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केवल आम नागरिक ही करें RTI का इस्तेमाल: राज्य सूचना आयोग का सख्त निर्देश, संस्था, यूनियन या संगठन के नाम से मांगी गई सूचना अवैध मानी जाएगी, सूचना अधिकार का उपयोग व्यक्तिगत नागरिक अधिकार, न कि समूह प्रतिनिधित्व के रूप में — आयोग ने की दो अधिकारियों को चेतावनी

इन्तजार रजा हरिद्वार- केवल आम नागरिक ही करें RTI का इस्तेमाल: राज्य सूचना आयोग का सख्त निर्देश,
संस्था, यूनियन या संगठन के नाम से मांगी गई सूचना अवैध मानी जाएगी,
सूचना अधिकार का उपयोग व्यक्तिगत नागरिक अधिकार, न कि समूह प्रतिनिधित्व के रूप में — आयोग ने की दो अधिकारियों को चेतावनी

देहरादून, 05 जून 2025 | Daily Live Uttarakhand

राज्य सूचना आयोग उत्तराखण्ड ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के अंतर्गत जानकारी प्राप्त करने का अधिकार केवल व्यक्तिगत भारतीय नागरिक को है, न कि किसी यूनियन, संस्था या संगठन को। यह निर्देश एक अपील की सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसने भविष्य के लिए आरटीआई के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने की दिशा में अहम उदाहरण पेश किया है।

यूनियन की हैसियत से मांगी गई सूचना हुई खारिज

रुद्रपुर निवासी हरेंद्र सिंह ने करोलिया लाइटिंग एम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष के तौर पर एक आरटीआई आवेदन विभाग को भेजा था। उन्होंने यूनियन के लैटरहेड पर, यूनियन के पते का उपयोग करते हुए यह आवेदन किया था। जब अपेक्षित जानकारी नहीं मिली, तो उन्होंने आयोग में अपील की।

राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट की अध्यक्षता में हुई सुनवाई में यह स्पष्ट किया गया कि यूनियन या किसी संस्था के नाम पर सूचना मांगना आरटीआई अधिनियम की मूल भावना के विरुद्ध है।

“सूचना का अधिकार केवल नागरिक को है, न कि किसी संगठन, ट्रस्ट या यूनियन को। यदि कोई यूनियन पदाधिकारी सूचना चाहता है, तो उसे निजी हैसियत में आवेदन करना होगा,” — राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट

RTI कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर भी गिरी गाज

आयोग ने न सिर्फ अपील को खारिज किया बल्कि इस मामले में तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी अरविंद सैनी और विभागीय अपीलीय अधिकारी को कठोर चेतावनी भी जारी की है। आयोग ने स्पष्ट कहा कि दोनों अधिकारियों ने आरटीआई अधिनियम की प्रक्रिया का अनुपालन करने में गंभीर लापरवाही बरती और बिना वैधता की जांच किए आवेदन पर निर्णय दे दिया।

आयोग ने कहा —

“आरटीआई प्रक्रिया अर्ध-न्यायिक प्रकृति की होती है, जहां प्रत्येक अधिकारी की जिम्मेदारी तय है कि वह आवेदन की वैधता, प्रासंगिकता और प्रक्रिया का पूरा पालन करे। इसे नजरअंदाज करना कानून की गंभीर अवहेलना है।”

अपीलकर्ता को भी दी गई सलाह

हरेंद्र सिंह को आयोग ने यह भी निर्देश दिया कि भविष्य में यदि वह किसी सूचना की मांग करें तो यूनियन या संस्था के प्रतिनिधि के रूप में नहीं, बल्कि निजी नागरिक के तौर पर करें। आयोग ने कहा कि संस्था की तरफ से सूचना मांगने की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है, भले ही अपीलकर्ता उसका पदाधिकारी ही क्यों न हो।

क्या कहता है RTI अधिनियम?

RTI अधिनियम 2005 की धारा 3 स्पष्ट करती है कि —

“हर भारतीय नागरिक को सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।”

इसमें किसी संगठन, कंपनी, एनजीओ, यूनियन, या अन्य समूह का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न राज्य सूचना आयोगों ने भी समय-समय पर यह निर्देश जारी किए हैं कि RTI केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही दाखिल की जानी चाहिए।

क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?

  1. नकली संगठनों द्वारा RTI के दुरुपयोग पर लगाम: अक्सर कुछ यूनियन या संगठन आरटीआई का उपयोग दबाव बनाने या विभागों को परेशान करने के हथियार के तौर पर करते हैं। यह फैसला उन पर लगाम लगाने का कार्य करेगा।
  2. अधिकारियों की जवाबदेही तय: आयोग द्वारा दो अधिकारियों को चेतावनी देना यह दर्शाता है कि केवल आवेदक ही नहीं, बल्कि सूचना देने वाले अधिकारियों की भूमिका भी कानून के दायरे में है।
  3. RTI की मूल भावना की रक्षा: इस निर्देश से यह सुनिश्चित होता है कि RTI का उपयोग केवल नागरिक अधिकार के तौर पर हो, न कि किसी संगठनात्मक एजेंडे के लिए।

यह निर्णय केवल हरेंद्र सिंह के मामले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आने वाले समय में राज्य भर में RTI आवेदन प्रक्रिया को पारदर्शी और वैधानिक बनाए रखने में मदद करेगा। सूचना आयोग का यह सख्त रुख उन सभी संगठनों, यूनियनों और एनजीओ के लिए एक चेतावनी है जो आरटीआई कानून का दुरुपयोग कर सार्वजनिक सूचना व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करने की कोशिश करते हैं।

Daily Live Uttarakhand राज्य सूचना आयोग के इस निर्णय का स्वागत करता है और अपील करता है कि नागरिक RTI का प्रयोग सजगता, वैधानिकता और ज़िम्मेदारी के साथ करें।

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