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सत्ता की सनक या तंत्र की लाचारी?, सरकारी अफसर को सरेआम झाड़, और फिर सन्नाटा, वीडियो वायरल, मगर कार्रवाई नदारद क्या अधिकारियों की गरिमा पर हमला ? अंदरूनी डर या राजनीतिक मजबूरी? सोशल मीडिया पर मचा घमासान भाजपा नेता का ‘संस्कार’: अफसर को दी धमकी, हरिद्वार में जिला पंचायत बैठक में हंगामा: ‘तू है कौन’, ‘दिमाग ठिकाने लगा दूं’ की गूंज, सत्ता के नशे में चूर नेता, खामोश अफसर और डरी हुई नौकरशाही

इन्तजार रजा हरिद्वार- सत्ता की सनक या तंत्र की लाचारी?,

सरकारी अफसर को सरेआम झाड़, और फिर सन्नाटा,

वीडियो वायरल, मगर कार्रवाई नदारद

क्या अधिकारियों की गरिमा पर हमला ?

अंदरूनी डर या राजनीतिक मजबूरी?

सोशल मीडिया पर मचा घमासान

भाजपा नेता का ‘संस्कार’: अफसर को दी धमकी,
हरिद्वार में जिला पंचायत बैठक में हंगामा: ‘तू है कौन’, ‘दिमाग ठिकाने लगा दूं’ की गूंज,
सत्ता के नशे में चूर नेता, खामोश अफसर और डरी हुई नौकरशाही

हरिद्वार की जिला पंचायत बोर्ड बैठक सोमवार को उस वक्त सुर्खियों में आ गई जब एक भाजपा समर्थित जिला पंचायत सदस्य ने जल निगम के सहायक अभियंता को सरेआम अपमानित करते हुए गालियों की बौछार कर दी। ‘तू है कौन, बीच में क्यों कूद रहा’ जैसी अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हुए नेताजी ने खुलेआम सरकारी अफसर को धमकी दी और कहा कि “दिमाग ठिकाने लगा दूंगा।” इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, और सवाल उठ रहा है कि क्या सत्ता में होना अब अफसरों को डराने-धमकाने का लाइसेंस बन गया है?

खुलेआम अभद्रता, कैमरे में कैद

पूरा मामला सोमवार को जिला पंचायत की बोर्ड बैठक के बाद का है। कल्याणपुर उर्फ नारसन कलां के जिला पंचायत सदस्य अरविंद राठी बैठक समाप्त होने के बाद जल निगम के सहायक अभियंता नीरज से आमजन की पेयजल संबंधी समस्या जानने के सिलसिले में बात कर रहे थे। लेकिन बात करना नेताजी को नागवार गुजरा। अचानक उन्होंने अफसर पर चिल्लाना शुरू कर दिया। वीडियो में साफ दिखता है कि भाजपा नेता अपनी राजनीतिक ताकत के दम पर अफसर को न केवल डांटते-फटकारते हैं बल्कि यह तक कह डालते हैं कि “बीच में मत कूद, नहीं तो देख लूंगा।”

इतना ही नहीं, अरविंद राठी का रवैया एक गुंडे जैसा नजर आता है। वे अभद्र भाषा में अफसर की औकात बताने पर तुले हुए थे। यह तमाशा किसी कोने में नहीं बल्कि जिला पंचायत परिसर में मौजूद कई अफसरों और अन्य सदस्यों के सामने हुआ। बावजूद इसके किसी ने नेताजी को टोकने की हिम्मत नहीं की। शायद इसलिए कि डर सत्ता का था।

नेताजी के तेवर देखकर सहायक अभियंता नीरज भी सहम गए। उन्होंने कोई प्रतिवाद नहीं किया, बल्कि चुपचाप खड़े रहकर नेताजी की गालियों को सुनते रहे। बाद में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने महज इतना कहा, “यह नेताजी का अधिकार है।” सवाल यह है कि क्या किसी जनप्रतिनिधि को इस प्रकार का ‘अधिकार’ है कि वह एक सरकारी अधिकारी को खुलेआम गालियां दे और धमकाए?

यह स्थिति न केवल नौकरशाही के आत्मसम्मान पर चोट है बल्कि लोकतंत्र के उस मूल भाव को भी झुठलाती है जिसमें कहा गया है कि ‘जनप्रतिनिधि जनता का सेवक होता है, शासक नहीं।’ लेकिन यहां हालात बिल्कुल उलट हैं। अफसरों का रवैया गुलामों जैसा और नेताजी का व्यवहार तानाशाहों जैसा प्रतीत होता है।

संस्कारी पार्टी का ‘असंस्कारी’ चेहरा

भाजपा बार-बार खुद को एक ‘संस्कारों की पार्टी’ बताती है। नैतिकता, मर्यादा, और अनुशासन इसके मूल सिद्धांत बताए जाते हैं। लेकिन जब पार्टी से जुड़े जनप्रतिनिधि इस तरह की अभद्रता और गुंडागर्दी करते हैं तो यही सवाल उठता है कि इन नेताओं के संस्कार कहां गए? क्या पार्टी ऐसे नेताओं पर कोई कार्रवाई करेगी, या फिर सत्ता की चादर ओढ़ाकर उन्हें बचा लिया जाएगा?

यह पहला मामला नहीं है, जब हरिद्वार या उत्तराखंड में भाजपा नेताओं द्वारा अफसरों को धमकाने या दबाव डालने की घटना सामने आई हो। अफसर डरते हैं, चुप रहते हैं और फिर एक दिन यह डर नौकरशाही को पूरी तरह गुलाम बना देता है। यही कारण है कि आमजन का प्रशासन पर से भरोसा उठता जा रहा है।

जनता का सवाल: क्या नेता को मिली खुली छूट?

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो को लेकर जनता का गुस्सा भी फूट पड़ा है। कई लोगों ने लिखा कि नेता जी सत्ता के नशे में चूर हैं, और अफसर डर के मारे जुबान नहीं खोल रहा। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए बेहद चिंताजनक है। कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या अफसरों को धमकाने का अधिकार अब नेता जी को सत्ता से मिल गया है?

भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि ऐसे घटनाओं पर न सिर्फ संज्ञान ले, बल्कि तत्काल कार्रवाई करे। वरना जनता यही समझेगी कि भाजपा के लिए ‘संस्कार’ सिर्फ भाषणों तक सीमित हैं, जमीन पर तो नेता ‘गुंडागर्दी’ को ही अपना अधिकार समझते हैं।

हरिद्वार में जो दृश्य सामने आया वह किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शर्मनाक है। जिला पंचायत सदस्य की दबंगई, अफसरों की खामोशी और पार्टी की चुप्पी यह दर्शाती है कि सिस्टम किस कदर सड़ चुका है। यदि इस तरह की घटनाओं पर लगाम नहीं लगी तो एक दिन यही सत्ता, प्रशासन और जनविश्वास की कब्र खोद देगी।

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