कनखल रविदास बस्ती में गंदे पानी की सप्लाई बनी जानलेवा समस्या, शंकराचार्य आश्रम और बंगाली हॉस्पिटल भी प्रभावित, अधिवक्ताओं ने राज्य मानवाधिकार आयोग में दायर की रिट, प्रमुख सचिव शहरी विकास, डीएम हरिद्वार और मेयर को बनाया गया पक्षकार, दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग

इन्तजार रजा हरिद्वार- कनखल रविदास बस्ती में गंदे पानी की सप्लाई बनी जानलेवा समस्या,
शंकराचार्य आश्रम और बंगाली हॉस्पिटल भी प्रभावित, अधिवक्ताओं ने राज्य मानवाधिकार आयोग में दायर की रिट,
प्रमुख सचिव शहरी विकास, डीएम हरिद्वार और मेयर को बनाया गया पक्षकार, दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग
हरिद्वार नगर निगम के अंतर्गत आने वाले कनखल क्षेत्र की रविदास बस्ती एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह है – दूषित और बदबूदार पानी की आपूर्ति, जो न केवल आम नागरिकों की सेहत पर कहर बनकर टूट रही है, बल्कि धार्मिक और स्वास्थ्य संस्थानों को भी प्रभावित कर रही है। इस गंभीर समस्या को लेकर अब न्यायिक मोर्चा खोल दिया गया है।
हरिद्वार के युवा अधिवक्ता अरुण भदोरिया, कमल भदोरिया और चेतन भदोरिया (LLB छात्र) ने मिलकर उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग में एक रिट याचिका दाखिल की है। इस रिट में उन्होंने राज्य के प्रमुख सचिव शहरी विकास, जिलाधिकारी हरिद्वार और नगर निगम की महापौर को प्रतिवादी (पक्षकार) बनाते हुए क्षेत्र में हो रहे मानवीय अधिकारों के उल्लंघन को उजागर किया है।
आध्यात्मिक और चिकित्सा पर्यटन भी हुआ प्रभावित
रविदास बस्ती केवल एक आवासीय क्षेत्र नहीं है, यह धार्मिक, सामाजिक और चिकित्सकीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहीं पर जगतगुरु शंकराचार्य श्री अभी मुक्तेश्वरानंद जी महाराज का आश्रम स्थित है, जहां देशभर से संत, श्रद्धालु और साधक प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। इसके अलावा, बंगाली अस्पताल भी इसी क्षेत्र में है, जहां पर देश-विदेश से मरीज उपचार के लिए आते हैं।
याचिका में कहा गया है कि इन धार्मिक और स्वास्थ्य संस्थानों तक दूषित और बदबूदार पानी की आपूर्ति हो रही है, जिससे रोगों के संक्रमण और महामारी फैलने का खतरा उत्पन्न हो चुका है। अधिवक्ताओं ने यह भी बताया कि पानी की दुर्गंध और उसमें मौजूद गंदगी के कारण छोटे बच्चे उल्टी, दस्त, बुखार, स्किन इंफेक्शन और पेट की गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं।
प्रशासनिक चुप्पी और नागरिकों का आक्रोश
इस विषय में क्षेत्रीय पार्षद भूपेंद्र कुमार ने नगर निगम, जल संस्थान और जिला प्रशासन को कई बार लिखित और मौखिक शिकायतें दी हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई। इसके परिणामस्वरूप नागरिकों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। क्षेत्रवासियों ने प्रदर्शन किए, अधिकारियों का पुतला जलाया और शांति पूर्ण तरीके से विरोध दर्ज कराया।
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में यह उल्लेख किया है कि कई बार समाचार पत्रों, न्यूज़ पोर्टलों और सोशल मीडिया के माध्यम से भी इस गंभीर समस्या को उजागर किया गया, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदकर बैठे हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रशासनिक तंत्र इस मानवीय संकट के प्रति असंवेदनशील और उदासीन रवैया अपनाए हुए है।
मानवाधिकार हनन और कानूनी पहल
“भदोरिया एसोसिएट्स” द्वारा दायर की गई रिट याचिका में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि यह मामला अब केवल प्रशासनिक लापरवाही का नहीं रहा, बल्कि यह सीधा आम नागरिकों के मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला बन गया है। स्वच्छ और सुरक्षित पानी उपलब्ध कराना सरकार और स्थानीय निकायों की संवैधानिक जिम्मेदारी है, लेकिन यहां जानबूझकर नागरिकों को गंदा पानी पीने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने राज्य मानवाधिकार आयोग से मांग की है कि:
- तत्काल प्रभाव से रविदास बस्ती में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
- जिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य से खिलवाड़ हुआ है, उनके विरुद्ध कठोर प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई की जाए।
- भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए निगरानी समिति का गठन किया जाए।
जनता का सवाल: कब जागेगा प्रशासन?
इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर प्रशासनिक जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। क्या नगर निगम और जिला प्रशासन इतनी बड़ी समस्या को अनदेखा कर सकते हैं? क्या आध्यात्मिक पर्यटन स्थल पर आने वाले विदेशी श्रद्धालुओं और मरीजों की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं?
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि नगर निगम के अधिकारी केवल फाइलों में काम करते हैं, जमीन पर नहीं। वहीं पार्षद भूपेंद्र कुमार का कहना है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए लगातार समस्याओं को संबंधित अधिकारियों तक पहुँचाया, लेकिन जब प्रशासन ही गूंगा-बहरा बना रहे तो आम जनता न्याय के लिए न्यायालय और आयोग का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हो जाती है।
उम्मीदें आयोग से
अब इस याचिका के जरिए रविदास बस्ती के नागरिकों की नजरें उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग पर टिकी हैं। अगर आयोग इस मामले में त्वरित और प्रभावशाली कदम उठाता है, तो यह न केवल रविदास बस्ती बल्कि प्रदेश के अन्य उपेक्षित क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए भी एक उम्मीद की किरण साबित हो सकता है।
हरिद्वार एक धार्मिक और पर्यटन नगरी है, जहां से देश-दुनिया में भारत की छवि बनती है। ऐसे में यदि यहां के नागरिक गंदा पानी पीने को मजबूर हों, तो यह न केवल स्वास्थ्य का मुद्दा है, बल्कि प्रदेश के सम्मान और गरिमा से भी जुड़ा प्रश्न बन जाता है।
रिपोर्ट: इंतजार रज़ा, हरिद्वार
Daily Live Uttarakhand