस्थानों की है, जहां जर्जर भवनों में पढ़ाई कराना प्रशासनिक लापरवाही और व्यवस्था की विफलता का प्रतीक है।

जरूरत है तत्काल हस्तक्षेप की, नहीं तो हो सकता है बड़ा हादसा

ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज की यह इमारत अब ऐसी अवस्था में पहुंच चुकी है कि एक बड़ा हादसा कभी भी हो सकता है। यदि समय रहते मरम्मत या पुनर्निर्माण की कार्यवाही नहीं होती, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।

यह जरूरी है कि शासन, विश्वविद्यालय प्रशासन और संबंधित विभाग बिना और देर किए इस इमारत की मरम्मत या पुनर्निर्माण की योजना को धरातल पर उतारें। साथ ही अस्थायी तौर पर छात्रों को सुरक्षित कक्षाओं में स्थानांतरित कर उनके अध्ययन को सुचारु रखा जाए।

शिक्षा का मंदिर, जर्जर ढांचे में तब्दील

राजकीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज एक ऐतिहासिक संस्थान है। यह आयुर्वेद जैसी पौराणिक चिकित्सा पद्धति की शिक्षा का प्रमुख केंद्र है। मगर जिस प्रकार से यहां विद्यार्थियों की जान को जोखिम में डालकर शिक्षा दी जा रही है, वह न केवल शैक्षणिक मानकों का अपमान है, बल्कि मानवाधिकारों का भी हनन है।

सरकार और शिक्षा विभाग को यह समझना होगा कि शिक्षा का मतलब सिर्फ पाठ्यक्रम चलाना नहीं, बल्कि सुरक्षित, संरचित और समर्थ वातावरण देना भी है। जब तक छात्रों को भयमुक्त वातावरण नहीं मिलेगा, तब तक उनका सर्वांगीण विकास संभव नहीं है।

यह सवाल अब भी बना हुआ है—क्या शासन की नींद किसी हादसे के बाद खुलेगी, या उससे पहले कोई ठोस कदम उठाया जाए

Intzar Raza, Daily Live Uttarakhand

Related Articles

Back to top button