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काशिश हत्याकांड : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हल्द्वानी में सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब,, फांसी की सजा की मांग को लेकर जनता, सामाजिक संगठनों और लोक कलाकारों का प्रदर्शन,, पीड़ित परिवार की उम्मीदों पर पानी, न्यायपालिका पर उठे सवाल

इन्तजार रजा हरिद्वार- काशिश हत्याकांड : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हल्द्वानी में सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब,,

फांसी की सजा की मांग को लेकर जनता, सामाजिक संगठनों और लोक कलाकारों का प्रदर्शन,,

पीड़ित परिवार की उम्मीदों पर पानी, न्यायपालिका पर उठे सवाल

हल्द्वानी (नैनीताल) – 18 सितंबर 2025।
2014 में हल्द्वानी की 7 वर्षीय मासूम काशिश हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट से मुख्य आरोपी को बरी किए जाने के बाद पूरे उत्तराखंड में आक्रोश फैल गया है। गुरुवार को हल्द्वानी में बड़ी संख्या में सामाजिक संगठन, स्थानीय लोग और उत्तराखंड के लोक कलाकार सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों ने आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग करते हुए सरकार और सिस्टम के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की।

बुद्ध पार्क से एसडीएम कोर्ट तक मार्च

हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में सामाजिक संगठनों, लोक कलाकारों और स्थानीय लोगों ने एकजुट होकर धरना प्रदर्शन किया। भीड़ इतनी बड़ी थी कि धरना स्थल से निकले प्रदर्शनकारी एसडीएम कोर्ट तक जाने लगे। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो जमकर नोकझोंक हुई, लेकिन भीड़ सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय तक पहुंच गई और राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर आरोपी को फांसी की सजा की मांग की।

“न्याय नहीं मिला, गुस्सा सड़कों पर” – प्रदर्शनकारियों का आरोप

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने पीड़िता परिवार और स्थानीय जनता को बेहद निराश और आक्रोशित किया है। लोगों का मानना है कि 2014 में हुई इस घटना ने समाज को झकझोर दिया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट से कठोरतम दंड की उम्मीद थी। लेकिन आरोपी को बरी किए जाने से गुस्सा साफ-साफ सड़कों पर नजर आ रहा है।
हल्द्वानी विधायक सुमित हिर्देश, लोक गायक इंदर आर्य, प्रियंका मेहरा, गोविंद डिगारी समेत कई कलाकारों ने प्रदर्शन में भाग लिया। महिलाओं ने हाथों में बैनर लेकर नारे लगाए और खासा आक्रोश जताया।

मामले की पृष्ठभूमि

नवंबर 2014 में पिथौरागढ़ की 7 वर्षीय कशिश अपने परिवार के साथ काठगोदाम में एक रिश्तेदार के यहां शादी में आई थी। एक दिन कशिश लापता हो गई और करीब पांच दिन बाद उसका शव गौला नदी के किनारे जंगल में मिला। जांच में खुलासा हुआ कि बच्ची के साथ पहले दुष्कर्म किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई।
इस घटना से पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी मौके पर आकर लोगों को शांत कराना पड़ा था। पुलिस ने तीन आरोपियों को नामजद किया। बाद में एक आरोपी मसीह को दोषमुक्त कर दिया गया, जबकि मुख्य आरोपी अख्तर अली को पोक्सो अधिनियम व आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई गई थी। दूसरे आरोपी प्रेमपाल को पांच साल कैद और जुर्माना लगाया गया था।
मुख्य आरोपी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया।

लोगों की मांग – “फांसी ही न्याय”

हल्द्वानी में उमड़े जनसैलाब ने साफ कहा कि बच्ची की हत्या और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध में आरोपी को फांसी से कम सजा नहीं मिलनी चाहिए। लोगों का कहना है कि यह फैसला न्यायपालिका पर सवाल खड़े करता है और पीड़ित परिवार के साथ अन्याय है।

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