शासकीय धन का गबन: ऐथल स्कूल लिपिक को पांच साल की सश्रम सजा,, छात्रों की फीस और कर्मचारियों की जीपीएफ राशि में हेराफेरी का था मामला,, न्यायालय ने दोषी करार देकर लगाया ₹10,000 का जुर्माना,, 14 गवाहों की गवाही पर सुनाया गया फैसला

इन्तजार रजा हरिद्वार- शासकीय धन का गबन: ऐथल स्कूल लिपिक को पांच साल की सश्रम सजा,,
छात्रों की फीस और कर्मचारियों की जीपीएफ राशि में हेराफेरी का था मामला,,
न्यायालय ने दोषी करार देकर लगाया ₹10,000 का जुर्माना,, 14 गवाहों की गवाही पर सुनाया गया फैसला
हरिद्वार, 02 अगस्त 2025 | संवाददाता – डेली लाइव उत्तराखंड
हरिद्वार जनपद के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, ऐथल में कार्यरत रहे लिपिक मदन सिंह गोसाई को शासकीय धन की हेराफेरी के गंभीर आरोप में न्यायालय ने दोषी करार देते हुए पांच वर्ष के सश्रम कारावास और ₹10,000 के जुर्माने की सजा सुनाई है। आरोपी ने न सिर्फ स्कूल कर्मचारियों की जीपीएफ (सामान्य भविष्य निधि) में धोखाधड़ी की बल्कि छात्रों की फीस का भी निजी उपयोग के लिए गबन कर सरकारी तंत्र की साख को चोट पहुंचाई।
कैसे हुआ खुलासा?
साल 2008 में विद्यालय में कार्यरत मदन सिंह ने कई प्रधानाचार्यों के नकली हस्ताक्षर बनाकर उनके भविष्य निधि खातों से लाखों रुपये निकाल लिए। इसके साथ ही वह छात्रों से एकत्र की गई सरकारी फीस और छात्र निधि की रकम को पासबुक में जमा न कर अपने निजी लाभ के लिए खर्च करता रहा।
इस घोटाले का पर्दाफाश उस वक्त हुआ जब विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य ने खातों की जांच की और बड़ी गड़बड़ियों को पकड़ा। इसके बाद तत्कालीन प्रधानाचार्य ने पथरी थाने में एफआईआर दर्ज कराई।
कोर्ट में क्या हुआ?
मामला अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अविनाश कुमार श्रीवास्तव की अदालत में पहुंचा। सहायक अभियोजन अधिकारी नवेंदु कुमार मिश्रा ने बताया कि अदालत में कुल 14 गवाहों के बयान दर्ज किए गए।
मामले की गंभीरता, साक्ष्यों की पुष्टि और गवाहों की गवाही के आधार पर कोर्ट ने लिपिक मदन सिंह को दोषी ठहराते हुए सश्रम कारावास की सजा सुनाई। साथ ही ₹10,000 का जुर्माना भी लगाया गया।
प्रशासन और जनता में क्या प्रतिक्रिया?
- विद्यालय प्रशासन ने फैसले का स्वागत किया और इसे ‘अनुकरणीय दंड’ बताया।
- छात्रों और अभिभावकों में भी कोर्ट के निर्णय को लेकर संतोष जताया गया, क्योंकि वर्षों से चली आ रही शिकायतों को अब न्याय मिला है।
- स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र चौहान ने कहा कि “ऐसे मामलों में त्वरित जांच और न्याय से ही शासकीय संस्थानों में पारदर्शिता बनी रह सकती है।”
पुलिस की भूमिका
पथरी थाना पुलिस ने इस मामले में समयबद्ध जांच की और सभी जरूरी दस्तावेज एकत्र कर चार्जशीट तैयार की। पुलिस की मेहनत और समर्पण के चलते अभियोजन पक्ष को न्यायालय में मजबूत पक्ष रखने में सहायता मिली।
यह मामला एक बार फिर यह सिद्ध करता है कि सरकारी सेवा में बैठे भ्रष्ट कर्मचारियों को संरक्षण नहीं बल्कि दंड मिलेगा। न्यायपालिका का यह सख्त रुख आने वाले समय में ऐसे मामलों में नजीर बनेगा।
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