पटवारी पेपर लीक विवाद ने पकड़ा नया मोड़,, कही धामी और मर्तोलिया की ईमानदारी को निशाना बनाने की साजिश तो नहीं,, भदौरिया (बंधु)अधिवक्ताओं ने मानवाधिकार आयोग में दाखिल कर दी याचिका

इन्तजार रजा हरिद्वार- पटवारी पेपर लीक विवाद ने पकड़ा नया मोड़,,
कही धामी और मर्तोलिया की ईमानदारी को निशाना बनाने की साजिश तो नहीं,,
भदौरिया (बंधु)अधिवक्ताओं ने मानवाधिकार आयोग में दाखिल कर दी याचिका

उत्तराखण्ड की चर्चित पटवारी भर्ती परीक्षा पेपर लीक प्रकरण अब महज एक परीक्षा घोटाला न रहकर राजनीतिक साजिश के दायरे में आ गया है। हरिद्वार निवासी अधिवक्ता परिवार ने राज्य मानवाधिकार आयोग, देहरादून में एक याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि इस पूरे मामले को बेवजह तूल देकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) के चेयरमैन व पूर्व डीआईजी गणेश सिंह मर्तोलिया की ईमानदार छवि को धूमिल करने की कोशिश की गई।
याचिकाकर्ताओं ने साफ कहा है कि यह पूरा मामला राजनीतिक प्रायोजित षड्यंत्र था, जिसमें कुछ गैर जिम्मेदार नेताओं और स्वार्थी तत्वों ने युवाओं को गुमराह करके आंदोलन खड़ा कराया। जबकि हकीकत यह थी कि पूरा प्रकरण केवल एक अभियुक्त तक सीमित था और शासन-प्रशासन के किसी भी अधिकारी-कर्मचारी का इसमें नाम सामने नहीं आया।

इस याचिका को अधिवक्ता अरुण कुमार भदौरिया, उनकी पुत्री सुमेधा भदौरिया, पुत्र कमल भदौरिया और एलएलबी छात्र चेतन भदौरिया ने मिलकर दाखिल किया है। चारों निवासीगण हरिद्वार के कनखल क्षेत्र के बताए गए हैं।
उन्होंने आयोग को अवगत कराया कि –
- प्रार्थीगण में से तीन लोग अधिवक्ता हैं और एक कानून की पढ़ाई कर रहा है।
- अधिवक्ता होने के नाते उनका दायित्व है कि वे पीड़ित को न्याय दिलाएं और समाज में फैल रही कुरीतियों को उजागर करें।
- इसी कड़ी में उन्होंने पटवारी परीक्षा विवाद की सच्चाई सामने रखी है।
क्या ईमानदारी पर हमला करने की कोशिश
याचिका में दावा किया गया है कि उत्तराखण्ड के कई ईमानदार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की चर्चा पूरे देश में होती है। महाराष्ट्र जैसे दूर राज्य में भी जब मंच से उत्तराखण्ड के अधिकारियों की ईमानदारी की मिसाल दी गई तो गर्व का अनुभव हुआ।
लेकिन ठीक इसके बाद ही पटवारी परीक्षा का पेपर लीक प्रकरण उछाला गया। प्रार्थियों का कहना है कि –
- गणेश सिंह मर्तोलिया, जिन्होंने अपने पुलिस कार्यकाल में भी ईमानदारी का परिचय दिया, को बेवजह कटघरे में खड़ा किया गया।
- मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, जिन्होंने लगातार विकास और कर्मठता से लम्बे कार्यकाल का रिकॉर्ड बनाया, को भी इस साजिश में निशाना बनाया गया।
- साफ है कि यह हमला केवल परीक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि ईमानदार नेतृत्व और प्रशासनिक छवि को धूमिल करने की कोशिश थी।
पुलिस की त्वरित कार्रवाई और SIT गठन
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि जैसे ही जानकारी मिली कि सुल्तानपुर लक्सर निवासी खालिद ने पेपर लीक किया है, पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की।
- मुकदमा दर्ज हुआ।
- अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया।
- जेल भेजा गया।
इसके अलावा मुख्यमंत्री धामी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। SIT की निगरानी ईमानदार अधिकारियों को दी गई। इतना ही नहीं, पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए मुख्यमंत्री ने CBI जांच की संस्तुति भी कर दी।
याचिका में कहा गया है कि जब सभी कानूनी कदम उठाए जा चुके थे, तब भी आंदोलन जारी रखना और अफवाहें फैलाना इस बात का संकेत है कि मामला केवल छात्रों की चिंता नहीं था, बल्कि इसके पीछे कोई और मंशा छिपी थी।
क्या युवाओं को भड़काने की बड़ी साजिश
याचिका में विशेष रूप से उल्लेख किया गया कि कुछ नेताओं और गैर जिम्मेदार व्यक्तियों ने युवाओं को गुमराह किया।
- खालिद ने बयान दिया था कि उसने स्कूल की दीवार फांदकर अंदर घुसकर पेपर हासिल किया।
- यह जानकारी आंदोलनकारी युवाओं तक जानबूझकर नहीं पहुंचाई गई।
- नेताओं ने युवाओं को सच बताने के बजाय उन्हें भड़काया और आंदोलन का रूप देने में भूमिका निभाई।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन युवाओं को इस्तेमाल करके कुछ लोग सरकार और आयोग की छवि धूमिल करना चाहते थे।
विपक्षी नेताओं पर सीधा हमला
प्रार्थीगण ने बिना नाम लिए इशारों में विपक्षी नेताओं को कटघरे में खड़ा किया। उनका कहना है कि राज्य में कुछ गैर जिम्मेदार नेता और उनके सहयोगी इस पूरे मामले को राजनीतिक हथियार बनाकर माहौल बिगाड़ना चाहते थे।
उनका आरोप है कि –
- इन लोगों ने जानबूझकर धामी और मर्तोलिया को टारगेट किया।
- युवाओं को भड़काकर आंदोलन का स्वरूप दिया।
- राज्य की ईमानदार छवि को तोड़ने की कोशिश की।
याचिकाकर्ताओं की प्रमुख मांगें
प्रार्थीगण ने मानवाधिकार आयोग से तीन ठोस मांगें की हैं –
- मोबाइल नंबर की जांच – आंदोलन करने वाले नेताओं के मोबाइल नंबर की परीक्षा तिथि से अब तक की कॉल डिटेल जांची जाए। इससे स्पष्ट हो सकेगा कि किसने युवाओं को भड़काया।
- षड्यंत्र का पर्दाफाश – यह साफ किया जाए कि किसने मुख्यमंत्री और आयोग अध्यक्ष को बदनाम करने की साजिश रची।
- कठोर कार्रवाई – सभी षड्यंत्रकारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह राज्य की छवि खराब न कर सके।
राजनीतिक रंग और प्रशासन की परीक्षा
याचिका दाखिल होने के बाद अब यह मामला प्रशासनिक ईमानदारी बनाम राजनीतिक साजिश की जंग में बदल गया है।
- विपक्ष लगातार सरकार पर हमला कर रहा है।
- सरकार और आयोग अपनी पारदर्शिता साबित करने में जुटे हैं।
- अब अधिवक्ताओं की याचिका ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वास्तव में यह प्रकरण युवाओं की बेरोजगारी की पीड़ा से जुड़ा था या फिर यह किसी बड़े राजनीतिक खेल का हिस्सा था?
मानवाधिकार आयोग की भूमिका अहम
29 सितम्बर 2025 को दाखिल इस याचिका पर अब राज्य मानवाधिकार आयोग की जिम्मेदारी बढ़ गई है। आयोग को यह तय करना होगा कि –
- क्या युवाओं के अधिकारों के नाम पर उन्हें गुमराह किया गया?
- क्या नेताओं ने राजनीतिक लाभ के लिए युवाओं को इस्तेमाल किया?
- क्या यह पूरा आंदोलन एक सुनियोजित षड्यंत्र था?
अगर आयोग इस मामले में कठोर निर्णय लेता है तो कई बड़े चेहरे बेनकाब हो सकते हैं।
ईमानदारी बनाम साजिश
पटवारी परीक्षा का यह विवाद अब केवल परीक्षा घोटाले का मामला नहीं रह गया है। यह मुद्दा बन गया है –
- ईमानदार नेतृत्व की छवि बचाने का
- बनाम
- राजनीतिक साजिश का खेल उजागर करने का
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उत्तराखण्ड के ईमानदार अधिकारियों और मुख्यमंत्री को बदनाम करने की यह साजिश नाकाम हो चुकी है। अब सवाल यह है कि क्या आयोग षड्यंत्रकारियों पर नकेल कस पाएगा या फिर यह मामला भी समय की धूल में दबकर रह जाएगा?