मातृ सदन के संतों की सुरक्षा को लेकर एड.भदोरिया बंधुओं की मांग,, मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर 18 पुलिसकर्मियों की स्थायी तैनाती किए जाने को लेकर सीएम धामी को लिखा पत्र,, खनन माफियाओं से खतरा बढ़ा, उच्च न्यायालय के आदेश के बाद षड्यंत्र की आशंका

इन्तजार रजा हरिद्वार- मातृ सदन के संतों की सुरक्षा को लेकर एड.भदोरिया बंधुओं की मांग,,
मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर 18 पुलिसकर्मियों की स्थायी तैनाती किए जाने को लेकर सीएम धामी को लिखा पत्र,,
खनन माफियाओं से खतरा बढ़ा, उच्च न्यायालय के आदेश के बाद षड्यंत्र की आशंका

भदोरिया बंधुओं की चेतावनी – “आश्रम असुरक्षित, संतों की जान को खतरा”
एडवोकेट अरुण भदोरिया, जो पिछले 26 वर्षों से हरिद्वार में वकालत कर रहे हैं, और उनके सहयोगी एडवोकेट कमल भदोरिया ने अपने पत्र में चेताया है कि आश्रम का स्थान अपेक्षाकृत सुनसान है और वन क्षेत्र के समीप स्थित होने के कारण सामान्य प्रशासनिक निगरानी से बाहर है।
उन्होंने लिखा,
“गंगा के लिए बलिदान देने वाले संतों को लगातार माफियाओं से खतरा बना हुआ है। पूर्व में आश्रम के संतों पर जानलेवा हमले हो चुके हैं। अब जब उच्च न्यायालय ने उनकी वर्षों की तपस्या को न्याय दिलाया है, तो खनन माफिया किसी भी हद तक जा सकते हैं।”
गंगा रक्षा की तपस्थली, जो आज स्वयं असुरक्षित
मातृ सदन ने पिछले दो दशकों में जनहित के कई मामलों में निर्णायक भूमिका निभाई है। विशेष रूप से 108 हेक्टेयर वन भूमि को भू माफियाओं के कब्जे से मुक्त कराकर राज्य सरकार को सुपुर्द किया, जिसका आज उपयोग कुंभ व कांवड़ मेलों के आयोजन में होता है। यह कार्य जनहित याचिका संख्या 175/2001 के माध्यम से संभव हुआ, जिसकी समस्त न्यायिक प्रक्रिया और खर्च आश्रम ने स्वयं वहन किया।
यह वही आश्रम है जिसके संतों ने गंगा की रक्षा के लिए जीवन बलिदान तक दिया। ब्रह्मलीन स्वामी निगमानंद सरस्वती ने 111 दिनों तक अनशन करके अपना जीवन अर्पित किया, वहीं परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी शिवानंद जी महाराज ने भी 7 दिन तक जल तक ग्रहण न करते हुए कठोर तपस्या की।
48 स्टोन क्रशर बंद, माफिया में मचा हड़कंप
हाल ही में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 15/2022 — मातृ सदन बनाम भारत संघ आदि — पर आदेश पारित करते हुए हरिद्वार जिले में अवैध रूप से संचालित 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल प्रभाव से बंद करने और उनकी बिजली-पानी आपूर्ति काटने के निर्देश जिलाधिकारी व एसएसपी हरिद्वार को दिए।
यह आदेश खनन माफियाओं के लिए बड़ा झटका साबित हुआ, और इसी कारण अब आश्रम व उसके संतों के खिलाफ साजिशों की आशंका और प्रबल हो गई है।
मुख्यमंत्री से सुरक्षा की लिखित मांग
एडवोकेट अरुण भदोरिया और कमल भदोरिया ने मुख्यमंत्री को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि आश्रम में फिलहाल कोई भी सुरक्षा बल तैनात नहीं है, जबकि पूर्व में हमलों का इतिहास रहा है।
उन्होंने आग्रह किया:
“आश्रम की धार्मिक, सामाजिक और कानूनी गतिविधियां राज्यहित और राष्ट्रहित में हैं। ऐसी स्थिति में संतों की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। हम मांग करते हैं कि तत्काल 18 पुलिसकर्मियों की स्थायी तैनाती आश्रम में की जाए।”
अंतरराष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय जिम्मेदारी
मातृ सदन केवल एक आश्रम नहीं, बल्कि वह राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंगा संरक्षण का प्रतीक बन चुका है। यहां के संतों की तपस्या और जनसेवा ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है। गंगा नदी को नदी नहीं, ‘जीवंत संस्कृति’ मानने वाला यह आश्रम यदि आज असुरक्षित है, तो यह समूचे समाज और शासन व्यवस्था के लिए गंभीर प्रश्न है।
भदोरिया बंधुओं का यह पत्र केवल एक कानूनी औपचारिकता नहीं, बल्कि गंगा की रक्षा में लगे प्रहरी संतों के लिए एक जीवन रक्षक गुहार है।
संतों की सुरक्षा, राज्य की जिम्मेदारी
ऐसे समय में जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय की सक्रियता और आश्रम की जनहित तपस्या के चलते खनन माफियाओं की कमर टूटी है, यह सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इस संघर्ष की कीमत चुकाने वालों की रक्षा करे।
गंगा की अविरलता के लिए प्राण देने वाले संतों को यदि हम सुरक्षित नहीं रख सके, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति की असफलता नहीं, बल्कि शासन की नैतिक हार होगी।
अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री धामी पर टिकी हैं — क्या वह मातृ सदन की इस पुकार को सुनेंगे?
इन्तजार रजा, हरिद्वार
“Daily Live Uttarakhand”