वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज: तीन मुद्दों पर आ सकता है अहम अंतरिम आदेश, मुस्लिम समाज के अधिकारों पर बहस गरमाई, केंद्र सरकार के खिलाफ बढ़ते विरोध के बीच केरल सरकार भी उतरी मैदान में, संवैधानिक वैधता को चुनौती: वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा, प्रबंधन और धार्मिक स्वायत्तता पर सुप्रीम फैसले का इंतजार

इन्तजार रजा हरिद्वार- वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज: तीन मुद्दों पर आ सकता है अहम अंतरिम आदेश,
मुस्लिम समाज के अधिकारों पर बहस गरमाई, केंद्र सरकार के खिलाफ बढ़ते विरोध के बीच केरल सरकार भी उतरी मैदान में,
संवैधानिक वैधता को चुनौती: वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा, प्रबंधन और धार्मिक स्वायत्तता पर सुप्रीम फैसले का इंतजार
नई दिल्ली। वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होनी है। इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ कर रही है, जो तीन प्रमुख मुद्दों पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए दलीलें सुनेगी। माना जा रहा है कि यह मामला न सिर्फ मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा है, बल्कि संविधान में प्रदत्त अल्पसंख्यक अधिकारों की व्याख्या को भी गहराई से प्रभावित करेगा।
तीन प्रमुख मुद्दे: संपत्ति, प्रबंधन और वैधता की चुनौती
सुप्रीम कोर्ट की पीठ तीन अहम मुद्दों पर केंद्रित है:
- वक्फ बाय यूजर और वक्फ बाय डीड से संबंधित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की प्रक्रिया: याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई है कि बिना किसी उचित प्रक्रिया के ऐसी संपत्तियों को वक्फ घोषित करने की परंपरा रही है जिन पर वर्षों से धार्मिक उपयोग हो रहा है, भले ही उनके नाम कोई दस्तावेज न हो। लेकिन अब इन संपत्तियों की अधिसूचना समाप्त की जा सकती है, जो उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
- वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना में गैर मुस्लिमों की नियुक्ति: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि धर्म-आधारित संस्था का प्रबंधन सिर्फ मुसलमानों के हाथ में होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत अल्पसंख्यकों को धार्मिक मामलों के संचालन की स्वायत्तता दी गई है।
- कलेक्टर की जांच के आधार पर वक्फ संपत्तियों की मान्यता खत्म करने का अधिकार: कानून के अनुसार यदि कलेक्टर यह तय करता है कि कोई संपत्ति सरकारी है, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे वक्फ संपत्तियों की कानूनी सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
याचिकाकर्ताओं का पक्ष
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि वक्फ एक धार्मिक संस्था है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के धार्मिक, सामाजिक और परोपकारी कार्यों को बढ़ावा देना है। ऐसे में इसके प्रबंधन में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति धार्मिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। उन्होंने यह भी कहा कि “वक्फ बाय यूजर” की अवधारणा को खत्म करने का प्रयास, उस विरासत और परंपरा को मिटाने जैसा है जो सदियों से इस्लामी समाज में रही है।
केंद्र का बचाव
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को भरोसा दिया कि जब तक सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है, तब तक किसी भी पंजीकृत व अधिसूचित वक्फ संपत्ति (जिसमें वक्फ बाय यूजर भी शामिल हैं) को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा। इसके अलावा, केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में वक्फ परिषदों में किसी गैर-मुस्लिम की नियुक्ति नहीं की जा रही है।
केरल सरकार का हस्तक्षेप
केरल सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिका दायर कर स्पष्ट कर दिया है कि वह वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ है। राज्य सरकार ने दलील दी कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 के तहत अल्पसंख्यकों को प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिका में कहा गया कि यह कानून केरल की मुस्लिम आबादी की वक्फ संपत्तियों की संरचना और प्रबंधन को प्रभावित कर सकता है।
विधिक और धार्मिक विवाद की गहराई
वक्फ कानून भारत में एक विशिष्ट स्थिति रखता है। 1995 में वक्फ अधिनियम को संसद ने पारित किया था ताकि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक-सामाजिक संपत्तियों का संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित हो सके। इस अधिनियम के तहत वक्फ बोर्डों का गठन हुआ, जो इन संपत्तियों का संचालन करते हैं। 2025 में किया गया संशोधन इस संरचना में कई बदलाव लाता है, जिन पर अब सवाल उठाए जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करता है तो यह एक मिसाल बन सकता है। इससे देश में अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों की नई व्याख्या और परिभाषा सामने आ सकती है।
विपक्ष और धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रिया
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, और कई अन्य मुस्लिम संगठनों ने भी वक्फ संशोधन कानून 2025 को मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया है। इन संगठनों का कहना है कि यह कानून बहुसंख्यकवादी मानसिकता को दर्शाता है और अल्पसंख्यकों की धार्मिक संस्थाओं को कमजोर करने का एक प्रयास है।
राजनीतिक दलों, खासकर विपक्षी पार्टियों ने भी केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और एआईएमआईएम जैसी पार्टियों ने इस कानून को वापस लेने की मांग की है।
आज की सुनवाई से यह तय होगा कि सुप्रीम कोर्ट इन तीन मुद्दों पर क्या अंतरिम आदेश जारी करता है। यह आदेश देशभर में वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों और मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है। एक ओर जहां याचिकाकर्ता इस कानून को संविधान के खिलाफ मानते हैं, वहीं केंद्र सरकार इसे पारदर्शिता और जवाबदेही लाने वाला कानून बता रही है।
फिलहाल, देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आदेश पर टिकी हैं, जो आने वाले वर्षों में वक्फ संपत्तियों के भविष्य और अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वायत्तता का मार्ग प्रशस्त करेगा।