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बद्रीनाथ धाम के खुले कपाट: आध्यात्मिक उल्लास का महासंगम, भक्ति, वैदिक परंपरा और आस्था से गूंज उठी बद्रीपुरी, हजारों श्रद्धालुओं ने साक्षात किया भू बैकुंठ के कपाटोद्घाटन का दिव्य दृश्य, भक्ति और वैदिक परंपरा का संगम: कपाट खुलते ही गूंज उठी ‘जय

इन्तजार रजा हरिद्वार- बद्रीनाथ धाम के खुले कपाट: आध्यात्मिक उल्लास का महासंगम,

भक्ति, वैदिक परंपरा और आस्था से गूंज उठी बद्रीपुरी,

हजारों श्रद्धालुओं ने साक्षात किया भू बैकुंठ के कपाटोद्घाटन का दिव्य दृश्य, भक्ति और वैदिक परंपरा का संगम: कपाट खुलते ही गूंज उठी ‘जय बद्रीविशाल


बद्रीनाथ धाम के कपाट आज प्रातः शुभ मुहूर्त में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ विधिवत रूप से खोल दिए गए, जिससे श्री बद्रीविशाल के भक्तों में उत्सव जैसा माहौल छा गया। सर्द हवाओं और बर्फीली वादियों के बीच, वैदिक मंत्रोच्चार, ढोल-नगाड़ों और ‘जय बद्रीविशाल’ के गगनभेदी जयघोषों के साथ मंदिर परिसर भक्तिमय वातावरण से भर उठा। यह क्षण उस आस्था, परंपरा और भक्ति का प्रतीक बन गया, जिसकी प्रतीक्षा हर वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु करते हैं।

*LIVE: श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर दर्शन-पूजन*

सुबह 6 बजे जैसे ही श्री बद्रीनाथ धाम के मुख्य कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले, पूरा क्षेत्र दिव्यता से आलोकित हो गया। मंदिर परिसर को लगभग 15 क्विंटल रंग-बिरंगे पुष्पों से अलंकृत किया गया था, जिसने पूरे वातावरण को स्वर्गिक बना दिया। सिंहद्वार से लेकर गर्भगृह तक, हर कोना श्रद्धा और सज्जा का अद्भुत उदाहरण था।


भक्ति और वैदिक परंपरा का संगम: कपाट खुलते ही गूंज उठी ‘जय बद्रीविशाल’

कपाटोद्घाटन की पूर्व संध्या से ही श्रद्धालुओं का बद्रीपुरी में आगमन शुरू हो गया था। कपाट खुलने की पावन बेला पर, तीर्थ पुरोहितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार और धार्मिक विधि-विधान के अनुसार पूजा-अर्चना संपन्न की गई। विशेष अभिषेक, पुष्पांजलि और मंत्रों की गूंज से माहौल आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया।

इस दौरान सेना के बैंड की मधुर धुनों और नगाड़ों की गूंज के बीच, श्रद्धालु ‘बद्रीनाथ भगवान की जय’ और ‘जय बद्रीविशाल’ जैसे जयकारे लगाते रहे। इन जयकारों से मानो पूरी बद्रीपुरी और आसपास की घाटियां भक्तिरस में डूब गईं। मुख्य पुजारी रावल जी की अगुवाई में परंपरागत पूजा सम्पन्न की गई, जिसमें भगवान बद्रीविशाल की चतुर्भुज मूर्ति को घृत-कंबल से हटाकर स्नान और श्रृंगार के पश्चात गर्भगृह में स्थापित किया गया।

एक विशेष धार्मिक प्रक्रिया के तहत, माता लक्ष्मी को गर्भगृह से निकालकर लक्ष्मी मंदिर में विराजमान किया गया, और फिर उद्धव जी और भगवान कुबेर को गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया। इसके बाद भगवान बद्रीविशाल की दिव्य मूर्ति का विधिवत अभिषेक हुआ और उन्हें भव्य पुष्प श्रृंगार से सजाया गया।


श्री बद्रीनाथ की दिव्यता: श्रद्धा का अद्वितीय दृश्य

बद्रीनाथ धाम को भू-बैकुंठ कहा जाता है — अर्थात पृथ्वी पर स्थित बैकुंठ। छह माह तक चलने वाली इस यात्रा अवधि के शुभारंभ के साथ, अब श्रद्धालु प्रतिदिन भगवान विष्णु के साथ-साथ उद्धव जी, कुबेर जी, नारद जी और नर-नारायण के दर्शन का पुण्य लाभ प्राप्त कर सकेंगे। मंदिर की परिक्रमा में स्थित गणेश मंदिर, घटाकर्ण, आदि केदारेश्वर, आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर और माता मूर्ति मंदिर के कपाट भी आज श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु खोल दिए गए।

कपाट खुलते ही बद्रीनाथ की गलियों में जीवन का संचार हुआ, जो शीतकाल में विराम ले लेता है। आज जैसे ही कपाट खुले, हजारों श्रद्धालु इस शुभ अवसर के साक्षी बने। लोग मंत्रमुग्ध होकर दर्शन कर रहे थे, मानो साक्षात स्वर्ग धरती पर उतर आया हो।

संकटों से घिरे इस युग में, ऐसे धार्मिक उत्सव न केवल लोगों की आस्था को पुनर्जीवित करते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी संदेश देते हैं। बद्रीनाथ धाम न केवल उत्तराखंड या भारत का, बल्कि समस्त सनातन परंपरा का एक उज्ज्वल प्रतीक है, जहां भक्ति, अनुशासन और वेदाचार का अद्वितीय संगम होता है।


शीतकाल में देवताओं की पूजा, ग्रीष्म में मनुष्यों का सौभाग्य

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वर्ष भर में छह माह (अक्टूबर से अप्रैल तक) जब मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तब देवगण स्वयं भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, जिनमें मुख्य पुजारी माने जाते हैं देवर्षि नारद। जबकि ग्रीष्मकाल के छह माह (मई से अक्टूबर तक) मनुष्य भगवान बद्रीविशाल की पूजा करते हैं और इस धाम के दर्शन कर जीवन को धन्य बनाते हैं।

इसी मान्यता के अनुसार, कपाटोद्घाटन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि देव-मानव संबंधों का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह बताता है कि आध्यात्मिक साधना और भक्ति केवल एकांगी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक जीवंत और सहभागिता पर आधारित आध्यात्मिक संवाद है।


भविष्य की ओर संकेत: श्रद्धा और व्यवस्था का संतुलन

इस वर्ष, प्रशासन और बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए गए हैं। दर्शन की व्यवस्था, प्रसाद वितरण, रात्रि ठहराव, स्वास्थ्य सुविधा, और आपातकालीन सेवाओं को और अधिक सुदृढ़ किया गया है ताकि हर श्रद्धालु को एक सुखद और सुरक्षित तीर्थ अनुभव मिल सके।

बद्रीनाथ धाम की यात्रा न केवल आध्यात्मिक शांति देती है, बल्कि यह जीवन में अनुशासन, आस्था और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भी संदेश देती है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी यह यात्रा लाखों श्रद्धालुओं के लिए आत्मिक उन्नयन और सांस्कृतिक एकता का पर्व बनकर सामने आएगी।

आज श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही मानो आस्था के द्वार भी खुल गए। वैदिक परंपरा, भक्ति की शक्ति और दिव्य वातावरण ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की आध्यात्मिक धरोहर आज भी उतनी ही सजीव और प्रभावशाली है, जितनी सहस्त्राब्दियों पहले थी।

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