धर्म संसद मामला: वसीम रिजवी को अदालत से राहत, सवालों के घेरे में पुलिस जांच

इन्तजार रजा हरिद्वार- धर्म संसद मामला: वसीम रिजवी को अदालत से राहत, सवालों के घेरे में पुलिस जांच, क्या है माया-जाल

हरिद्वार में वर्ष 2021 में आयोजित धर्म संसद के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोपों का सामना कर रहे वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को उत्तराखंड की अदालत से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने उन्हें साक्ष्यों के अभाव में दोषमुक्त करार दिया है। इस फैसले के बाद जहां कुछ वर्गों ने न्यायपालिका में भरोसा जताया है, वहीं कई सवाल भी खड़े हो गए हैं — विशेषकर पुलिस की जांच प्रक्रिया और अभियोजन की तत्परता को लेकर।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की दोषमुक्ति का नहीं, बल्कि देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था और उसके विभिन्न पक्षों की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालता है। आइए समझते हैं कि पूरा मामला क्या था, जांच और अदालत की प्रक्रिया कैसी रही, और अब इसके बाद कौन से सवाल उठ खड़े हुए हैं।
क्या था पूरा मामला?……..17 से 19 दिसंबर 2021 के बीच हरिद्वार में धर्म संसद का आयोजन हुआ था, जिसमें कई हिंदू संतों और विचारकों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान वसीम रिजवी, जिन्होंने इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपनाया था और जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी नाम रखा था, पर आरोप लगा कि उन्होंने मंच से भड़काऊ और आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं।
इन टिप्पणियों को लेकर व्यापक स्तर पर विरोध हुआ और वसीम रिजवी के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोपों में केस दर्ज हुआ। इस मामले ने मीडिया और सामाजिक मंचों पर तीखी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं और पूरे देश में बहस का मुद्दा बन गया
विवेचना और चार्जशीट—-घटना के बाद पुलिस ने जांच शुरू की और जनवरी 2022 में वसीम रिजवी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इसके बाद उन्हें कुछ समय तक न्यायिक हिरासत में भी रहना पड़ा, और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया।जांच के दौरान अभियोजन पक्ष ने कुल 10 गवाहों को प्रस्तुत किया। आरोप था कि इन गवाहों के माध्यम से यह साबित किया जा सकेगा कि आरोपी ने सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के उद्देश्य से जानबूझकर उत्तेजक भाषण दिया था।
कोर्ट का फैसला: ‘संदेह का लाभ’……मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अविनाश कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने जब दोनों पक्षों की दलीलें और प्रस्तुत साक्ष्यों का विश्लेषण किया, तो पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य इतने ठोस नहीं हैं कि आरोपी को दोषी ठहराया जा सके।
कोर्ट ने साफ कहा:….“प्रस्तुत गवाहों की गवाही में पर्याप्त ठोसपन नहीं है और न ही ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण दिया गया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि उक्त भाषण से सामाजिक वैमनस्य उत्पन्न हुआ या सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हुई।”इस प्रकार अदालत ने वसीम रिजवी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया।
फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रिया…इस निर्णय के बाद समाज के विभिन्न वर्गों में प्रतिक्रिया आई:समर्थकों की राय:…..बहुत से लोगों ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह न्याय की जीत है। उनका मानना है कि किसी को केवल राजनीतिक या सामाजिक दबाव में सजा देना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होता।
विरोधियों की चिंता:…..दूसरी ओर कुछ लोगों ने कहा कि पुलिस जांच में गंभीर खामियां थीं। यदि एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दिए गए भाषण के बावजूद आरोपी को सजा नहीं दिलाई जा सकी, तो यह हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली की कमजोरी को दर्शाता है।
पुलिस जांच पर उठे सवाल….इस फैसले ने विशेष रूप से पुलिस जांच और अभियोजन की रणनीति को कठघरे में खड़ा किया है। मुख्य सवाल जो उठाए जा रहे हैं, वे इस प्रकार हैं:
1. क्या पर्याप्त डिजिटल सबूत इकट्ठा किए गए?….धर्म संसद के दौरान कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पुलिस ने इन वीडियो की फॉरेंसिक जांच कर उन्हें अदालत में पुख्ता सबूत के रूप में प्रस्तुत किया?
2. गवाहों की गवाही कमजोर क्यों रही?
अगर 10 गवाहों को बुलाया गया, तो क्यों उनकी गवाही अदालत में ठहर नहीं पाई? क्या गवाह डर गए, मुकर गए या उनकी गवाही जांच में समुचित रूप से दर्ज नहीं की गई?
3. क्या राजनीतिक दबाव रहा?
इस मामले में यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या किसी राजनीतिक प्रभाव के कारण जांच को कमजोर किया गया या अभियोजन पक्ष ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
यह मामला क्यों है अहम?
भारत जैसे बहु-धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता वाले देश में, इस प्रकार के भड़काऊ भाषण सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में इस तरह के मामलों में दोषियों को कानून के अनुसार सजा दिलाना आवश्यक होता है, ताकि एक उदाहरण स्थापित हो और ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।जब कोई आरोपी साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त होता है, तो इसका संदेश समाज में मिलाजुला जाता है — एक ओर न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भरोसा बढ़ता है, तो दूसरी ओर कमजोर जांच और अभियोजन को लेकर विश्वास में गिरावट आती है।
क्या आगे होगी कोई अपील?
हालांकि वसीम रिजवी को दोषमुक्त कर दिया गया है, लेकिन यदि राज्य सरकार या शिकायतकर्ता चाहें तो इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं। ऐसे मामलों में उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर कर निर्णय को चुनौती दी जा सकती है।
धर्म संसद मामला कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है — धार्मिक असहिष्णुता, भड़काऊ भाषण, पुलिस की जांच प्रणाली, न्यायिक संतुलन और लोकतांत्रिक समाज में भाषण की सीमा। वसीम रिजवी की दोषमुक्ति एक कानूनी निर्णय है, लेकिन यह न्याय व्यवस्था के कई स्तरों पर सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
अगर समाज में कानून का डर कायम रखना है, तो सिर्फ मुकदमा दर्ज करना पर्याप्त नहीं होता। न्याय तभी होता है जब दोषियों को सजा मिले और निर्दोषों को दोषमुक्त किया जाए — वह भी पुख्ता, निष्पक्ष और पेशेवर जांच के आधार पर। यह मामला इस बात की भी याद दिलाता है कि “साक्ष्य” ही किसी भी आपराधिक मुकदमे की रीढ़ होते हैं — और वही अगर कमजोर हो, तो कानून का हाथ भी बंधा रह जाता है।