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शराब ब्रांड ‘त्रिकाल’ नाम पर संतों का बवाल, शिव-संस्कृति से खिलवाड़ नहीं सहेगा संत समाज, हरिद्वार से उठी चेतावनी—ब्रांड बदलिए, वरना होगा महा आंदोलन

इन्तजार रजा हरिद्वार- शराब ब्रांड ‘त्रिकाल’ नाम पर संतों का बवाल,
शिव-संस्कृति से खिलवाड़ नहीं सहेगा संत समाज,
हरिद्वार से उठी चेतावनी—ब्रांड बदलिए, वरना होगा महा आंदोलन

हरिद्वार में शराब ब्रांड ‘त्रिकाल’ को लेकर संत समाज का गुस्सा फूट पड़ा है। रेडीको खेतान कंपनी की नई व्हिस्की ‘त्रिकाल’ के नाम पर तीर्थ पुरोहितों और साधु-संतों ने तीखी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह नाम हिंदू आस्था और सनातन संस्कृति का घोर अपमान है। संत समाज ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही ब्रांड का नाम नहीं बदला गया तो हरिद्वार से देशव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा।

आस्था से जुड़ा नाम, व्यावसायिक लाभ के लिए इस्तेमाल

संतों का कहना है कि ‘त्रिकाल’ कोई सामान्य शब्द नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव, वेदों, उपनिषदों और भारतीय दर्शन से जुड़ा पवित्र संकल्पना है। ‘त्रिकालदर्शी’ की अवधारणा भगवान शिव से जुड़ी है, जो भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता माने जाते हैं। ऐसे दिव्य शब्द को शराब जैसी अपवित्र चीज़ से जोड़ना आस्था का अपमान है।

हर की पौड़ी पर जुटे तीर्थ पुरोहितों और अखाड़ा परिषद से जुड़े संतों ने प्रेस वार्ता में कहा कि यह सिर्फ नाम नहीं, बल्कि हिंदू संस्कृति पर हमला है। इससे पहले भी कई बार कंपनियों ने धर्म और देवी-देवताओं के नामों का इस्तेमाल कर व्यापारिक मुनाफा कमाने की कोशिश की है, जिसे अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

संतों की चेतावनी—अबकी बार देशभर में होगा विरोध

तीर्थ पुरोहित सभा के वरिष्ठ सदस्य पं. विष्णु दत्त शर्मा ने कहा कि रेडीको खेतान जैसी बड़ी कंपनियां सोच-समझकर पवित्र शब्दों का चयन करती हैं ताकि ब्रांड को जल्दी पहचान मिले। लेकिन यह सनातन संस्कृति के साथ धोखा है। उन्होंने मांग की कि कंपनी तुरंत ‘त्रिकाल’ नाम वापस ले और सार्वजनिक रूप से माफी मांगे।

अखाड़ा परिषद से जुड़े महामंडलेश्वर स्वामी आनंदगिरी ने कहा कि यदि कंपनी ने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी, तो हरिद्वार से लेकर दिल्ली तक आंदोलन होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आने वाले कुंभ से पहले यह लड़ाई और तेज़ की जाएगी और देशभर के संतों को इस आंदोलन से जोड़ा जाएगा।

कंपनी की चुप्पी पर उठे सवाल

फिलहाल रेडीको खेतान की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन धार्मिक संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया को देखते हुए माना जा रहा है कि दबाव बढ़ता जा रहा है। संत समाज ने साफ कर दिया है कि यह विरोध सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं रहेगा, बल्कि व्यापक जनआंदोलन का रूप लेगा।

हरिद्वार से उठी यह चेतावनी न केवल धर्म की रक्षा का सवाल बन गई है, बल्कि यह भी संकेत दे रही है कि अब हिंदू संस्कृति से जुड़े प्रतीकों के व्यावसायीकरण पर गंभीर बहस जरूरी हो गई है।

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