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उत्तराखंड में नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर रोक: हजारों परिवारों को तगड़ा झटका

इन्तजार रजा हरिद्वार- उत्तराखंड में नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर रोक: हजारों परिवारों को तगड़ा झटका

उत्तराखंड सरकार द्वारा हाल ही में लिया गया एक महत्वपूर्ण निर्णय प्रदेश के हजारों परिवारों के लिए बड़ा झटका बनकर सामने आया है। राज्य में अब नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। यह आदेश ऐसे समय आया है जब बड़ी संख्या में लोग वर्षों से इस भूमि पर रह रहे हैं और इसे अपना मालिकाना हक दिलाने के लिए प्रयासरत थे। इस फैसले के बाद न केवल इन लोगों की उम्मीदों को धक्का लगा है, बल्कि भविष्य में नजूल भूमि को लेकर होने वाले विकास और स्वामित्व से जुड़े कार्य भी प्रभावित होंगे।

क्या है नजूल भूमि?

नजूल भूमि वह भूमि होती है जिसे ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अंग्रेजों ने रियासतों और स्थानीय शासकों से जब्त कर लिया था। यह भूमि अब सरकारी संपत्ति के रूप में जानी जाती है और आमतौर पर इसका उपयोग सार्वजनिक उपयोग के लिए किया जाता है या फिर इसे लीज पर दिया जाता है। उत्तराखंड में विशेषकर देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर जैसे मैदानी जिलों में बड़ी मात्रा में नजूल भूमि पाई जाती है। आजादी के बाद भी इस भूमि पर कई लोग बस गए और वर्षों से उसका उपयोग कर रहे हैं।

नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने की प्रक्रिया

राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर नजूल भूमि के फ्री होल्ड की प्रक्रिया चलाई गई। इसका मतलब यह है कि जो लोग वर्षों से नजूल भूमि पर रह रहे हैं, उन्हें एक निश्चित शुल्क के बदले उस जमीन का मालिकाना हक दे दिया जाए। इसके तहत सबसे पहले नजूल नीति 2009 लाई गई थी, जिसके तहत हजारों लोगों ने शुल्क अदा कर भूमि का स्वामित्व प्राप्त कर लिया था। इसके बाद इसे और व्यवस्थित करने के लिए नजूल नीति 2021 लागू की गई थी।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और कानूनी विवाद

हालांकि, यह प्रक्रिया शुरू से ही विवादों में रही है। 2009 की नीति को उत्तराखंड हाईकोर्ट, नैनीताल में चुनौती दी गई थी। जून 2018 में हाईकोर्ट ने इस नीति को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि सरकारी भूमि को इस तरह किसी कब्जाधारी को स्वामित्व के रूप में देना संविधान के खिलाफ है। इस आदेश के बाद करीब 8000 से अधिक परिवारों को बड़ा झटका लगा, जिन्होंने पहले ही शुल्क अदा कर फ्री होल्ड करवाया था। कोर्ट के फैसले के बाद इनका स्वामित्व भी अवैध घोषित कर दिया गया।

हालिया आदेश और उसका प्रभाव

अब राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों के आधार पर पूरे प्रदेश में नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। इस निर्णय की जानकारी सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को भेज दी गई है। इसका सीधा असर उन हजारों लोगों पर पड़ेगा जो नजूल भूमि पर रहते हैं और इसे अपना पक्का स्वामित्व दिलवाने के लिए लंबे समय से प्रयास कर रहे थे।

प्रभावित परिवारों की चिंता

इस निर्णय से सबसे अधिक प्रभावित वे परिवार होंगे जो पीढ़ियों से नजूल भूमि पर रह रहे हैं और उन्होंने उस भूमि पर अपना मकान भी बना लिया है। कई लोगों ने तो नजूल भूमि के दस्तावेजों के आधार पर बिजली, पानी और अन्य सुविधाएं भी प्राप्त कर ली हैं। अब जब फ्री होल्ड पर रोक लगाई गई है, तो इन लोगों का भविष्य अनिश्चित हो गया है। न तो वे इस भूमि को बेच सकते हैं और न ही उस पर किसी प्रकार का वैध निर्माण कार्य करा सकते हैं।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

इस निर्णय को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने सरकार की आलोचना शुरू कर दी है। उनका कहना है कि सरकार ने जनता को फ्री होल्ड का सपना दिखाकर वोट तो ले लिए, लेकिन अब उन्हें न्याय से वंचित कर रही है। कुछ संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार इस फैसले को वापस नहीं लेती, तो वे आंदोलन करेंगे।

आगे की राह क्या है?

अब सवाल यह उठता है कि आगे इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाएगा? क्या सरकार फिर से कोई नई नीति लेकर आएगी या फिर हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी? फिलहाल के लिए स्थिति स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह तय है कि इस मुद्दे को लेकर प्रदेश में सामाजिक और राजनीतिक हलचल बनी रहेगी।

नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर लगी यह रोक एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा बन गया है। एक ओर यह कानूनी पहलू से जुड़ा मामला है, जिसमें अदालत ने स्पष्ट रूप से अपनी भूमिका निभाई है, वहीं दूसरी ओर यह हजारों परिवारों की जीविका और अधिकारों से भी जुड़ा हुआ विषय है। सरकार को चाहिए कि वह सभी पक्षों की बात सुनकर और संविधान के दायरे में रहकर कोई स्थायी समाधान निकाले, जिससे प्रभावित लोगों को न्याय मिल सके और भविष्य में इस तरह के विवादों से बचा जा सके।

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