वंदना कटारिया स्पोर्ट्स स्टेडियम रोशनाबाद हरिद्वार का नाम नहीं बदलेगा, सरकार ने लिया फैसला वापस, दलित अस्मिता और जनआंदोलन की जीत, कांग्रेस और समाज ने मनवाया हक

इन्तजार रजा हरिद्वार- वंदना कटारिया स्टेडियम का नाम नहीं बदलेगा, सरकार ने लिया फैसला वापस,
दलित अस्मिता और जनआंदोलन की जीत, कांग्रेस और समाज ने मनवाया हक
हरिद्वार, 31 मई।
हरिद्वार के रोशनाबाद स्थित वंदना कटारिया स्टेडियम का नाम अब बदला नहीं जाएगा। जनता का जबरदस्त विरोध, कांग्रेस का लगातार आंदोलन और दलित समाज की एकजुटता के सामने आखिरकार उत्तराखंड की धामी सरकार को झुकना पड़ा। यह सिर्फ एक स्टेडियम के नाम की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह एक दलित बेटी के सम्मान, उसके संघर्ष और पूरे समाज की अस्मिता से जुड़ा सवाल था।
इस निर्णय की पुष्टि खुद हॉकी स्टार वंदना कटारिया ने अपने आधिकारिक वीडियो संदेश में की है। उन्होंने कहा कि “सरकार ने जब स्टेडियम का नाम बदलने की कोशिश की, तो कांग्रेस और दलित समाज ने एक स्वर में विरोध किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुझे और मेरे परिजनों को अपने आवास पर बुलाया और भरोसा दिलाया कि स्टेडियम का नाम अब पूर्ववत ही रहेगा।”
वरुण बालियान और कांग्रेस का आंदोलन बना निर्णायक
वंदना कटारिया स्टेडियम का नाम बदलकर “योगस्थली परिसर” किए जाने के निर्णय पर सबसे पहले आवाज उठाई वरुण बालियान और महानगर कांग्रेस ने। हरिद्वार में 7 दिनों तक लगातार स्टेडियम के बाहर विरोध प्रदर्शन हुआ, नारेबाजी हुई, और पूरे मामले ने ज़मीनी पकड़ बनाई।
28 मई को विरोध प्रदर्शन अपने चरम पर पहुंचा, जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हरिद्वार के जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव कर महामहिम राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में साफ चेतावनी दी गई कि यदि सरकार पीछे नहीं हटी, तो कांग्रेस गांव-गांव जाकर बड़ा जनआंदोलन खड़ा करेगी।
यह आंदोलन न सिर्फ कांग्रेस की सियासी चतुराई का उदाहरण बना, बल्कि यह दिखा गया कि जब बात समाज के आत्मसम्मान की हो, तो सत्ता की दीवारें भी हिल सकती हैं।
दलित समाज का गुस्सा बना सरकार के लिए खतरे की घंटी
इस पूरे घटनाक्रम ने उत्तराखंड ही नहीं, देश भर के दलित समाज को उद्वेलित कर दिया। एक दलित खिलाड़ी, जिसने ओलंपिक तक भारत का नाम रोशन किया, उसके नाम पर बने स्टेडियम का नाम बदलना सीधे तौर पर दलित समाज के अपमान की तरह देखा गया। सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक दलित समुदाय ने आक्रोश जाहिर किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि सरकार इस फैसले पर अड़ी रहती, तो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती थी। इसीलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को व्यक्तिगत रूप से आगे आकर वंदना कटारिया और उनके परिवार को आश्वासन देना पड़ा।
ये सिर्फ नाम नहीं, सम्मान और स्वाभिमान का सवाल है
वंदना कटारिया का नाम आज नारी शक्ति, दलित संघर्ष और खेल प्रतिभा की मिसाल बन चुका है। उनका नाम एक प्रतीक है उस भारत का, जहां मेहनत और संघर्ष से कोई भी ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है। ऐसे में उनके नाम पर बने स्टेडियम का नाम बदलना, लाखों लोगों के मन को आहत करने वाला कदम था।
वंदना कटारिया ने अपने वीडियो संदेश में स्पष्ट कहा कि उन्हें गर्व है कि जनता ने उनके सम्मान के लिए आवाज़ उठाई। उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह सिर्फ मेरा नाम नहीं, उन सभी लड़कियों और दलित बेटियों की पहचान है जो सपने देखती हैं।”
राजनीतिक सन्देश और आने वाले चुनावों पर असर
यह घटनाक्रम न सिर्फ एक नाम को बचाने का था, बल्कि इसका राजनीतिक संदेश भी बहुत स्पष्ट है – जनता की आवाज़ को अनसुना करने का परिणाम सत्ता को भुगतना पड़ता है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को जिस रणनीतिक और जन भावनाओं से जोड़ा, उसने भाजपा की जड़ें हिलाने का काम किया है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यह कांग्रेस की जमीनी पकड़ और युवाओं को जोड़ने की एक बड़ी कामयाबी रही, खासकर वरुण बालियान जैसे युवा नेताओं के लिए यह एक पहचान बनाने का मौका साबित हुआ।
निष्कर्ष: एक जनआंदोलन की ऐतिहासिक जीत
धामी सरकार का यह फैसला वापसी सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह उन सभी आवाज़ों की जीत है जिन्होंने बिना डरे सत्ता के सामने सवाल उठाए। यह लोकतंत्र की जीत है, समाज की चेतना की जीत है और एक दलित बेटी के स्वाभिमान की जीत है।
अब स्टेडियम का नाम वही रहेगा – वंदना कटारिया स्टेडियम, और यह नाम आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाता रहेगा कि सम्मान जब खतरे में हो, तो आवाज़ उठाना ज़रूरी है।
रिपोर्ट: Daily Live Uttarakhand