अपराधउत्तराखंडएक्सक्लूसिव खबरेंधर्म और आस्थापॉलिटिकल तड़काप्रशासन

उत्तराखंड में अवैध मजारों पर सख्ती तेज, हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को हर जिले में सर्वे का आदेश दिया, धामी सरकार के अभियान को मिला न्यायालय का समर्थन

इन्तजार रजा हरिद्वार- उत्तराखंड में अवैध मजारों पर सख्ती तेज,

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को हर जिले में सर्वे का आदेश दिया,

धामी सरकार के अभियान को मिला न्यायालय का समर्थन


नैनीताल/हरिद्वार: देवभूमि उत्तराखंड में अवैध तरीके से उग आई मजारों पर अब सख्त कार्रवाई का रास्ता साफ हो गया है। नैनीताल हाईकोर्ट की जस्टिस राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि राज्य के प्रत्येक जिले में अवैध रूप से स्थापित मजारों का सर्वेक्षण कराया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सभी जिलाधिकारियों को इस कार्य में लगाया जाए और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाए।

कोर्ट का यह निर्देश एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि धार्मिक स्थलों के नाम पर अवैध कब्जे तेजी से बढ़ रहे हैं और शासन-प्रशासन इस पर मौन साधे बैठा है। हाईकोर्ट ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को जवाबदेही तय करने के लिए कहा है।

धामी सरकार की अब तक की कार्रवाई…….मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने पिछले कुछ महीनों में अतिक्रमण विरोधी अभियान को तेज किया है। खासकर धर्म स्थलों के नाम पर हुए अतिक्रमणों को चिन्हित कर हटाने की प्रक्रिया कई जिलों में शुरू हो चुकी है। मंदिरों, गुरुद्वारों, चर्चों और मजारों — सभी प्रकार के अवैध निर्माणों पर कार्रवाई का दावा किया गया है।

हालांकि, विपक्ष ने सरकार पर पक्षपात के आरोप लगाए थे कि सरकार विशेष धार्मिक समूहों को निशाना बना रही है। इसी पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट का यह निर्देश आया है, जो कार्रवाई को न्यायिक समर्थन देता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी धर्म या समुदाय के साथ भेदभाव नहीं हो, बल्कि कानून के अनुरूप ही सभी अवैध कब्जों पर कार्रवाई हो।मुख्यमंत्री धामी कई बार सार्वजनिक मंचों से कह चुके हैं कि “उत्तराखंड को अतिक्रमण मुक्त बनाना हमारी प्राथमिकता है।” हाईकोर्ट के निर्देश से सरकार के इस मिशन को कानूनी ताकत भी मिल गई है।

हर जिले में होगी व्यापक जांच……हाईकोर्ट ने कहा है कि सर्वेक्षण कार्य व्यापक और निष्पक्ष होना चाहिए। सिर्फ प्रमुख शहरों या कस्बों में ही नहीं, बल्कि गांव-देहात और दूरदराज के क्षेत्रों में भी मजारों की स्थिति का आकलन किया जाए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सर्वेक्षण के दौरान प्रत्येक मजार के निर्माण का वर्ष, स्वामित्व दस्तावेज, स्थानीय प्रशासन से मिली कोई अनुमति अथवा न मिली हो — इन सब जानकारियों को रिपोर्ट में सम्मिलित किया जाए।

इसके अतिरिक्त कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी मजार के अस्तित्व से सार्वजनिक संपत्ति या सड़क पर अवरोध उत्पन्न हो रहा है, तो उसका भी स्पष्ट विवरण दिया जाए। कोर्ट ने मुख्य सचिव से यह अपेक्षा भी जताई है कि पूरे अभियान में पारदर्शिता बरती जाए और किसी भी प्रकार के धार्मिक तनाव से बचा जाए।

उत्तराखंड सरकार अब जल्द ही सभी जिलाधिकारियों को विस्तृत आदेश जारी कर सकती है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, सर्वेक्षण के लिए विशेष टीमें गठित की जाएंगी, जिनमें राजस्व, पुलिस और नगर निकायों के अधिकारी शामिल होंगे। संभवतः एक महीने के भीतर सर्वेक्षण रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने का लक्ष्य रखा जाएगा।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया…..हाईकोर्ट के इस आदेश पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा ने इसे “न्याय का मार्गदर्शन” बताते हुए कहा कि देवभूमि की पवित्रता को बनाए रखने के लिए अवैध निर्माणों पर कठोर कार्रवाई जरूरी है। वहीं कांग्रेस ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह निष्पक्षता से काम करे और किसी समुदाय विशेष को निशाना बनाने की कोशिश न करे।

वहीं, सामाजिक संगठनों ने भी कोर्ट के इस निर्देश का स्वागत किया है। कई संगठनों का कहना है कि यदि अतिक्रमण धार्मिक स्थलों के नाम पर भी हो रहा है, तो उसे भी कानून के दायरे में लाना आवश्यक है। पर्यावरणविदों ने भी समर्थन व्यक्त किया है, क्योंकि पहाड़ी इलाकों में बेतरतीब निर्माण प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को बढ़ाते हैं।

आगे की राह………हाईकोर्ट के आदेश ने सरकार की जिम्मेदारी बढ़ा दी है। यदि सर्वेक्षण सही तरीके से और बिना किसी पक्षपात के किया गया, तो उत्तराखंड में अवैध धार्मिक निर्माणों पर अंकुश लग सकता है। इससे न केवल राजकीय संपत्ति की रक्षा होगी, बल्कि भविष्य में धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने के प्रयासों पर भी लगाम लगाई जा सकेगी।

फिलहाल सभी की निगाहें सरकार की अगली कार्यवाही पर टिकी हैं। सर्वेक्षण की प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष और पारदर्शी रहती है, यह आने वाले समय में साफ हो जाएगा। देवभूमि में “अवैध धर्मस्थलों के अतिक्रमण मुक्त अभियान” की सफलता अब राज्य सरकार की कार्यकुशलता और संकल्प पर निर्भर करेगी।

Related Articles

Back to top button
× Contact us