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डंपिंग ग्राउंड पर बसे 450 परिवारों को हटाने का नोटिस,, नगर निगम की सख्ती से मचा हड़कंप, बेघर होने के डर से नेताओं का थामा दामन,, सरकार से विस्थापन की मांग, न माने तो आंदोलन की चेतावनी

इन्तजार रजा हरिद्वार- डंपिंग ग्राउंड पर बसे 450 परिवारों को हटाने का नोटिस,,
नगर निगम की सख्ती से मचा हड़कंप, बेघर होने के डर से नेताओं का थामा दामन,,
सरकार से विस्थापन की मांग, न माने तो आंदोलन की चेतावनी

हरिद्वार। गोविंद नगर क्षेत्र में नगर निगम की डंपिंग ग्राउंड की भूमि पर करीब तीन दशक से अतिक्रमण कर रह रहे 450 परिवारों को अब बेघर होने का नोटिस मिल चुका है। नगर निगम ने हाईकोर्ट के आदेश और जिलाधिकारी के निर्देश का हवाला देते हुए स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर तय समय में भूमि खाली नहीं की गई तो बलपूर्वक अतिक्रमण हटाया जाएगा। इस नोटिस के बाद से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले सैकड़ों लोगों में हड़कंप मच गया है।

नगर निगम का कहना है कि यह भूमि श्री भरत मंदिर ट्रस्ट के स्वामित्व में है और वर्षों से अवैध कब्जे में चल रही है। अब न्यायालयी आदेश के चलते इसे खाली कराना अनिवार्य हो गया है। निगम ने बाकायदा नोटिस जारी कर परिवारों को स्वयं हटने का विकल्प दिया है, साथ ही चेताया है कि शांति से खाली न करने पर प्रशासनिक बल प्रयोग से पीछे नहीं हटेगा।

राजनीतिक सरंक्षण की आस में परिवार, नेताओं ने बढ़ाया साथ

नोटिस के बाद से अतिक्रमण में रह रहे परिवारों ने राजनीतिक सरंक्षण की ओर रुख कर लिया है। पूर्व पालिका अध्यक्ष दीप शर्मा और पूर्व पार्षद शिव कुमार गौतम उनके सबसे बड़े सहारा बनकर सामने आए हैं। दोनों नेताओं के नेतृत्व में दर्जनों परिवार नगर निगम कार्यालय पहुंचे और मेयर शंभू पासवान से मुलाकात कर अपनी व्यथा सुनाई।

नेताओं ने सरकार को ज्ञापन भेजकर इन परिवारों को बेघर न करने की मांग की है। उनका कहना है कि ये लोग पिछले 30 वर्षों से वहीं रह रहे हैं और अब अचानक उजाड़ना अमानवीय होगा। उन्होंने सरकार से अपील की कि इन परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना, मुख्यमंत्री आवास योजना या पुनर्वास योजना के तहत वैकल्पिक व्यवस्था दी जाए।

मेयर ने दिया भरोसा, निगम आदेश के पालन को बाध्य

मेयर शंभू पासवान ने प्रभावित परिवारों को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है, लेकिन नगर निगम प्रशासन कोर्ट और डीएम के आदेशों के अनुरूप कार्रवाई करने को बाध्य है। नगर आयुक्त ने दो टूक शब्दों में कहा कि भूमि को खाली कराना ही होगा, और यदि कोई विरोध हुआ तो बलपूर्वक हटाने की कार्रवाई की जाएगी।

मानवता बनाम आदेशों की टकराहट

यह मामला अब मानवता और वैधानिक आदेशों के बीच संतुलन का बन गया है। एक ओर वर्षों से रह रहे गरीब परिवार हैं, तो दूसरी ओर कोर्ट और प्रशासनिक निर्देश हैं। सभी की निगाहें अब सरकार के अगले कदम और किसी संभावित पुनर्वास नीति पर टिकी हैं।

रिपोर्ट: डेली लाइव उत्तराखंड

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