चारधाम यात्रा में बाहरी टैक्सियों की घुसपैठ, स्थानीय यूनियनों का फूटा गुस्सा, प्रशासन की साख पर सवाल,धार्मिक यात्रा में व्यावसायिक संघर्ष, यात्रियों की आस्था पर असर,स्थानीय ट्रांसपोर्ट यूनियनों की आवाज: “हमारा हक छीना जा रहा है”, फर्जी ट्रैवल एजेंसियों की भरमार: विश्वास और व्यवस्था पर संकट, प्रशासन के सामने दोहरी चुनौती: नियम भी निभाना, नाराजगी भी संभालना

इन्तजार रजा हरिद्वार- चारधाम यात्रा में बाहरी टैक्सियों की घुसपैठ, स्थानीय यूनियनों का फूटा गुस्सा, प्रशासन की साख पर सवाल,धार्मिक यात्रा में व्यावसायिक संघर्ष, यात्रियों की आस्था पर असर,स्थानीय ट्रांसपोर्ट यूनियनों की आवाज: “हमारा हक छीना जा रहा है”, फर्जी ट्रैवल एजेंसियों की भरमार: विश्वास और व्यवस्था पर संकट, प्रशासन के सामने दोहरी चुनौती: नियम भी निभाना, नाराजगी भी संभालना

उत्तराखंड में 30 अप्रैल से शुरू हुई चारधाम यात्रा 2025 एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह केवल श्रद्धा, भक्ति या भीड़ नहीं, बल्कि स्थानीय टैक्सी चालकों की नाराजगी और बाहरी राज्यों से आकर ‘धंधा हथियाने’ वालों पर बढ़ता विरोध है। हरिद्वार और ऋषिकेश, जो कि चारधाम यात्रा के प्रमुख प्रारंभिक पड़ाव हैं, वहां के ट्रांसपोर्ट ऑपरेटरों में असंतोष की लहर फैल चुकी है। वे सीधे आरोप लगा रहे हैं कि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि महाराष्ट्र से आए टैक्सी चालकों ने उनकी रोज़ी-रोटी पर कब्जा कर लिया है।
स्थानीय यूनियन नेताओं का कहना है कि वे पूरे साल इस यात्रा के इंतजार में रहते हैं, लेकिन जैसे ही सीजन शुरू होता है, बाहरी चालक आकर उनके काम में हस्तक्षेप करने लगते हैं। वहीं प्रशासन ‘नियमों की सीमाओं’ का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ता नजर आ रहा है।
स्थानीय ट्रांसपोर्ट यूनियनों की आवाज: “हमारा हक छीना जा रहा है”
उत्तराखंड में ट्रैवल सेक्टर, विशेषकर टैक्सी सेवाएं, चारधाम यात्रा से सालाना लाखों रुपए की आय अर्जित करते हैं। स्थानीय यूनियनों का दावा है कि वे ही असली सेवा प्रदाता हैं, जो पूरे साल प्रदेश में ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को संभालते हैं — चाहे आपदा हो, चुनाव या कोई अन्य आपातकाल। लेकिन जब उनकी कमाई का समय आता है, तो बाहरी राज्यों के वाहन उनके हिस्से का धंधा छीन लेते हैं।
डूंगरवाल ट्रैक्टर जीप कमांडर यूनियन, देहरादून के अध्यक्ष ध्रुव सिंह बिष्ट ने कहा, “हम हर समय सरकार के साथ खड़े रहते हैं, लेकिन जब हमारे सीजन की बारी आती है तो हमें भुला दिया जाता है। अगर जल्द समाधान नहीं हुआ तो चक्का जाम तक की नौबत आ सकती है।”
ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून की टैक्सी यूनियनें यह भी कह रही हैं कि हर साल सैकड़ों बाहरी टैक्सी चालक ऋषिकेश और हरिद्वार में अनधिकृत रूप से ‘डेरा’ डालते हैं, यात्री ढूंढ़ते हैं और लोकल यूनियनों का सीजन बिगाड़ देते हैं।
परे मामले पर आरटीओ की सफाई: “हम निगरानी कर रहे हैं”
हाल ही में हरिद्वार आरटीओ ऑफिस के बाहर एक वीडियो सामने आया जिसमें स्थानीय टैक्सी चालकों और बाहरी राज्यों के चालकों के बीच बहस हो रही है। आरोप लगे कि स्थानीय चालकों ने बाहरी लोगों के साथ अभद्रता की, लेकिन बाद में जांच में सामने आया कि मामला ग्रीन कार्ड बनवाने से जुड़ा था और स्थानीय चालक सिर्फ अधिकार की मांग कर रहे थे।
देहरादून आरटीओ संदीप सैनी ने मीडिया से बातचीत में बताया, “हमारी निगरानी लगातार चल रही है। नियम के मुताबिक ऑल इंडिया परमिट वाली टैक्सी को देश के किसी भी कोने में यात्री ले जाने की अनुमति है, लेकिन हमारी कोशिश है कि स्थानीय टैक्सी संचालकों को प्राथमिकता दी जाए।”
उन्होंने कहा कि बाहरी वाहन चालकों से यात्रियों की सूची, रजिस्ट्रेशन डिटेल और प्रवेश समय मांगा जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे केवल बाहरी राज्यों से यात्रियों को लेकर आए हैं, न कि हरिद्वार/ऋषिकेश से यात्रियों को उठाकर यात्रा करवा रहे हैं।
फर्जी ट्रैवल एजेंसियों की भरमार: विश्वास और व्यवस्था पर संकट
चारधाम यात्रा जैसे पवित्र अवसर पर भी कुछ लोग मौके का फायदा उठाकर फर्जी ट्रैवल एजेंसियों के जरिए श्रद्धालुओं को ठगने से नहीं चूकते। आरटीओ विभाग ने अब तक 40 से ज्यादा ऐसे फर्जी टूर ऑपरेटर्स के खिलाफ कार्रवाई की है, जो अधूरे दस्तावेजों या गलत पहचान के साथ कार्यरत थे।
लेकिन स्थानीय चालकों का कहना है कि सिर्फ कार्रवाई नहीं, बल्कि सख्त पॉलिसी बनाई जानी चाहिए जिसमें राज्य के बाहर से आने वाले ट्रैवल ऑपरेटरों की संख्या नियंत्रित हो। साथ ही, हरिद्वार और ऋषिकेश से शुरू होने वाली यात्रा में केवल स्थानीय ऑपरेटरों को अनुमति दी जाए।
यात्रियों की उलझन: किस वाहन में बैठना सही?
चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु इस विवाद से भले अनभिज्ञ हों, लेकिन वे भी असहज स्थिति में आ जाते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि कौन सा चालक वैध है, किस वाहन का परमिट असली है और किसका नहीं। किसी के पास लोकल यूनियन की मुहर होती है, किसी के पास ऑल इंडिया परमिट। भ्रम की इस स्थिति में कई बार यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है — जैसे वाहन के आधे रास्ते में रोक दिए जाने का डर या अवैध संचालन के कारण रिफंड न मिलने की आशंका।
बाहरी संचालकों का पक्ष: “हम भी भारतीय हैं, हमारे भी अधिकार हैं”
दूसरी ओर, बाहर से आए टैक्सी चालकों का कहना है कि उनके पास ऑल इंडिया परमिट है जो उन्हें देश में कहीं भी यात्रियों को लाने-ले जाने की छूट देता है। उनका तर्क है कि यदि वे यात्रियों को हरियाणा, पंजाब या दिल्ली से लेकर आए हैं और हरिद्वार में रात भर रुकते हैं, तो इसमें कोई अवैधता नहीं है।
हरियाणा से आए एक टैक्सी चालक ने बताया, “हम किसी का हक नहीं मार रहे। यात्रियों ने हमें अपने राज्य से बुक किया है। यदि उत्तराखंड की यूनियन चाहती है कि हम यहां से यात्रियों को न उठाएं, तो हमें स्पष्ट दिशा-निर्देश चाहिए, न कि धमकी या रोक-टोक।”
प्रशासन के सामने दोहरी चुनौती: नियम भी निभाना, नाराजगी भी संभालना
चारधाम यात्रा को लेकर प्रशासन पर भारी दबाव रहता है — न केवल श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधाएं सुनिश्चित करने का, बल्कि स्थानीय हितों को संतुलन में बनाए रखने का भी। लेकिन जब टैक्सी यूनियनें सड़क पर उतरने की चेतावनी देती हैं और वीडियो वायरल होते हैं, तो शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठते हैं।
देहरादून आरटीओ संदीप सैनी का कहना है कि वे दोनों पक्षों को सुन रहे हैं और राज्य के हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं। “हमारा उद्देश्य है कि चारधाम यात्रा निर्बाध चले, किसी का अधिकार न छिने और न ही श्रद्धालुओं को परेशानी हो।”
समाधान की राह: डिजिटल ट्रैकिंग और यूनियन-पॉलिसी की जरूरत
विशेषज्ञों की मानें तो इस विवाद को जड़ से खत्म करने के लिए एक सुव्यवस्थित नीति की आवश्यकता है:
- डिजिटल पंजीकरण प्रणाली: प्रत्येक वाहन का जीपीएस ट्रैकिंग और बुकिंग डिटेल एक ऐप या पोर्टल के माध्यम से मॉनिटर हो।
- स्थानीय प्राथमिकता नियम: हरिद्वार और ऋषिकेश से यात्रियों को ले जाने की अनुमति केवल स्थानीय यूनियनों से संबद्ध वाहनों को दी जाए।
- अस्थायी अनुमति प्रणाली: बाहर से आए वाहन यदि ग्रीन कार्ड बनवाना चाहें तो उन्हें निर्धारित संख्या और समय सीमा के आधार पर अनुमति दी जाए।
आस्था के रास्ते पर संतुलन की ज़रूरत
चारधाम यात्रा न केवल आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि उत्तराखंड की आर्थिक, सामाजिक और व्यावसायिक धारा को भी प्रभावित करती है। ऐसे में यह बेहद ज़रूरी है कि स्थानीय टैक्सी यूनियनों के अधिकारों को सम्मान मिले, बाहरी टैक्सी चालकों को नियमों की जानकारी हो और श्रद्धालु बिना किसी डर या भ्रम के अपनी यात्रा पूरी कर सकें।
सरकार, प्रशासन और यूनियन — तीनों को मिलकर एक ऐसी नीति बनानी होगी जो सबको न्याय दे, ताकि यह यात्रा केवल एक धार्मिक रिवाज न रहकर उत्तराखंड की समृद्धि का प्रतीक भी बने।