एक राष्ट्र, एक चुनाव’: लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में निर्णायक कदम, देहरादून में आयोजित संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में हुई व्यापक चर्चा, बार-बार चुनाव से होने वाली आर्थिक, प्रशासनिक और विकासात्मक क्षति पर जताई चिंता

इन्तजार रजा हरिद्वार- एक राष्ट्र, एक चुनाव’: लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में निर्णायक कदम,
देहरादून में आयोजित संयुक्त संसदीय समिति की बैठक में हुई व्यापक चर्चा,
बार-बार चुनाव से होने वाली आर्थिक, प्रशासनिक और विकासात्मक क्षति पर जताई चिंता
देहरादून: देशभर में चल रही ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (वन नेशन, वन इलेक्शन) की चर्चाओं के बीच देहरादून में आयोजित संयुक्त संसदीय समिति की एक अहम बैठक में इस विषय पर विस्तृत मंथन किया गया। इस बैठक में शामिल हुए प्रतिनिधियों ने इस विचार को लोकतंत्र को सशक्त और नागरिकों के जीवन को सरल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल बताया।
बैठक में बोलते हुए सदस्यों ने स्पष्ट किया कि बार-बार चुनाव कराने से न केवल देश की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ता है, बल्कि बार-बार लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता से विकास कार्यों की गति भी बाधित होती है। साथ ही, चुनावों के आयोजन में बड़ी संख्या में प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षकों और कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है, जिससे आम नागरिकों को सेवाओं के अभाव में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
लोकतंत्र और विकास दोनों की रक्षा करेगा एकजुट चुनाव
बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि यदि लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो इससे समय, संसाधन और श्रम की भारी बचत होगी। इससे जहां एक ओर सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा, वहीं विकास परियोजनाएं भी बिना बाधा के आगे बढ़ सकेंगी।
प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि बार-बार चुनावी राजनीति और घोषणाओं से जनता में भ्रम की स्थिति बनती है और सुशासन की भावना कमजोर होती है। ऐसे में एक बार में सम्पूर्ण चुनाव कराकर एक स्थायी और स्पष्ट जनादेश प्राप्त करना लोकतंत्र की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगा।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ हो सकता है मील का पत्थर
बैठक में इस प्रस्ताव को लोकतंत्र के लिए एक ‘मील का पत्थर’ बताया गया। वक्ताओं ने यह विश्वास जताया कि यदि यह विचार व्यवहार में लाया जाता है, तो यह भारत को न केवल एक राजनीतिक स्थिरता देगा बल्कि आर्थिक रूप से भी सुदृढ़ करेगा।
समिति ने इस दिशा में आगे की रणनीतियों पर भी चर्चा की और सुझाव दिया कि इस प्रणाली को लागू करने से पहले सभी हितधारकों से व्यापक संवाद और सहमति सुनिश्चित की जाए।