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हरिद्वार के सलेमपुर, दादुपुर, सुमन नगर क्षैत्र की हवा में घुला ज़हर, रिहायशी इलाकों में कबाड़खाना अवैध लघु ‘उद्योगों’ की आड़ में फैलता कबाड़ ,जहर और खतरा, सलेमपुर, दादुपुर-सुमन नगर की गलियों में सांस लेना हुआ मुश्किल, प्रशासन अब भी मौन,गैस चेंबर बनते घर: सुबह-शाम ज़हर का धुआं, कार्रवाई प्रशासनिक बैठकों से लेकर फाइलों के ढेर तक, प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड और फायर डिपार्टमेंट की भूमिका पर सवाल ?

सरकार जी, आप कहां हैं? प्रशासन जी, अब तो जागिए! हरिद्वार की गलियों में जहर घुल रहा है — और जनता जवाब मांग रही है, कानूनों की खुलेआम अनदेखी, जिम्मेदार अधिकारियों और उद्योग संचालकों पर कानूनी कार्यवाही हो आखिर क्यों न हो कार्यवाही एक सवाल और जनता जवाब

इन्तजार रजा हरिद्वार- हरिद्वार के सलेमपुर, दादुपुर, सुमन नगर क्षैत्र की हवा में घुला ज़हर, रिहायशी इलाकों में कबाड़खाना अवैध लघु ‘उद्योगों’ की आड़ में फैलता कबाड़ ,जहर और खतरा, सलेमपुर, दादुपुर-सुमन नगर की गलियों में सांस लेना हुआ मुश्किल, प्रशासन अब भी मौन,गैस चेंबर बनते घर: सुबह-शाम ज़हर का धुआं, कार्रवाई प्रशासनिक बैठकों से लेकर फाइलों के ढेर तक, प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड और फायर डिपार्टमेंट की भूमिका पर सवाल ?

सरकार जी, आप कहां हैं?
प्रशासन जी, अब तो जागिए!
हरिद्वार की गलियों में जहर घुल रहा है — और जनता जवाब मांग रही है, कानूनों की खुलेआम अनदेखी, जिम्मेदार अधिकारियों और उद्योग संचालकों पर कानूनी कार्यवाही हो आखिर क्यों न हो कार्यवाही एक सवाल और जनता जवाब

हरिद्वार, उत्तराखंड — तीर्थनगरी हरिद्वार की पहचान जहां एक ओर आध्यात्मिकता और स्वच्छता से जुड़ी है, वहीं दूसरी ओर इसके बहादराबाद क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सलेमपुर, दादुपुर और सुमन नगर जैसे रिहायशी इलाके गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रहे हैं। इन इलाकों में अनधिकृत तरीके से संचालित हो रहे कबाड़खाने, रिसायक्लिंग इकाइयाँ और लघु उद्योग स्थानीय लोगों के जीवन को जहरीला बना रहे हैं।

प्लास्टिक, केमिकल, और लोहे के कबाड़ की अवैज्ञानिक प्रोसेसिंग से न केवल हवा ज़हरीली हो चुकी है, बल्कि जल और भूमि भी गंभीर रूप से प्रदूषित हो रही है। इन इकाइयों से उठता धुआं लोगों को सांस लेने तक नहीं दे रहा। हैरानी की बात यह है कि यह सब कुछ प्रशासन और नगर निकायों की आंखों के सामने हो रहा है — बिना किसी ठोस अनुमति या पर्यावरणीय मापदंडों के पालन के।

गैस चेंबर बनते घर: सुबह-शाम ज़हर का धुआं…..स्थानीय निवासियों के अनुसार, इन इकाइयों से निकलने वाले धुएं के कारण सुबह और शाम का वक्त सबसे अधिक भयावह होता है। स्कूल जाने वाले बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज़्यादा परेशानी हो रही है। एक स्थानीय निवासी, अनुराधा देवी बताती हैं, “हमारे बच्चे खांसते हुए स्कूल जाते हैं, खिड़कियाँ तक बंद रखनी पड़ती हैं। धुएं में इतनी बदबू होती है कि उल्टी आ जाती है।”दूसरे निवासी रमेश चंद्र का कहना है, “रात को नींद नहीं आती। दम घुटता है। कई बार तो ऐसा लगता है कि आग लगी हो, लेकिन असल में वह कबाड़ जलाने का धुआं होता है।”

कबाड़खानों की संख्या में इज़ाफ़ा, नियंत्रण में नहीं कोई विभाग……स्थानीय लोगों का दावा है कि पिछले दो वर्षों में इन कबाड़खानों और लघु उद्योगों की संख्या में दोगुना इज़ाफ़ा हुआ है। प्लास्टिक, रबर, केमिकल और अन्य ज्वलनशील वस्तुओं का खुलेआम भंडारण और जलाना यहाँ आम बात हो गई है। इन उद्योगों के पास न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्वीकृति है, न ही नगर निगम की अनुमति। सुमन नगर निवासी मुकेश त्यागी ने बताया, “यहां आए दिन ट्रक भरकर कबाड़ आता है। धड़ल्ले से उसे जलाया या रिसायकल किया जाता है। हमारे बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है।”

प्रशासनिक बैठकों से लेकर फाइलों के ढेर तक…..2023 में हरिद्वार के तत्कालीन एसडीएम अजय वीर सिंह ने इस मामले को गंभीरता से लिया था और संबंधित विभागों के साथ कई बैठकें की थीं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अग्निशमन विभाग, और नगर निगम को निर्देश दिए गए थे कि अवैध कबाड़ इकाइयों पर तुरंत कार्रवाई करें। हालांकि इन बैठकों के बाद कुछ दिखावटी निरीक्षण हुए और दो-चार इकाइयों को नोटिस भी दिया गया, लेकिन उसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। आज तक न तो कोई स्थायी समाधान सामने आया, न ही किसी बड़े ऑपरेटर पर सख्त कार्रवाई हुई।

प्रधानमंत्री कार्यालय तक शिकायत, लेकिन ज़मीन पर ‘शून्य’ कार्रवाई…. इस संकट की गंभीरता को देखते हुए कई स्थानीय निवासियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री सचिवालय, हरिद्वार जिलाधिकारी, और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक शिकायतें भेजी हैं। पत्र, ईमेल, और जनसुनवाई पोर्टल के माध्यम से बार-बार प्रशासन को चेताया गया है। सलेमपुर दादुपुर निवासी रवि पंवार कहते हैं, “हमने प्रधानमंत्री जी तक गुहार लगाई, लेकिन लगता है जब तक कोई बड़ा हादसा नहीं होता, कोई सुनवाई नहीं होती।”

कानूनों की खुलेआम अनदेखी…. ‌केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुसार, रिहायशी क्षेत्रों में न ही प्लास्टिक आधारित उद्योग चलाए जा सकते हैं और न ही ज्वलनशील पदार्थों का भंडारण किया जा सकता है। इसके लिए स्पष्ट रूप से पर्यावरणीय क्लियरेंस, NOC, और फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट अनिवार्य हैं। इन कबाड़खानों में ना तो फायर अलार्म सिस्टम है, ना ही किसी प्रकार का फायर सेफ्टी इंफ्रास्ट्रक्चर। यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि एक बड़ी दुर्घटना को दावत देना भी है।

प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड और फायर डिपार्टमेंट की भूमिका पर सवाल….. प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड और फायर डिपार्टमेंट की भूमिका भी इस पूरे मामले में संदिग्ध है। कई स्थानीय निवासियों ने सवाल उठाए हैं कि यदि इन कबाड़ इकाइयों के पास NOC नहीं थी, तो ये वर्षों से किस आधार पर संचालित हो रही थीं?

यदि कोई बड़ी आगजनी की घटना होती है, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा – कबाड़खाना मालिक, प्रशासन, या फायर विभाग?

स्वास्थ्य पर कहर: सांस, त्वचा और आंखों की बीमारियाँ बढ़ीं….. स्थानीय डॉक्टरों के अनुसार, पिछले दो वर्षों में सांस की बीमारियों, एलर्जी, त्वचा रोग और आँखों में जलन की शिकायतें 35% तक बढ़ चुकी हैं। खासकर छोटे बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर गहरा है।

डॉ. संजय राणा (स्थानीय चिकित्सक) बताते हैं, “धुएं में मौजूद कार्सिनोजेनिक पदार्थ कैंसर तक का कारण बन सकते हैं। लंबे समय तक इस प्रकार का एक्सपोजर जानलेवा साबित हो सकता है।”

अब क्या हो अगला कदम?……. प्रश्न यही है – अब कब जागेगा हरिद्वार का प्रशासन? क्या केवल नोटिस भेजना और औपचारिक बैठकें करना ही समाधान है? या अब वक्त आ गया है कि इन अवैध इकाइयों को सील कर कानूनी कार्रवाई की जाए? और जो सीलिंग की गई थी उन्हें स्वयं हटाने वालों पर प्रभावी कार्रवाई

स्थानीय निवासी मांग कर रहे हैं:

सभी रिहायशी क्षेत्रों में चल रहे कबाड़खानों की जाँच हो

बिना पर्यावरणीय क्लीयरेंस वाले सभी उद्योग बंद किए जाएं

फायर सेफ्टी और स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियमित निरीक्षण हो

जिम्मेदार अधिकारियों और उद्योग संचालकों पर कानूनी कार्यवाही हो आखिर क्यों न हो कार्यवाही एक सवाल और जनता जवाब ?

यह सिर्फ हरिद्वार के  नहीं – पूरे देश के लिए चेतावनी…..हरिद्वार की यह स्थिति देश के अन्य छोटे-बड़े शहरों के लिए भी एक चेतावनी है। रिहायशी क्षेत्रों में अवैध गोदाम, लघु उद्योग और रिसायक्लिंग यूनिट्स का संचालन एक आम समस्या बनता जा रहा है। जब तक प्रशासन, जनप्रतिनिधि, और नागरिक समाज मिलकर कार्रवाई नहीं करेंगे, तब तक ऐसे खतरे आम लोगों की ज़िंदगी को तबाह करते रहेंगे।

यह वक्त है कि प्रशासन “जागरूकता अभियान” से आगे बढ़कर जमीनी कार्रवाई करे। क्योंकि अब सवाल पर्यावरण या कानून का नहीं, बल्कि आम नागरिकों की जिंदगी और मौत का बन चुका है।

सरकार जी, आप कहां हैं?
प्रशासन जी, अब तो जागिए!
हरिद्वार की गलियों में जहर घुल रहा है — और जनता जवाब मांग रही है।

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