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भाजपा ने पूर्व विधायक सुरेश राठौर को 6 साल के लिए किया पार्टी से निष्कासित,, अनुशासनहीनता, अभद्र भाषा और विवादित निजी जीवन पड़ा भारी,, पार्टी ने दिखाया सख्त रुख, कहा – चरित्रहीनता और दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं

इन्तजार रजा हरिद्वार-  भाजपा ने पूर्व विधायक सुरेश राठौर को 6 साल के लिए किया पार्टी से निष्कासित,,

अनुशासनहीनता, अभद्र भाषा और विवादित निजी जीवन पड़ा भारी,,

पार्टी ने दिखाया सख्त रुख, कहा – चरित्रहीनता और दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं


देहरादून, 28 जून 2025 – उत्तराखंड की राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने पूर्व विधायक सुरेश राठौड़ को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। भाजपा की प्रदेश अनुशासन समिति ने यह कार्रवाई उनके अनुशासनहीन आचरण, अभद्र भाषा के इस्तेमाल और निजी जीवन में पैदा हुए गंभीर विवादों के चलते की है।

पार्टी ने यह निर्णय स्पष्ट किया है कि किसी भी नेता का आचरण पार्टी की गरिमा से ऊपर नहीं है और जो भी संगठन की मर्यादा का उल्लंघन करेगा, उसे कड़ी सजा दी जाएगी। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर चौहान ने बयान जारी कर कहा कि “पार्टी में किसी प्रकार के अनुशासनहीन और चरित्रहीन आचरण की कोई जगह नहीं है।”

❖ अभद्र भाषा और आचरण बना निष्कासन का आधार

सूत्रों के अनुसार सुरेश राठौड़ द्वारा बीते कुछ समय में सार्वजनिक और संगठनात्मक मंचों पर कई बार ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया जो पार्टी की मर्यादा के विपरीत थे। सोशल मीडिया, मंचों और अंदरूनी बैठकों में उनके बयानों को लेकर शिकायतें लगातार आ रही थीं।

विशेषकर, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के प्रति असम्मानजनक भाषा के प्रयोग को लेकर अनुशासन समिति ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया था। जवाब असंतोषजनक पाए जाने पर अंतिम निर्णय लेते हुए यह कठोर कार्रवाई की गई।

भाजपा नेतृत्व का मानना है कि ऐसे बयानों से न केवल संगठन की छवि को नुकसान होता है, बल्कि कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ता है। भाजपा, जो कि ‘संघ-प्रेरित अनुशासन आधारित संगठन’ मानी जाती है, वहां ऐसे बर्ताव को स्वीकार नहीं किया जा सकता।


❖ निजी जीवन का विवाद भी बना मुद्दा

पूर्व विधायक सुरेश राठौड़ की दूसरी शादी को लेकर भी पार्टी में लंबे समय से असंतोष बना हुआ था। हालांकि यह उनका निजी मामला था, लेकिन इसकी सार्वजनिकता और उससे जुड़े विवादों ने भाजपा की छवि को प्रभावित किया। पार्टी ने पहले इस मुद्दे को व्यक्तिगत मानते हुए नजरअंदाज किया, लेकिन जब इसकी वजह से पार्टी को सार्वजनिक आलोचना झेलनी पड़ी, तो मजबूरन इसे भी संज्ञान में लिया गया।

दूसरी शादी के मामले में भी नैतिकता और सार्वजनिक जीवन की गरिमा पर सवाल उठे। कुछ स्थानीय महिला मोर्चा नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं ने इस पर खुलकर नाराज़गी जताई थी। भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया कि सार्वजनिक जीवन में रहने वाले नेताओं से एक मर्यादित जीवनशैली की अपेक्षा की जाती है।


❖ पार्टी ने दी सख्त चेतावनी – ‘अनुशासन सर्वोपरि’

भाजपा के इस फैसले ने न केवल उत्तराखंड बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी यह संदेश दिया है कि पार्टी अपने नेताओं के अनुशासन पर समझौता नहीं करेगी। मनवीर चौहान ने कहा, “भाजपा संगठन की रीढ़ उसका अनुशासन है। कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, यदि वह संगठन की मर्यादा और नीति का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई तय है।”

भाजपा द्वारा समय-समय पर इसी तरह की कार्रवाइयां पहले भी की जाती रही हैं। चाहे वह सोशल मीडिया पर असंयमित टिप्पणी हो या पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होना — अनुशासन समिति द्वारा सख्ती हमेशा दिखाई गई है।


❖ सुरेश राठौड़ की प्रतिक्रिया पर सस्पेंस

अब तक सुरेश राठौड़ की ओर से इस निर्णय पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि वह आने वाले समय में इस निष्कासन को “राजनीतिक साजिश” करार दे सकते हैं। वहीं कुछ समर्थक इसे उनके सामाजिक कार्यों और राजनीतिक लोकप्रियता से जलन मान रहे हैं।

हालांकि, निष्कासन के बाद उनका भाजपा में भविष्य लगभग समाप्त माना जा रहा है। वे चाहे तो कानूनी रास्ता अपनाएं या किसी अन्य दल में जाने का प्रयास करें, लेकिन भाजपा में वापसी अब फिलहाल असंभव मानी जा रही है।


❖ विपक्ष की प्रतिक्रिया और सियासी हलचल

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इस घटनाक्रम को भाजपा की “दोहरे मापदंड” वाली नीति बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि “भाजपा तब तक आंख मूंदे रहती है जब तक उसका नेता चुनाव जिताता रहे, लेकिन जब कोई नेता असुविधाजनक हो जाता है, तो उसे पार्टी से बाहर कर दिया जाता है।”

हालांकि भाजपा ने इस आरोप को पूरी तरह नकारते हुए कहा कि “नैतिकता का पालन हर स्तर पर जरूरी है — चाहे चुनाव हो या संगठन का संचालन।”


❖ निष्कासन के मायने – भाजपा का आंतरिक संदेश

सुरेश राठौड़ को 6 साल के लिए निष्कासित करना सिर्फ एक सजा नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर एक संदेश है – कि अनुशासन, भाषा की मर्यादा और व्यक्तिगत जीवन की गरिमा को लेकर अब भाजपा और भी सख्त रुख अपनाएगी।

यह फैसला पार्टी के उन नेताओं को भी सीधा इशारा है जो जनता और मीडिया के बीच आकर गैर-जिम्मेदाराना बयानबाज़ी करते हैं या व्यक्तिगत जीवन को लेकर विवादों में रहते हैं। उत्तराखंड जैसे देवभूमि कहे जाने वाले राज्य में भाजपा अपनी छवि को लेकर कोई भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है।


🔻 निष्कासन की प्रमुख वजहें एक नजर में:

कारण विवरण
अनुशासनहीनता पार्टी नियमों की लगातार अनदेखी
विवादित निजी जीवन दूसरी शादी को लेकर उठा विवाद
संगठन विरोधी गतिविधियां सार्वजनिक मंचों से पार्टी छवि को नुकसान पहुंचाना

❖ भाजपा में अनुशासन सर्वोपरि

भाजपा द्वारा पूर्व विधायक सुरेश राठौड़ को निष्कासित किए जाने का यह मामला साफ करता है कि चाहे कोई नेता कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, संगठन के नियमों और आचरण की सीमा से बाहर जाने पर कोई रियायत नहीं दी जाएगी। यह कार्रवाई भविष्य के लिए एक उदाहरण बन सकती है, जहां पार्टी के अनुशासन और नैतिकता को सर्वोपरि रखा जाएगा।

उत्तराखंड की राजनीति में यह घटनाक्रम आने वाले समय में बड़ा मोड़ ला सकता है, खासकर अगर सुरेश राठौड़ किसी अन्य दल की ओर रुख करते हैं या भाजपा के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलते हैं। फिलहाल, भाजपा ने अपने संगठन को स्वच्छ और अनुशासित बनाए रखने के लिए एक ठोस कदम जरूर उठा लिया है।


रिपोर्ट: डेली लाइव उत्तराखंड
तारीख: 28 जून 2025

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