राष्ट्रीय लोक अदालत में न्याय का सरल समाधान, 6604 वादों का हुआ शांतिपूर्ण निस्तारण, 34939391 रुपए की सेटलमेंट से राहत, हरिद्वार की न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और त्वरित कार्रवाई बनी मिसाल, जिला जज हरिद्वार प्रशांत जोशी और प्राधिकरण सचिव सिमरनजीत कौर ने साझा की प्रक्रिया की पारदर्शिता, आम जनता ने ली राहत की सांस, न्याय के सरल स्वरूप की नई पहचान राष्ट्रीय लोक अदालत :- जिला जज हरिद्वार
राष्ट्रीय लोक अदालत : उम्मीदों की चौखट पर मिला आसान इंसाफ 6604 परिवारों को मिला सुकून, 34939391रुपये की सुलह से बंधी नई उम्मीदें हरिद्वार की अदालतों ने दिखाया न्याय का इंसानी चेहरा जिला जज प्रशांत जोशी और सचिव सिमरनजीत कौर ने खोले भरोसे की प्रक्रिया के राज जनता ने ली राहत की सांस, लोक अदालत बनी इंसाफ की सच्ची मिसाल

इन्तजार रजा हरिद्वार- राष्ट्रीय लोक अदालत में न्याय का सरल समाधान,
6604 वादों का हुआ शांतिपूर्ण निस्तारण, 34939391रुपये की सेटलमेंट से राहत,
हरिद्वार की न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता और त्वरित कार्रवाई बनी मिसाल,
जिला जज हरिद्वार प्रशांत जोशी और प्राधिकरण सचिव सिमरनजीत कौर ने साझा की प्रक्रिया की पारदर्शिता, आम जनता ने ली राहत की सांस, न्याय के सरल स्वरूप की नई पहचान राष्ट्रीय लोक अदालत :- जिला जज हरिद्वार
हरिद्वार। संवाददाता – इन्तजार रजा
हरिद्वार में न्याय की परंपरा को और मजबूत करते हुए राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन सफलता के साथ संपन्न हुआ। इस लोक अदालत में कुल 6604 वादों का निस्तारण आपसी सहमति के आधार पर किया गया। खास बात यह रही कि इन मामलों में 34939391 रुपये की सेटलमेंट राशि तय की गई, जिससे पक्षकारों को न केवल समय पर न्याय मिला, बल्कि लंबी कानूनी प्रक्रिया से भी राहत मिली।
लोक अदालत का आयोजन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में किया गया। रोशनाबाद स्थित जिला उपभोक्ता आयोग में आयोग अध्यक्ष डॉ. गगन कुमार गुप्ता, सदस्य डॉ. अमरेश रावत और रंजना गोयल की देखरेख में यह प्रक्रिया पूरी की गई। विभिन्न प्रकृति के मामलों—जैसे बैंक, बीमा, मोबाइल सेवाएं, विद्युत, फाइनेंस इत्यादि—को लोक अदालत के मंच से सुलझाया गया।
इस आयोजन ने साबित कर दिया कि यदि इच्छाशक्ति हो और न्यायिक व्यवस्था सहयोगी हो, तो जनता को सुलभ, सस्ता और त्वरित न्याय मिल सकता है।
सुलह-समझौते की न्याय प्रक्रिया को मिली सफलता
राष्ट्रीय लोक अदालतों का मकसद होता है विवादों का निस्तारण बिना लंबी अदालती प्रक्रिया के, और इस बार भी हरिद्वार की लोक अदालत ने इस मकसद को पूरा किया। जिन 6604 वादों का निस्तारण हुआ, वे सभी मामले आपसी सहमति पर आधारित थे।
सेटलमेंट राशि का कुल आंकड़ा 34939391 रुपये पर पहुँच गया, जो दर्शाता है कि दोनों पक्षकारों ने समझदारी और परस्पर सहमति से समाधान को प्राथमिकता दी। इस प्रकार की अदालतें न केवल न्यायिक बोझ को कम करती हैं, बल्कि समाज में आपसी सौहार्द और शांति का संदेश भी देती हैं। डॉ. गगन कुमार गुप्ता ने इस प्रक्रिया की निगरानी की और यह सुनिश्चित किया कि कोई भी पक्षकार दबाव या भ्रम के तहत निर्णय न ले। उन्होंने सभी वादकारियों को निष्पक्ष वातावरण में समझौते का अवसर दिया।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव सिमरनजीत कौर ने जानकारी दी कि यह लोक अदालत रोशनाबाद, रुड़की और लक्सर न्यायिक परिसरों में आयोजित की गई। उन्होंने कहा कि यह आयोजन प्राधिकरण अध्यक्ष व जिला जज प्रशांत जोशी के कुशल मार्गदर्शन में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। सिमरनजीत कौर ने बताया कि लोक अदालत में आने वाले अधिकांश मामले ऐसे होते हैं जिनमें पक्षकारों के बीच विवाद का समाधान संवाद के माध्यम से संभव होता है। प्राधिकरण ने सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई और यह सुनिश्चित किया कि न्याय की प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और सरल हो। उन्होंने आयोजन में सहयोग देने वाले न्यायिक अधिकारियों, कर्मचारियों, अधिवक्ताओं और सभी पक्षकारों का आभार प्रकट किया।
न्यायपालिका की पहल बनी जनकल्याण की मिसाल
हरिद्वार के जिला जज और प्राधिकरण अध्यक्ष प्रशांत जोशी ने कहा कि लोक अदालतें समाज में न्याय की पहुँच को सरल बनाती हैं।
प्रशांत जोशी जिला न्यायाधीश हरिद्वार
“लोक अदालतों का मुख्य उद्देश्य त्वरित न्याय और आपसी सहमति से विवादों का समाधान करना है। इससे समय और धन दोनों की बचत होती है। हमें खुशी है कि लोगों ने इस पहल में रुचि दिखाई और बड़ी संख्या में मामले सुलझे।”उन्होंने आगे कहा कि लोक अदालतें न्यायिक बोझ को कम करने का सशक्त माध्यम हैं। यदि जनता इस प्रक्रिया को समझे और उसका लाभ उठाए, तो अदालतों में वर्षों तक चलने वाले मुकदमों से बचा जा सकता है।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हर महीने विशेष जागरूकता कार्यक्रम चलाकर अधिक से अधिक लोगों को लोक अदालत की अवधारणा से जोड़ा जाएगा, ताकि आम आदमी को न्याय मिल सके।
आम जनता ने ली राहत की सांस
लोक अदालत में आए पक्षकारों ने राहत की सांस ली। वर्षों से लटके मुकदमों को एक दिन में हल होते देखकर उनके चेहरों पर संतोष दिखा।रुड़की से आए एक वादी ने बताया, “मैं तीन साल से बिजली बिल को लेकर विवाद में उलझा था। यहाँ दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद एक ही दिन में समाधान हो गया और अब मैं मानसिक शांति महसूस कर रहा हूँ।”
एक अन्य महिला वादिनी ने कहा, “बीमा क्लेम को लेकर बैंक से विवाद था। हम कई बार चक्कर काट चुके थे, लेकिन लोक अदालत में मात्र दो घंटे में समाधान हो गया।”इस प्रकार की प्रतिक्रिया यह बताती है कि लोक अदालतें न केवल न्याय देती हैं, बल्कि विश्वास भी बहाल करती हैं।
संवेदनशील प्रशासनिक रवैये से बढ़ा विश्वास
लोक अदालत की सफलता में न्यायपालिका के साथ-साथ प्रशासनिक व्यवस्था की पारदर्शिता और संवेदनशीलता की बड़ी भूमिका रही। कोई पक्षकार बिना सुने वापस नहीं गया। फाइनेंस और बीमा से जुड़े मामलों में जहां अक्सर तकनीकी पहलू सामने आते हैं, वहाँ न्यायिक सदस्यों ने पूरी संवेदनशीलता के साथ दोनों पक्षों की बात सुनी और निष्पक्ष निर्णय लिया। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस तरह के आयोजनों की संख्या और दायरा बढ़ाया जाए, तो हजारों केसों का बोझ एक झटके में हल हो सकता है।
आगे की राह और चुनौतियाँ
जहाँ एक ओर लोक अदालतें उम्मीद की किरण बन रही हैं, वहीं कुछ चुनौतियाँ भी सामने आती हैं।
- कई बार पक्षकार बिना किसी कानूनी सलाह के आते हैं, जिससे वे अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाते।
- कुछ मामलों में सरकारी विभागों की अनदेखी या अनुपस्थिति भी समाधान में बाधा बनती है।
- जागरूकता की कमी के कारण बहुत से लोग लोक अदालत के विकल्प के बारे में जानते ही नहीं हैं।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रशासन को चाहिए कि गाँवों और कस्बों तक न्यायिक जागरूकता शिविरों का आयोजन करे और स्थानीय समाजसेवियों को इसमें भागीदार बनाए।
न्याय के सरल स्वरूप की नई पहचान राष्ट्रीय लोक अदालत
राष्ट्रीय लोक अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि न्याय केवल कोर्ट-कचहरी के लंबे रास्ते से ही नहीं, बल्कि समझदारी, संवाद और सहमति से भी संभव है।हरिद्वार की यह पहल पूरे उत्तराखंड के लिए उदाहरण बन सकती है, जहाँ न्याय प्रणाली की पारदर्शिता, गति और मानवीय संवेदना को एक साथ देखा गया।आशा की जानी चाहिए कि इस तरह की लोक अदालतें नियमित रूप से आयोजित होती आ रही है और अधिक से अधिक नागरिक इसका लाभ उठाएं, ताकि ‘न्याय सबके लिए’ की अवधारणा ज़मीनी हकीकत बन सके।