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सपा नेता पूर्व सांसद एस.टी. हसन का विवादित बयान, समाज में जहर घोलने की कोशिश – शादाब शम्स,, आपदा को धर्म से जोड़ना मानवता के खिलाफ – वक्फ बोर्ड अध्यक्ष ने जताया कड़ा विरोध,, हसन को माफी मांगनी चाहिए, त्रासदी पर राजनीति शर्मनाक – शादाब शम्स

इन्तजार रजा हरिद्वार- सपा नेता पूर्व सांसद एस.टी. हसन का विवादित बयान, समाज में जहर घोलने की कोशिश – शादाब शम्स,,
आपदा को धर्म से जोड़ना मानवता के खिलाफ – वक्फ बोर्ड अध्यक्ष ने जताया कड़ा विरोध,,
हसन को माफी मांगनी चाहिए, त्रासदी पर राजनीति शर्मनाक – शादाब शम्स

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में आई भीषण आपदा से जहां सैकड़ों परिवार प्रभावित हुए, कई लोगों की जानें गईं और हजारों बेघर हो गए, वहीं इस संवेदनशील समय में समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व सांसद एस.टी. हसन का बयान लोगों में नाराज़गी का कारण बन गया है।

एस.टी. हसन ने कहा – “उत्तराखंड और हिमाचल में दूसरों के मज़हब का सम्मान नहीं हो रहा है… जब अल्लाह का इंसाफ़ होता है, तो इंसान कहीं से भी अपने आप को नहीं बचा सकता…”। इस बयान पर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने अपने आधिकारिक फेसबुक अकाउंट पर कड़ी आपत्ति जताई है।

शादाब शम्स का स्पष्ट संदेश

शम्स ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं को किसी धर्म या जाति से जोड़ना न केवल असंवेदनशील है बल्कि समाज में नफरत फैलाने वाला भी है। उन्होंने साफ कहा कि इस तरह के बयान मानवता के खिलाफ हैं और एस.टी. हसन को तुरंत अपने शब्द वापस लेकर सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।

आपदा में सेवा ही सबसे बड़ा धर्म
शादाब शम्स ने अपने पोस्ट में लिखा कि उत्तराखंड और हिमाचल के लोग इस समय बड़ी त्रासदी से गुजर रहे हैं। प्रशासन, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना और स्वयंसेवी संस्थाएं बिना भेदभाव के दिन-रात राहत और बचाव कार्य में जुटी हैं। ऐसे में किसी भी नेता द्वारा मज़हबी चश्मे से त्रासदी को देखना बेहद निंदनीय है।

राजनीतिक लाभ के लिए पीड़ा का इस्तेमाल अस्वीकार्य
वक्फ बोर्ड अध्यक्ष ने कहा कि नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे संकट की घड़ी में लोगों को जोड़ने का काम करें, न कि बांटने का। उन्होंने जनता से अपील की कि अफवाहों और भड़काऊ बयानों से दूर रहें और राहत कार्य में हर संभव सहयोग दें।

शम्स के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी कई लोगों ने एस.टी. हसन के शब्दों की आलोचना की है और उनसे माफी की मांग की है। इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीति में मानवीय संवेदनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी या मज़हबी बयानबाज़ी को।

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