पूर्व में हरिद्वार के मुख्य शिक्षा अधिकारी रहे प्रमोशन न मिलने से आहत टिहरी के मुख्य शिक्षा अधिकारी एसपी सेमवाल ने दिया इस्तीफा,, “हर अर्हता पूरी करने के बावजूद हक नहीं मिला” – विभागीय सुस्ती पर उठे सवाल,, शिक्षक आंदोलन और अधिकारियों की नाराज़गी से शिक्षा विभाग पर बढ़ा दबाव
उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में इन दिनों असंतोष का माहौल है। इसका ताज़ा उदाहरण टिहरी जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ) एस.पी. सेमवाल का इस्तीफा है। लंबे समय से प्रमोशन का इंतज़ार कर रहे सेमवाल ने आखिरकार निराश होकर अपना पद छोड़ दिया। उनका इस्तीफा न सिर्फ विभागीय कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के भीतर अधिकारियों और कर्मचारियों में नाराज़गी.।

इन्तजार रजा हरिद्वार- पूर्व में हरिद्वार के मुख्य शिक्षा अधिकारी रहे प्रमोशन न मिलने से आहत टिहरी के मुख्य शिक्षा अधिकारी एसपी सेमवाल ने दिया इस्तीफा,,
“हर अर्हता पूरी करने के बावजूद हक नहीं मिला” – विभागीय सुस्ती पर उठे सवाल,,
शिक्षक आंदोलन और अधिकारियों की नाराज़गी से शिक्षा विभाग पर बढ़ा दबाव
देहरादून/टिहरी गढ़वाल।
उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में इन दिनों असंतोष का माहौल है। इसका ताज़ा उदाहरण टिहरी जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ) एस.पी. सेमवाल का इस्तीफा है। लंबे समय से प्रमोशन का इंतज़ार कर रहे सेमवाल ने आखिरकार निराश होकर अपना पद छोड़ दिया। उनका इस्तीफा न सिर्फ विभागीय कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के भीतर अधिकारियों और कर्मचारियों में नाराज़गी गहराती जा रही है।
आठ महीने से रुकी फाइल और टूटी उम्मीदें
सूत्रों के अनुसार एस.पी. सेमवाल का फरवरी 2025 में अपर निदेशक पद पर प्रमोशन होना तय था। सभी अर्हताएं पूरी होने और वरिष्ठता सूची में नाम होने के बावजूद विभागीय प्रक्रियाओं की धीमी रफ्तार के कारण उनकी फाइल आगे नहीं बढ़ी। आठ महीने गुजर जाने के बाद भी जब स्थिति जस की तस रही तो उन्होंने शिक्षा सचिव रविनाथ रमन को पत्र लिखकर अपने इस्तीफे की पुष्टि कर दी। सेमवाल ने अपने त्यागपत्र में साफ लिखा –
“हर अर्हता पूरी करने के बावजूद मुझे हक नहीं मिला। बार-बार आश्वासन दिए गए, लेकिन प्रमोशन की फाइल आगे नहीं बढ़ी। इससे मानसिक पीड़ा और असंतोष पैदा हुआ, जिसके चलते मुझे इस्तीफा देना पड़ा।”
उनकी यह पीड़ा न केवल व्यक्तिगत है, बल्कि पूरे विभाग की धीमी कार्यशैली की ओर भी इशारा करती है।
विभागीय सुस्ती पर उठे सवाल
इस इस्तीफे ने प्रदेश के शिक्षा विभाग के अंदरूनी हालात पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। क्या प्रमोशन प्रणाली इतनी जटिल और सुस्त है कि एक अनुभवी अधिकारी को पद छोड़ना पड़े? क्या बार-बार दिए गए आश्वासन महज़ औपचारिकता बनकर रह गए हैं?
विभाग के जानकार बताते हैं कि लम्बे समय से शिक्षकों और अधिकारियों की पदोन्नति प्रक्रिया में देरी हो रही है। कई फाइलें महीनों तक सचिवालय में पड़ी रहती हैं, जिससे कर्मचारियों का मनोबल गिरता है।
शिक्षकों का बढ़ता आक्रोश और आंदोलन
गौरतलब है कि इन दिनों उत्तराखंड में शिक्षक वर्ग भी भारी आक्रोश में है। राजकीय शिक्षक संघ से जुड़े 25 हजार से ज्यादा शिक्षक प्रमोशन, तबादला और सीधी भर्ती के मुद्दों पर आंदोलनरत हैं। उनकी तीन प्रमुख मांगें हैं –
- प्रधानाचार्य पद पर सीधी भर्ती रद्द की जाए।
- प्रमोशन की राह खोली जाए।
- तबादला प्रक्रिया शुरू की जाए।
आंदोलनकारी शिक्षक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे शिक्षा मंत्री के आवास का घेराव करेंगे। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री को अपने खून से लिखे 20 हजार पत्र भेजने की घोषणा भी की गई है।
इस बढ़ते आक्रोश के बीच सेमवाल का इस्तीफा आग में घी डालने जैसा साबित हो सकता है।
सरकार और विभाग पर दबाव
शिक्षकों और अधिकारियों की नाराज़गी से शिक्षा विभाग पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यदि समय रहते समाधान नहीं हुआ तो यह मामला सरकार के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। माना जा रहा है कि आज होने वाली राज्य कैबिनेट बैठक में इस मसले पर चर्चा हो सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एक ओर राज्य सरकार शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के बड़े-बड़े दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर विभागीय सुस्ती और कर्मचारियों की नाराज़गी इन दावों को कमजोर कर रही है। प्रमोशन और तबादला जैसी मूलभूत व्यवस्थाएं समय पर न होने से न केवल कर्मचारियों का मनोबल गिरता है, बल्कि इसका सीधा असर स्कूलों में पढ़ाई और प्रशासन पर भी पड़ता है।
भविष्य के संकेत
सेमवाल के इस्तीफे के बाद प्रदेश के अन्य जिलों के अधिकारी भी मुखर हो सकते हैं। यदि समय रहते सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए तो यह नाराज़गी एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकती है।
सामाजिक विश्लेषक मानते हैं कि उत्तराखंड में शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों का लगातार आक्रोश शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। विद्यार्थियों के हित में सरकार को जल्द ही पारदर्शी और त्वरित निर्णय लेने होंगे।
जनभावना और राजनीतिक असर
उत्तराखंड में शिक्षा मुद्दा हमेशा से राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है। चुनावी मौसम के करीब आते ही यह नाराज़गी सरकार के लिए और मुश्किल खड़ी कर सकती है। शिक्षक और अधिकारी दोनों ही समाज में प्रभावशाली वर्ग हैं। ऐसे में उनकी असंतुष्टि का असर वोट बैंक पर भी पड़ सकता है।
एस.पी. सेमवाल का इस्तीफा केवल एक अधिकारी की व्यक्तिगत निराशा नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड के शिक्षा विभाग के अंदरूनी हालात का आईना है। प्रमोशन और तबादला जैसी बुनियादी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और गति लाना अब सरकार की प्राथमिकता बननी चाहिए। यदि इस नाराज़गी को समय रहते शांत नहीं किया गया तो इसका असर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था ही नहीं, बल्कि राजनीतिक माहौल पर भी साफ दिखाई देगा।