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सुगरासा पुल पर सियासी संग्राम, अनुपमा रावत बनाम यतीश्वरानंद — ‘क्रेडिट वॉर’ में सोशल मीडिया से आश्रम तक घमासान, जनता पूछ रही है सवाल — विकास चाहिए या प्रचार?जनता का संदेश साफ है — नेता अब काम करें, प्रचार नहीं।

इन्तजार रजा हरिद्वार- सुगरासा पुल पर सियासी संग्राम,
अनुपमा रावत बनाम यतीश्वरानंद — ‘क्रेडिट वॉर’ में सोशल मीडिया से आश्रम तक घमासान,
जनता पूछ रही है सवाल — विकास चाहिए या प्रचार?जनता का संदेश साफ है — नेता अब काम करें, प्रचार नहीं।

हरिद्वार, उत्तराखंड।
हरिद्वार जिले में रोह नदी पर बनने जा रहे सुगरासा पुल की स्वीकृति और ₹5 करोड़ के बजट की घोषणा ने क्षेत्रीय राजनीति को गरमा दिया है। एक ओर यह पुल वर्षों से लंबित मांग का समाधान लेकर आया है, तो दूसरी ओर यह राजनीति के मंच पर श्रेय की लड़ाई का कारण बन गया है। कांग्रेस विधायक अनुपमा रावत और पूर्व भाजपा विधायक स्वामी यतीश्वरानंद के बीच सोशल मीडिया से लेकर आश्रमों तक राजनीतिक क्रेडिट वॉर छिड़ गई है। जनता अब असली सवाल पूछ रही है—क्या यह विकास का विजय है या प्रचार की प्रतियोगिता?

स्वीकृति की घोषणा बनी चुनावी हथियार

शनिवार की सुबह हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र की विधायक अनुपमा रावत ने फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट कर सुगरासा पुल की स्वीकृति को “जनता की जीत” और अपने संघर्ष का परिणाम बताया। उन्होंने लिखा,
“मैंने जनता की मांग को बार-बार विधानसभा में उठाया, अधिकारियों से मिलकर प्रस्ताव आगे बढ़ाया और सरकार पर दबाव बनाकर यह पुल मंजूर करवाया। यह मेरी नहीं, आपके संघर्ष की जीत है।”

अनुपमा रावत का दावा है कि यह पुल पिछले कई वर्षों से फाइलों में अटका था और उन्होंने अपने स्तर पर इसे मंजूरी दिलाई। सोशल मीडिया पर कांग्रेस समर्थकों ने इसे ‘जनता की सच्ची प्रतिनिधि की जीत’ बताते हुए अनुपमा रावत की प्रशंसा की।

लेकिन शाम होते-होते सियासी तस्वीर बदल गई।

यतीश्वरानंद का पलटवार — ‘मुख्यमंत्री से मिलकर मंजूरी दिलवाई’

पूर्व कैबिनेट मंत्री और भाजपा के फायरब्रांड नेता स्वामी यतीश्वरानंद अपने वेद निकेतन आश्रम में समर्थकों संग मिठाई बांटते दिखाई दिए। उन्होंने मीडिया से बातचीत में दावा किया,
“मैंने व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और सुगरासा पुल को प्राथमिकता दिलाई। यह पुल मेरे प्रयासों का नतीजा है, जिसे मैंने पहले ही राज्य सरकार के एजेंडे में शामिल करवा दिया था।”

स्वामी यतीश्वरानंद के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर पुराने पत्र और वीडियो साझा करते हुए बताया कि यह पुल उनके कार्यकाल के दौरान प्रस्तावित हुआ था और अब मंजूरी उन्हीं की पहल से संभव हो पाई है।

सोशल मीडिया बना सियासी रणक्षेत्र

सुगरासा पुल को लेकर सोशल मीडिया पर दोनों पक्षों के समर्थकों के बीच बहस तेज हो गई है। कांग्रेस समर्थक जहां इसे अनुपमा रावत की संघर्षशीलता का नतीजा बता रहे हैं, वहीं भाजपा कार्यकर्ता इसे स्वामी यतीश्वरानंद की दूरदर्शिता और शासन से संपर्क का परिणाम करार दे रहे हैं।

ट्विटर और फेसबुक पर #AnupamaRawatForDevelopment और #YatishwaranandKaVikas जैसे ट्रेंड बन गए हैं। मीम्स, बयान, वीडियो और दस्तावेजों की बाढ़ ने इस विकास परियोजना को पूरी तरह सियासी रंग दे दिया है।

जनता की प्राथमिकता — राजनीति नहीं, विकास चाहिए

इन राजनीतिक दावों और प्रचार के बीच असली सवाल जनता पूछ रही है—अब जब पुल स्वीकृत हो गया है, तो नेता काम पर ध्यान क्यों नहीं देते?

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पुल की मांग वर्षों से की जा रही थी क्योंकि मानसून में रोह नदी पार करना जानलेवा हो जाता है। गांव की महिलाओं ने बताया कि बच्चों को स्कूल भेजना मुश्किल होता था और आपातकालीन स्थिति में एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती थी।

ग्राम प्रधान से लेकर व्यापारी तक ने दोनों नेताओं के प्रयासों की सराहना की, लेकिन यह भी कहा कि अब बहस की नहीं, निर्माण की ज़रूरत है।
“हमने कई बार पुल के लिए धरना-प्रदर्शन किया, ज्ञापन दिए। अब जब स्वीकृति मिल गई है, तो नेता श्रेय के बजाय गुणवत्ता और समयसीमा पर निगरानी रखें।”

विकास योजनाओं में क्रेडिट पॉलिटिक्स — एक गंभीर प्रश्न

उत्तराखंड जैसे राज्यों में जहां बुनियादी सुविधाएं अब भी अधूरी हैं, वहाँ विकास योजनाओं पर राजनीतिक क्रेडिट लेना आम हो चला है। सुगरासा पुल उसका ताज़ा उदाहरण है। सवाल यह है कि क्या नेताओं को विकास कार्यों के लिए राजनीतिक लाभ लेना चाहिए, या फिर वे इन्हें सेवा भावना से देखें?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार,
“राजनीतिक दलों के लिए विकास योजनाएं केवल वोट बैंक का ज़रिया बनती जा रही हैं। जब किसी योजना को मंजूरी मिलती है, तो उसके पीछे असली श्रेय जनता के संघर्ष और नौकरशाही की प्रक्रिया को जाता है, न कि सिर्फ नेताओं को।”

भविष्य की परीक्षा — वादों से हकीकत तक

अब जब पुल को ₹5 करोड़ का बजट मिल चुका है, तो असली परीक्षा शुरुआत होती है। सवाल हैं:

  • क्या यह पुल समय पर बनेगा?
  • क्या इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित की जाएगी?
  • क्या निगरानी तंत्र पारदर्शी होगा?

ग्रामीणों की उम्मीद है कि दोनों नेता अब श्रेय की लड़ाई छोड़कर एक साथ आकर निर्माण की निगरानी करें और यह सुनिश्चित करें कि पुल राजनीति का नहीं, विकास का प्रतीक बने।

 पुल नहीं, प्रचार की लड़ाई में फंसी राजनीति

सुगरासा पुल आज हरिद्वार की स्थानीय राजनीति का केंद्र बन गया है। जहां एक ओर जनता राहत की सांस ले रही है कि वर्षों पुरानी मांग को मंजूरी मिली, वहीं नेता इसे अपने-अपने एजेंडे में बदलने में लगे हैं। पुल का निर्माण भले ही भौतिक हो, लेकिन इससे पहले उस ‘राजनीतिक पुल’ की ज़रूरत है, जो जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच भरोसे को फिर से जोड़े।

जनता का संदेश साफ है — नेता अब काम करें, प्रचार नहीं।

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