कांवड़ मेले में स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं की धमक,, 18 समूहों ने 59 स्टॉल से कमाए 28 लाख रुपये,,महिलाओं के हुनर ने मोहा श्रद्धालुओं का दिल,, प्रशासन और महिलाओं के लिए बनी सफलता की मिसाल,, प्रशासन की योजना, महिलाओं की जीत,, इस पूरे अभियान की रूपरेखा की सुत्रधार मुख्य विकास अधिकारी (CDO) आकांक्षा कोंडे

इन्तजार रजा हरिद्वार- कांवड़ मेले में स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं की धमक,,
18 समूहों ने 59 स्टॉल से कमाए 28 लाख रुपये,,महिलाओं के हुनर ने मोहा श्रद्धालुओं का दिल,, प्रशासन और महिलाओं के लिए बनी सफलता की मिसाल,,
प्रशासन की योजना, महिलाओं की जीत,,
इस पूरे अभियान की रूपरेखा की सुत्रधार मुख्य विकास अधिकारी (CDO) आकांक्षा कोंडे
हरिद्वार, जुलाई 2025 |
कांवड़ मेला 2025 धार्मिक आस्था का पर्व तो था ही, लेकिन इस बार यह महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन गया। हरिद्वार में आयोजित इस विशाल धार्मिक आयोजन ने महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में नए द्वार खोल दिए। जिला प्रशासन की पहल और महिलाओं की मेहनत का ऐसा संगम हुआ कि 11 दिनों में 18 समूहों ने 59 स्टॉल लगाकर लगभग 28 लाख रुपये की आमदनी हासिल की।
यह पहल ‘लोकल फॉर वोकल’ की सच्ची मिसाल बनकर उभरी है, जिसमें न सिर्फ उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा मिला बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी शहरी बाजार से जोड़ने का मंच मिला।
महिलाओं के हुनर ने मोहा श्रद्धालुओं का दिल
कांवड़ मेले में जगह-जगह लगाए गए इन स्टॉलों पर घरेलू और पारंपरिक उत्पादों की भरमार थी। हाथ से बने अचार, हर्बल साबुन, राखियां, पहाड़ी नमकीन, ऑर्गेनिक उत्पाद, रूमाल, पूजा सामग्री, जैम, मुरब्बा, हस्तशिल्प से लेकर स्थानीय व्यंजनों तक – सब कुछ श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा।
हरिद्वार, ऋषिकेश और आसपास के क्षेत्रों से लाखों की संख्या में आने वाले कांवड़ियों और पर्यटकों ने इन उत्पादों को पसंद किया। बिक्री सिर्फ लेन-देन नहीं, बल्कि एक संवाद था – उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाओं और देशभर के श्रद्धालुओं के बीच।
ज्योति, जो एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं, ने मुस्कुराते हुए बताया:
“हमें इतनी अच्छी आमदनी की उम्मीद नहीं थी। लोग हमारे बनाए अचार और राखियों को बहुत पसंद कर रहे थे। हमारी मेहनत सफल हुई।”
प्रशासन की योजना, महिलाओं की जीत
इस पूरे अभियान की रूपरेखा पहले से तय थी। मुख्य विकास अधिकारी (CDO) आकांक्षा कोंडे ने स्वयं सहायता समूहों की सहभागिता के लिए विशेष रणनीति बनाई थी। उन्होंने बताया:
“हमने भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में स्टॉल लगाने के लिए चिन्हित स्थानों की व्यवस्था की थी, ताकि महिला समूहों को अच्छा फुटफॉल मिल सके। यह पहल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक और ठोस कदम है।”
हर की पौड़ी, कनखल, भीमगौड़ा, सप्तऋषि, ऋषिकेश रोड, कनखल मार्ग, कांवड़ शिविरों के आसपास इन स्टॉलों को बारीकी से प्लान किया गया था, ताकि कोई अवसर न छूटे।
महिला सशक्तिकरण की नई मिसाल
सरकारी योजनाएं अक्सर कागज़ों तक सीमित रह जाती हैं, लेकिन कांवड़ मेले में प्रशासन ने यह साबित कर दिया कि जब नियत और नीतियां दोनों स्पष्ट हों, तो बदलाव जमीन पर दिखता है। महिला समूहों के उत्पादों को न केवल बेहतरीन प्रतिसाद मिला, बल्कि बिक्री की राशि भी उत्साहवर्धक रही।
प्रत्येक स्टॉल की औसत बिक्री लगभग 45,000 से 60,000 रुपये तक पहुंची। इससे मिलने वाली आमदनी सीधे समूहों में बंटी और महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार आया।
भविष्य के लिए नई उम्मीद
सीडीओ आकांक्षा कोंडे ने यह भी स्पष्ट किया कि यह शुरुआत है – अब हर बड़े आयोजन में महिला समूहों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। आने वाले समय में ऐसे स्टॉल कांवड़ के अलावा कुंभ, गंगा दशहरा, अर्द्धकुंभ और पर्यटन महोत्सव जैसे आयोजनों में भी दिए जाएंगे।
इसके साथ ही जिला प्रशासन एक स्थायी “ई-बाजार” प्लेटफॉर्म पर भी कार्य कर रहा है, जहां महिला समूहों को ऑनलाइन बिक्री की सुविधा दी जाएगी, ताकि वे सालभर आय अर्जित कर सकें।
सीधी बातचीत – आत्मविश्वास का नया चेहरा
कांवड़ मेला केवल बाजार नहीं था, यह महिलाओं के लिए अपने ग्राहकों से सीधे संवाद का भी अवसर बना। कई स्टॉलों पर महिलाओं ने ग्राहकों को अपने उत्पादों के फायदे बताए, उन्हें इस्तेमाल के तरीके समझाए और फीडबैक भी लिया।
यह संवाद महिलाओं के आत्मविश्वास को उस स्तर तक ले गया, जहाँ वे अब न केवल उत्पाद बनाने तक सीमित हैं, बल्कि उन्हें प्रोफेशनल तरीके से मार्केट करने में भी सक्षम हो रही हैं।
धर्म, विकास और महिला शक्ति का संगम
कांवड़ मेला 2025 ने यह सिद्ध किया कि कोई भी धार्मिक आयोजन केवल आस्था तक सीमित नहीं है – यदि दृष्टिकोण व्यापक हो, तो यह सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का माध्यम भी बन सकता है।
हरिद्वार की महिलाएं अब सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं। वे उत्पादन कर रही हैं, व्यापार कर रही हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ आर्थिक विकास की मुख्यधारा में शामिल हो रही हैं। यह तस्वीर उत्तराखंड के भविष्य की उस दिशा की ओर इशारा करती है, जहाँ गांव की महिलाएं भी उद्यमिता की मिसाल बन सकती हैं।
रिपोर्ट: डेली लाइव उत्तराखंड |इन्तजार रजा संवाददाता – हरिद्वार से विशेष रिपोर्ट