मदरसे खा गए गरीबों का पैसा: SIT जांच से होंगे बड़े खुलासे,, मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर SIT गठित – 92 संस्थाएं जांच के घेरे में,, छात्रवृत्ति घोटाला: मदरसा बोर्ड की कार्यशैली पर भी उठे सवाल

इन्तजार रजा हरिद्वार- मदरसे खा गए गरीबों का पैसा: SIT जांच से होंगे बड़े खुलासे,,
मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर SIT गठित – 92 संस्थाएं जांच के घेरे में,,
छात्रवृत्ति घोटाला: मदरसा बोर्ड की कार्यशैली पर भी उठे सवाल

उत्तराखंड में एक बार फिर शिक्षा के नाम पर बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। इस बार निशाने पर हैं वो मदरसे और संस्थाएं जो अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के नाम पर फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी खजाना हजम कर गए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए एसआईटी (विशेष जांच टीम) के गठन के निर्देश दे दिए हैं। प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ है कि राज्य की 92 संस्थाओं पर संदेह जताया गया है, जिनमें 17 पर गबन के पुष्ट प्रमाण सामने आए हैं।
इस खुलासे के बाद न केवल उन मदरसों की साख पर सवाल उठ रहे हैं जिन्होंने इस योजना को गबन का जरिया बनाया, बल्कि उत्तराखंड मदरसा बोर्ड की कार्यशैली और ज़िम्मेदार ओहदेदारों की निष्क्रियता भी कठघरे में है।
धामी सरकार का कड़ा रुख – SIT करेगी चौतरफा जांच
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट कहा है कि “भ्रष्टाचारियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। छात्रवृत्ति जैसी कल्याणकारी योजना का दुरुपयोग बेहद शर्मनाक है।” केंद्र सरकार के निर्देशों पर गठित SIT अब पूरे प्रकरण की परत-दर-परत जांच करेगी। जांच के दायरे में सिर्फ फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने वाले संस्थान ही नहीं, बल्कि वे सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं जिनकी लापरवाही या मिलीभगत से यह घोटाला संभव हुआ।
जांच के सात बिंदु होंगे –
SIT को केंद्र द्वारा सात बिंदुओं पर जांच करने के निर्देश दिए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- लाभार्थी छात्रों के नामों और पहचान की वैधता की जांच
- दस्तावेज़ों (आधार, निवास, आय प्रमाणपत्र) की प्रामाणिकता
- संस्थानों की मान्यता और संचालन स्थिति
- गलत लाभ लेने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों की पहचान
- एफआईआर दर्ज करना और कानूनी कार्रवाई
- फंड के दुरुपयोग की राशि का निर्धारण
- वसूली और भविष्य में ऐसे घोटालों को रोकने के लिए सिस्टम में सुधार
कौन-कौन हैं लपेटे में – मदरसे, संस्कृत विद्यालय और सरकारी संरक्षण?
जांच में जो बातें अब तक सामने आई हैं, वे बेहद चौंकाने वाली हैं। अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं का लाभ उठाने के नाम पर कई संस्थानों ने फर्जी छात्र तैयार कर दिए। कहीं आधार कार्ड नकली थे, कहीं छात्रों की संख्या वास्तविक से कई गुना अधिक दिखाई गई।
उधम सिंह नगर के सरस्वती शिशु मंदिर हाई स्कूल,
रुद्रप्रयाग के वासुकेदार संस्कृत महाविद्यालय,
नैनीताल और हरिद्वार की दर्जनों संस्थाएं
भी शक के घेरे में हैं।
हालांकि, जिन 17 संस्थाओं पर अनियमितता की पुष्टि हो चुकी है, उनके नाम और विस्तृत विवरण SIT रिपोर्ट आने के बाद ही सार्वजनिक किए जाएंगे। लेकिन जिस तरह से मदरसे इस घोटाले में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, उसने पूरे मदरसा बोर्ड की साख को झकझोर कर रख दिया है।
मदरसा बोर्ड की विफलता – मुख्यमंत्री को खुद करना पड़ा हस्तक्षेप
यह पहला मौका नहीं है जब उत्तराखंड के मदरसों पर सवाल उठे हों। बीते वर्षों में समय-समय पर इन संस्थाओं की मान्यता, संचालन और कोष उपयोग को लेकर विवाद खड़े होते रहे हैं। लेकिन अफसोसजनक बात यह है कि मदरसा बोर्ड न तो समय पर जांच करता है और न ही पारदर्शिता सुनिश्चित करने में सक्षम दिखता है।
मुख्यमंत्री धामी की कड़ी टिप्पणी “अब मुझे खुद हस्तक्षेप करना पड़ता है” एक संकेत है कि मदरसा बोर्ड की प्रशासनिक क्षमता पर सरकार को भरोसा नहीं रहा। यदि मदरसा बोर्ड ने समय रहते अपने अधीन संस्थानों की सही जांच की होती, तो शायद ये स्थिति पैदा ही न होती।
कब से चल रहा है यह घोटाला?
जानकारी के मुताबिक, यह घोटाला 2021-22 और 2022-23 सत्रों में छात्रवृत्ति वितरण के दौरान हुआ। राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल पर आवेदन करने वाली कई संस्थाओं ने जानबूझकर फर्जी आंकड़े अपलोड किए।
इसमें कुछ ऐसी संस्थाएं भी हैं जो कागजों पर ही चल रही थीं या फिर जिनके नाम पर छात्र थे ही नहीं। इस पूरे मामले में प्रारंभिक जांच से संकेत मिला है कि एक संगठित गिरोह की तर्ज पर यह गबन किया गया।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
इस पूरे मामले ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस घोटाले को सरकार की विफलता बता रहे हैं, जबकि भाजपा इसे “भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की सख्त कार्रवाई” बता रही है।
वहीं सामाजिक संगठनों और अल्पसंख्यक वर्गों में भी चिंता की लहर है। ईमानदारी से चल रहे मदरसों और संस्थाओं को भी अब संदेह की नजर से देखा जा रहा है, जिससे उनकी छवि धूमिल हो रही है।
उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के कुछ मौलवियों ने भी इस घोटाले पर नाराजगी जताई है और जांच में सहयोग देने की बात कही है।
आगे की राह: SIT के सामने बड़ी चुनौती
अब गेंद SIT के पाले में है। इस जांच का दायरा बड़ा है और सैकड़ों छात्रों, संस्थानों, दस्तावेजों और अधिकारियों की भूमिका की समीक्षा करनी है। यह जरूरी है कि जांच निष्पक्ष और तेज़ी से हो ताकि
- दोषियों को सज़ा मिले,
- सरकारी धन की वसूली हो, और
- भविष्य में ऐसे गबन की गुंजाइश न रहे।
: गरीब छात्रों के हक़ पर डाका, सख्त कार्रवाई होनी चाहिए
छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं उन छात्रों के लिए होती हैं जो वास्तव में गरीब और जरूरतमंद होते हैं। यदि उनके हक़ के पैसों को कुछ लालची संस्थाएं और लापरवाह अधिकारी डकार जाते हैं, तो यह सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि नैतिक पतन का भी संकेत है।
मुख्यमंत्री धामी के हस्तक्षेप और एसआईटी जांच से उम्मीद की जा सकती है कि इस बार पर्दा पूरी तरह हटेगा और दोषियों को न केवल सज़ा मिलेगी, बल्कि जनता को भी सच्चाई का पता चलेगा।
रिपोर्ट: Daily Live Uttarakhand
विशेष संवाददाता – इंतज़ार रज़ा