निधि को मिला इंसाफ: रुड़की कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, मुख्य आरोपी हैदर को फांसी, साथी शारिक को उम्रकैद, वकील पिता-पुत्र ने बिना फीस लड़ा मुकदमा, दलित बेटी की नृशंस हत्या ने झकझोरा था समाज, अब मिला न्याय का सबूत

इन्तजार रजा हरिद्वार- निधि को मिला इंसाफ: रुड़की कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला,
मुख्य आरोपी हैदर को फांसी, साथी शारिक को उम्रकैद, वकील पिता-पुत्र ने बिना फीस लड़ा मुकदमा,
दलित बेटी की नृशंस हत्या ने झकझोरा था समाज, अब मिला न्याय का सबूत
रुड़की, हरिद्वार (13 जून 2025) – उत्तराखंड की न्याय व्यवस्था ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कानून के हाथ लंबे हैं और इंसाफ की डगर भले कठिन हो, लेकिन अंत में सत्य की ही विजय होती है। वर्ष 2021 में 19 वर्षीय दलित युवती निधि उर्फ हंसी की निर्मम हत्या के बहुचर्चित मामले में रुड़की की विशेष सत्र अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुख्य आरोपी हैदर अली को फांसी की सजा सुनाई है। उसके साथी शारिक को आजीवन कारावास की सजा दी गई है, जबकि तीसरा आरोपी रेहान, जो घटना के समय नाबालिग था, किशोर न्यायालय में मुकदमे का सामना कर रहा है।
क्या था निधि हत्याकांड? एक दलित बेटी की चीख, जो समाज को हिला गई
24 अप्रैल 2021 की सुबह, रुड़की के एक मोहल्ले में रहने वाली निधि, जो ‘हंसी’ नाम से मशहूर थी, घर पर अकेली थी। उसकी मां मजदूरी पर गई थीं, और भाई काम पर। वह दलित समुदाय से थी, 12वीं पास कर चुकी थी और अपने घर में छोटी सी दुकान चलाकर परिवार का सहारा बन चुकी थी। पिता की मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी उसी पर थी।
इसी दौरान मोहल्ले में रहने वाला 25 वर्षीय हैदर अली, जो पहले से उसे फोन कर परेशान कर रहा था, उसे बार-बार मिलने का दबाव बना रहा था। निधि ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। लेकिन हैदर ने इनकार को अपमान समझ लिया और अपनी नापाक मंशा को अंजाम देने की ठानी।
वह अपने दो साथियों शारिक और रेहान (नाबालिग) के साथ निधि के घर घुसा और वहां उस पर चाकू से जानलेवा हमला किया। चीखों की गूंज मोहल्ले में फैली तो लोग दौड़े आए। हैदर को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया गया, जबकि शारिक और रेहान मौके से भाग निकले। अस्पताल ले जाते वक्त निधि की मौत हो गई थी।
कोर्ट ने कहा- यह समाज के खिलाफ अपराध है, कठोर सजा जरूरी
तीन वर्षों तक इस हत्याकांड की सुनवाई चली। तमाम गवाहों के बयान, फॉरेंसिक रिपोर्ट और डिजिटल सबूतों के आधार पर अदालत ने यह पाया कि यह हत्या सुनियोजित थी, जिसमें महिला की अस्मिता, दलित समाज की गरिमा और मानवीय संवेदनाओं पर गंभीर प्रहार हुआ है।
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमेश सिंह की विशेष अदालत ने मुख्य आरोपी हैदर अली को मृत्युदंड सुनाते हुए कहा:
“यह मामला न केवल व्यक्तिगत आक्रोश का, बल्कि सामाजिक न्याय के खिलाफ घोर अपराध है। ऐसे अपराधों में फांसी की सजा समाज में भय और संतुलन दोनों के लिए आवश्यक है।”
साथ ही, आरोपी शारिक को उम्रकैद की सजा दी गई, जबकि नाबालिग आरोपी रेहान के खिलाफ सुनवाई किशोर न्यायालय में जारी है।
परिवार की जीत – “गरीब हैं, मगर अब विश्वास है कि कानून सबका है”
निधि के भाई दिनेश सिंह, जो एक कैब चालक हैं, ने कोर्ट के इस फैसले को सुनते हुए आंखों में आंसू लिए कहा:
“हमारे पास कुछ नहीं था। न पैसा, न रसूख। लेकिन हमें विश्वास था कि हमारी बहन निर्दोष थी, और उसे न्याय मिलेगा। आज हमें भरोसा हुआ कि कानून सचमुच अंधा नहीं है।”
परिवार ने न्याय की इस लड़ाई में एक-एक दिन संघर्ष किया। कई बार निराशा हाथ लगी, लेकिन अधिवक्ता संजीव वर्मा और उनके बेटे ने न सिर्फ कानूनी लड़ाई लड़ी, बल्कि इसे अपना व्यक्तिगत संघर्ष भी बना लिया।
वकील पिता-पुत्र की जोड़ी ने पेश की मिसाल, बिना फीस लड़ा मुकदमा
रुड़की के वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव वर्मा और उनके बेटे, हाईकोर्ट अधिवक्ता, ने इस मामले को पूरी तरह नि:शुल्क लड़ा। वे शुरुआत से ही इस मामले में शामिल हुए, और उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि न्याय की राह में कोई कानूनी कमजोरी न रहे।
संजीव वर्मा ने बताया:
“यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, यह इंसाफ के खिलाफ खुला हमला था। हमें लगा कि अगर हमने इस मामले में चुप्पी साध ली तो कल को हमारी बेटियां भी असुरक्षित रहेंगी।”
इन अधिवक्ताओं की मजबूत पैरवी और सबूतों की बेहतरीन प्रस्तुति के कारण मुख्य आरोपी हैदर अली की जमानत याचिकाएं बार-बार खारिज होती रहीं। कोर्ट में उन्होंने यह भी साबित किया कि हैदर की मंशा निधि के प्रति आपराधिक और जानलेवा थी।
मां बोली – “मेरी बेटी लौट नहीं सकती, लेकिन अब सुकून है”
निधि की मां, जो एक निर्माण मजदूर हैं, कोर्ट के बाहर मीडिया से बात करते हुए बोलीं:
“हंसी अब कभी लौटकर नहीं आएगी। लेकिन अब कम से कम उसकी आत्मा को शांति मिलेगी। मैंने अपनी बच्ची को बहुत कष्ट में खोया, लेकिन अब लगता है कि भगवान ने हमारी सुन ली।”
इस केस ने समाज को झकझोरा, दलित उत्पीड़न और महिला सुरक्षा पर उठे सवाल
यह मामला केवल एक हत्या नहीं था, बल्कि उत्तराखंड के सामाजिक ढांचे पर एक कठोर प्रश्न था। एक दलित लड़की, जो आत्मनिर्भर बनने की कोशिश कर रही थी, उसकी जान ले ली गई केवल इसलिए कि उसने एक मुस्लिम युवक के आपत्तिजनक प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
इस घटना के बाद रुड़की, हरिद्वार समेत पूरे प्रदेश में भारी आक्रोश फैला था। दलित संगठनों, महिला आयोग और विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस हत्याकांड को “मानवता के खिलाफ अपराध” बताया था।
अब आगे क्या? नाबालिग आरोपी रेहान पर फैसला शेष
तीसरे आरोपी रेहान, जो हत्या के समय 17 वर्ष का था, अब भी किशोर न्यायालय में ट्रायल का सामना कर रहा है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए कोर्ट ने कहा है कि किशोर होने के बावजूद यदि उसके अपराध की गंभीरता सिद्ध होती है तो उसे भी सख्त दंड मिल सकता है।
एक इंसाफ, जिसने इंसानियत को उम्मीद दी
निधि उर्फ हंसी अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी लड़ाई और उसके परिवार की जिद ने साबित कर दिया कि इंसाफ केवल अमीरों का अधिकार नहीं है। यह मामला एक मिसाल बनकर सामने आया है – कि जब समाज, कानून और सच्चाई एक साथ खड़े हों, तो सबसे बड़े अपराधी भी सजा से नहीं बच सकते।
📰 ‘Daily Live Uttarakhand’ विशेष टिप्पणी:
इस फैसले ने उत्तराखंड के न्याय तंत्र की गरिमा को मजबूती दी है। एक गरीब दलित परिवार, जिसने अपनी बेटी को खोया, आज सिर ऊंचा कर कह सकता है – न्याय हुआ है।