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हरिद्वार में सरकारी खजाने की लूट: क्या किसको मिली छूट? सीएम धामी सरकार ने कस दिए पेंच, क्या हरिद्वार निकाय तंत्र में भ्रष्टाचार का होगा खुलासा: क्या हरिद्वार में हो गया बड़ा घोटाला, जनता का सवाल: क्या अब सच सामने आएगा या मामला दबा दिया जाएगा?, जांच अधिकारी रणवीर सिंह चौहान का बयान: “हम दोषियों को नहीं बख्शेंगे”, जांच अधिकारी का हरिद्वार दौरा: जमीनी स्तर पर की गई पड़ताल

इन्तजार रजा हरिद्वार- हरिद्वार में सरकारी खजाने की लूट: सीएम धामी सरकार ने कस दिए पेंच,

क्या हरिद्वार निकाय तंत्र में भ्रष्टाचार का होगा खुलासा: क्या हरिद्वार में हो गया बड़ा घोटाला,

जनता का सवाल: क्या अब सच सामने आएगा या मामला दबा दिया जाएगा?,

जांच अधिकारी रणवीर सिंह चौहान का बयान: “हम दोषियों को नहीं बख्शेंगे”,

जांच अधिकारी का हरिद्वार दौरा: जमीनी स्तर पर की गई पड़ताल

हरिद्वार, एक ऐसा शहर जिसे धार्मिक नगरी के रूप में जाना जाता है, आजकल चर्चा का केंद्र बना हुआ है, और यह चर्चा कोई धार्मिक या सांस्कृतिक मुद्दा नहीं, बल्कि नगर निगम की कारगुजारियों पर है। नगर निगम द्वारा 52 करोड़ की ज़मीन की खरीदी, जिसमें घोटाले और भ्रष्टाचार के स्पष्ट संकेत हैं, अब हरिद्वार की जनता के लिए एक बड़ा सवाल बन चुकी है—क्या यह रकम उनकी मेहनत की कमाई से आई थी या फिर सरकारी तिजोरी की खुली लूट का परिणाम?

एक ज़मीन, जो कभी विकास के लिए उपयोगी नहीं मानी गई, उसे अचानक इतने बड़े मूल्य पर खरीदा गया, जबकि उसके लिए ना तो कोई बुनियादी ढांचा था, न ही कोई भविष्य के विकास की योजना। यह सवाल तो खड़ा करता है कि क्या नगर निगम के अधिकारियों ने मिलकर इस प्रक्रिया को अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए चुना था। यही नहीं, इसमें उनकी मिलीभगत को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

जांच अधिकारी रणवीर सिंह चौहान का बयान: “हम दोषियों को नहीं बख्शेंगे”

राज्य सरकार द्वारा इस मामले की गंभीरता को देखते हुए एक जांच समिति बनाई गई है, जिसमें प्रमुख जांच अधिकारी के तौर पर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रणवीर सिंह चौहान को नियुक्त किया गया है। उनके नेतृत्व में अब इस घोटाले की तहकीकात की जा रही है। चौहान ने हाल ही में इस मामले पर बयान दिया और कहा,

“हमने इस मामले की जांच की शुरुआत कर दी है और सभी दस्तावेज़ों की गहनता से जांच की जाएगी। हमने ज़मीन की खरीद के स्थान पर जाकर निरीक्षण किया और पाया कि यह ज़मीन किसी भी दृष्टि से इस कीमत की नहीं थी। हम हर स्तर पर जांच करेंगे और किसी भी प्रकार की मिलीभगत को बर्दाश्त नहीं करेंगे। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

चौहान के इस बयान से स्पष्ट है कि सरकार इस घोटाले को छिपाने के बजाय इसे पूरी पारदर्शिता के साथ उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है। उनका कहना था कि इस जांच में किसी भी स्तर पर छूट नहीं दी जाएगी, और जो भी अधिकारी इस घोटाले में शामिल पाए जाएंगे, उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी।

जांच अधिकारी का हरिद्वार दौरा: जमीनी स्तर पर की गई पड़ताल

रणवीर सिंह चौहान ने हाल ही में हरिद्वार के सराय गांव का दौरा किया, जहां यह विवादास्पद ज़मीन स्थित है। उनका उद्देश्य सिर्फ ज़मीन के मूल्य का आकलन करना नहीं था, बल्कि यह भी देखना था कि इस ज़मीन को खरीदने की प्रक्रिया में क्या कोई भ्रष्टाचार या गड़बड़ी हुई थी।

उन्होंने अपनी टीम के साथ ज़मीन का निरीक्षण किया और पाया कि यहां किसी भी प्रकार के विकास की कोई योजना नहीं थी। सड़कें नहीं बनीं, जल निकासी की व्यवस्था नहीं थी, और न ही इस ज़मीन पर कोई बुनियादी ढांचा मौजूद था। इसके बावजूद, नगर निगम ने इस ज़मीन के लिए 52 करोड़ रुपये की भारी रकम चुकाई। चौहान ने यह भी कहा कि यह एक स्पष्ट संकेत है कि इस खरीद में किसी प्रकार की मिलीभगत हो सकती है।

उन्होंने कहा, “यह खरीद एक गलती नहीं, बल्कि एक सुनियोजित योजना का हिस्सा प्रतीत होती है। जिस ज़मीन को कभी विकास के लिए उपयोगी नहीं माना गया, उसे ऐसे मूल्य पर खरीदा गया, यह पूरी प्रक्रिया संदेहास्पद है। हम सभी दस्तावेजों की जांच करेंगे और जो भी दोषी होंगे, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।”

निकाय तंत्र की भूमिका और भ्रष्टाचार

इस मामले में सबसे अहम सवाल यह है कि नगर निगम हरिद्वार के अधिकारियों ने इतनी बड़ी खरीदारी की और वह भी एक ऐसी ज़मीन पर, जिसे कभी विकास के लिए उपयुक्त नहीं माना गया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह घोटाला सिर्फ एक ज़मीन की खरीद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नगर निगम की प्रणाली में गहरी जड़ें जमा चुका भ्रष्टाचार है।

नगर निगम के कुछ कर्मचारियों को अब पहले ही इस खरीदारी में शामिल होने के आरोप में निलंबित किया जा चुका है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह निलंबन सिर्फ सफाई का एक तरीका था, या इसके पीछे कहीं और भी कुछ बड़ा छुपा है? क्या यह सभी आरोप सिर्फ छोटे कर्मचारियों तक ही सीमित रहेंगे, या फिर उच्च अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं तक भी यह मामला जाएगा?

प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल

महापौर किरण जैसल ने भी इस घोटाले को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी और इसे नगर निगम की वित्तीय प्रणाली के साथ धोखा बताया था। उन्होंने कहा था, “यह केवल एक ज़मीन की खरीदारी का मामला नहीं है, यह एक व्यापक भ्रष्टाचार का हिस्सा है। अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की जाती, तो यह हमारी वित्तीय प्रणाली के लिए एक बड़ा धक्का होगा।”

इसके बाद मुख्यमंत्री ने इस मामले की जांच को और गंभीरता से लेने का आदेश दिया और एक उच्चस्तरीय जांच की शुरुआत की। चौहान के नेतृत्व में चल रही इस जांच से उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस मामले के सभी पहलुओं की गहराई से छानबीन की जाएगी।

आखिरकार, जनता का सवाल:

हरिद्वार की जनता आज यह सवाल कर रही है कि आखिर इस घोटाले के जिम्मेदार अधिकारियों को कब तक बख्शा जाएगा? यह रकम जनता के टैक्स से आई थी, और यह सवाल उठता है कि क्या अब तक जो हुआ, वह सिर्फ एक प्रशासनिक लापरवाही थी, या फिर इसमें किसी सुनियोजित साजिश का हिस्सा था?

नगर निगम और राज्य सरकार को अब इस मामले में जवाब देना होगा कि आखिर उन्होंने इतने बड़े घोटाले की अनदेखी क्यों की। क्या यह मामले को दबाने के लिए राजनीतिक दबाव था? या फिर यह भ्रष्टाचार का हिस्सा था, जो सत्ता के गलियारों में सशक्त संपर्कों के कारण दबा दिया गया था?

अब क्या होगा?

हरिद्वार के इस बड़े घोटाले को लेकर लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या राज्य सरकार इस मामले में सख्त कार्रवाई करती है, या फिर यह सिर्फ एक और विवाद बनकर रह जाएगा। जांच अधिकारी रणवीर सिंह चौहान ने अपनी भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा है कि इस मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। यह संदेश सभी को दिया गया है कि अब इस घोटाले को लेकर कोई भी समझौता नहीं होगा।

हरिद्वार के इस मामले में पूरे प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। अगर यहां किसी को सजा मिलती है और इस घोटाले का सही खुलासा होता है, तो यह एक मिसाल बनेगा, लेकिन अगर यह मामला सिर्फ एक जांच रिपोर्ट तक सीमित रह जाता है, तो यह प्रदेश में भ्रष्टाचार की स्थितियों को और भी मजबूती दे सकता है।

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