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पिरान कलियर शरीफ में सौहार्द की नींव को मत खुरचिए, दरगाह की पवित्रता के सामने चौक चौराहों , बाजारों में मांस की दुकानें — यह बर्दाश्त नहीं!, क्या प्रशासन, वक्फ बोर्ड और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी शर्मनाक, अब उठेगी जनता की आवाज ?, शायद पिरान कलियर शरीफ धार्मिक क्षैत्र के इर्द-गिर्द मांस व्यापार धर्म और संस्कृति पर हमला है, व्यापार नहीं बहुत जल्द जनता पूछेगी: आस्था बड़ी है या वोटबैंक? धर्म का सम्मान बड़ा है या दुकान का मुनाफा?

इन्तजार रजा हरिद्वार- पिरान कलियर शरीफ में सौहार्द की नींव को मत खुरचिए,

दरगाह की पवित्रता के सामने चौक चौराहों , बाजारों में मांस की दुकानें — यह बर्दाश्त नहीं!,

क्या प्रशासन, वक्फ बोर्ड और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी शर्मनाक, अब शायद जल्द ही उठ सकती है जनता की आवाज ?,

शायद पिरान कलियर शरीफ धार्मिक क्षैत्र के इर्द-गिर्द मांस व्यापार धर्म और संस्कृति पर हमला है, व्यापार नहीं

बहुत जल्द जनता पूछेगी: आस्था बड़ी है या वोटबैंक? धर्म का सम्मान बड़ा है या दुकान का मुनाफा?

कलियर (हरिद्वार)। पिरान कलियर शरीफ कोई आम धार्मिक स्थल नहीं है। यह उस हिन्दुस्तान की रूह है, जहां सूफी परंपरा ने मजहबी दीवारों को तोड़कर मोहब्बत का पैगाम दिया। हज़रत साबिर पाक की दरगाह पर हर साल लाखों लोग बिना धर्म देखे जियारत करते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि आज इस पवित्र स्थल के आसपास की फिजा को मांस की दुकानों की बदबू से गंदा किया जा रहा है — और प्रशासन तमाशबीन बना बैठा है!

शायद पिरान कलियर शरीफ धार्मिक क्षैत्र के इर्द-गिर्द मांस व्यापार धर्म और संस्कृति पर हमला है, व्यापार नहीं

दरगाह के बिल्कुल नजदीक, कलियर के मुख्य बाजारों और गांव के प्रमुख चौराहों पर खुलेआम मांस की दुकानों का संचालन न सिर्फ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि सीधे-सीधे सूफी परंपरा की रूह को अपमानित करता है। यह सिर्फ “व्यापार” नहीं है, यह हमारी साझा विरासत पर हमला है। कौन जिम्मेदार है इसके लिए? वक्फ बोर्ड? नगरपालिका? या वो नेता जो केवल वोट के वक्त दिखाई देते हैं?

क्या आस्था की कोई कीमत नहीं?

हर धर्म का सम्मान करने वाले इस मुल्क में, क्या मुसलमानों की आस्था का कोई मूल्य नहीं? क्या सूफी संतों की दरगाह की पवित्रता को खुलेआम मांस बेचकर रौंदा जाएगा? यह वही कलियर है, जहां हिंदू भाई ‘छड़ी यात्रा’ लेकर आते हैं, सिख श्रद्धालु अरदास करते हैं, ईसाई प्रार्थना में शामिल होते हैं। ऐसे पवित्र स्थल पर मांस की दुकानें चलना सीधा अपमान है — और इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

प्रशासन की चुप्पी = साजिश?

सवाल यह उठता है कि आखिर प्रशासन क्यों चुप है? जब सब जानते हैं कि मांस की दुकानों से श्रद्धालुओं की भावना आहत होती है, तो इन दुकानों को हटाने की पहल क्यों नहीं होती? क्या यह वोटबैंक का डर है? क्या जनभावना की कोई अहमियत नहीं बची? स्थानीय प्रशासन से लेकर वक्फ बोर्ड तक सभी जिम्मेदार संस्थाएं इस विषय पर अंधी, बहरी और गूंगी बनी हुई हैं।

अब शायद आशंका है कि एक दिन आक्रामक हो कर जनता अब खुद उठाएगी कदम

वो दिन दूर नहीं जब अब जनता चुप नहीं रहेगी। अगर ऐसा ही रहा तो वो दिन भी दुर नहीं शायद जब  युवाओं, समाजसेवियों और धार्मिक संगठन अगर जल्द ही बाजारों और मुख्य चौराहों से मांस की दुकानों को स्थानांतरित करने की मांग करेंगे,हो सकता है जनआंदोलन हो, धरना हो, और जरूरत पड़ी तो कानूनी कार्रवाई के लिए भी लोग प्रशासन से मांग उठाऐ

हालाकि ” रोज़गार से परहेज़ नहीं, पर इबादत की जगहों के आस-पास मांस की दुकानों की कोई जगह नहीं हो सकती। प्रशासन अगर नहीं चेतेगा, तो एक दिन जनता खुद रास्ता साफ करने की मांग करेगी”

वैकल्पिक स्थान मुहैया कराए प्रशासन

जनता की मांग साफ है — किसी की रोज़ी-रोटी नहीं छीनी जाए, लेकिन मांस की दुकानों को धार्मिक स्थलों चौक चौराहों व बाजारों से कम-से-कम 02 किलोमीटर दूर स्थानांतरित किया जाए। प्रशासन को चाहिए कि वह जल्द ही उपयुक्त वैकल्पिक भूमि उपलब्ध कराए, ताकि दुकानदारों को भी नुकसान न हो, और धार्मिक आस्थाओं की भी रक्षा हो

क्या वक्फ बोर्ड की निष्क्रियता है शर्मनाक

यह सबसे शर्मनाक बात है कि पिरान कलियर जैसे विश्वविख्यात सूफी स्थल की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड के पास है, लेकिन बोर्ड अब तक पूरी तरह मूकदर्शक बना हुआ है। यदि बोर्ड चाहता, तो नियम बनाकर इन दुकानों को एक सप्ताह में हटाया जा सकता था। लेकिन जब मंशा ही वोट के हिसाब से चलती हो, तो आस्था पीछे छूट जाती है।

 अब और नहीं सहेंगे अपमान

पिरान कलियर शरीफ की पवित्रता पर लगा मांस की दुकानों का यह धब्बा अब और नहीं सहा जाएगा। यह सिर्फ धार्मिक मुद्दा नहीं है — यह हमारी संस्कृति, साझा विरासत और आत्मसम्मान का प्रश्न है। प्रशासन, वक्फ बोर्ड और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अब जवाब देना ही होगा।

बहुत जल्द जनता पूछेगी: आस्था बड़ी है या वोटबैंक? धर्म का सम्मान बड़ा है या दुकान का मुनाफा?

 

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