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ईमानदार अफसरों पर सवाल क्यों?, कर्मेंद्र सिंह, वरुण चौधरी और अजय वीर का निलंबन न्याय या जल्दबाजी?, एडवोकेट अरुण भदौरिया ने जांच की पारदर्शिता पर उठाए सवाल, अधिकारियों की प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना की मांग

इन्तजार रजा हरिद्वार- ईमानदार अफसरों पर सवाल क्यों?,

कर्मेंद्र सिंह, वरुण चौधरी और अजय वीर का निलंबन न्याय या जल्दबाजी?,

एडवोकेट अरुण भदौरिया ने जांच की पारदर्शिता पर उठाए सवाल, अधिकारियों की प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना की मांग

इन्तजार रजा हरिद्वार | विशेष रिपोर्ट

Daily Live Uttarakhand 

नगर निगम हरिद्वार में भूमि खरीद के कथित घोटाले के चलते उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में तत्कालीन ज़िलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, नगर आयुक्त वरुण चौधरी, और एसडीएम अजय वीर को निलंबित कर दिया। परंतु इस निर्णय पर अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं, खासतौर पर उस जांच प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर, जिसके आधार पर इतनी बड़ी कार्रवाई की गई।

इन अधिकारियों के समर्थन में हरिद्वार के वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भदौरिया, एडवोकेट कमल भदौरिया, और LLB छात्र चेतन भदौरिया ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और मुख्य सचिव को पत्र लिखकर निलंबन आदेश को जनहित में वापस लेने की माँग की है।

जांच प्रक्रिया: पर जल्दबाज़ी, अस्पष्टता और अपूर्णता के आरोप

सराय क्षेत्र में भूमि खरीद के प्रकरण पर वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह चौहान द्वारा की गई जांच पर अधिवक्ताओं ने सवाल खड़े करते हुए कहा है कि यह पूरी प्रक्रिया अत्यंत जल्दबाज़ी में, अपूर्ण तथ्यों और अस्पष्ट आधारों पर की गई। इस जांच में न तो इन तीनों अधिकारियों के बैंक खातों में कोई संदिग्ध लेन-देन नहीं पाया गया और न ही इनके परिजनों या रिश्तेदारों से किसी प्रकार की राशि की बरामदगी हुई।

इसके बावजूद बिना ठोस साक्ष्यों और न्यायपूर्ण प्रक्रिया के इन अधिकारियों का निलंबन न केवल उनके मानसिक सम्मान को ठेस पहुँचाने वाला है, बल्कि प्रशासनिक सेवा में ईमानदारी की भावना को भी चोट पहुँचाने जैसा है।

अधिकारियों की सामाजिक प्रतिष्ठा पर संकट

इन तीनों अधिकारियों का नाम जब समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में नकारात्मक रूप से उछला, तो इससे न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत छवि को नुकसान पहुँचा बल्कि उनके परिवार, रिश्तेदार, सहयोगी अधिकारियों और अधीनस्थ कर्मचारियों में भी एक असहजता और अविश्वास का माहौल उत्पन्न हो गया।

जनता के बीच जिन अधिकारियों की छवि अब तक कर्तव्यनिष्ठ, अनुशासित और सुलभ प्रशासक की रही है, वे अब खुद को सामाजिक रूप से अलग-थलग और अपमानित महसूस कर रहे हैं।

क्या दोहराया जा रहा है 2021 की जांच का त्रासदीपूर्ण इतिहास?

एडवोकेट अरुण भदौरिया ने पत्र में वर्ष 2021 के कुंभ मेले में कोविड-19 काल में हुई कथित गड़बड़ियों की जांच का भी ज़िक्र किया, जिसमें तत्कालीन मेला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अर्जुन सिंह सेंगर को भी अपूर्ण जांच के आधार पर निलंबित कर दिया गया था।

वास्तव में, डॉ. सेंगर ने कोविड की परिस्थितियों में अनियमित भुगतान को रोककर राज्य सरकार को भारी नुकसान से बचाया था, लेकिन उन्हें ही जांच का बलि का बकरा बना दिया गया। चार साल तक लंबी जांच चली, प्रमोशन रुक गया और इस दौरान तनाव, सामाजिक कलंक और स्वास्थ्य समस्याओं से वे जूझते रहे। अंततः उन्हें क्लीन चिट मिल गई, लेकिन तब तक उनके करियर का सुनहरा समय समाप्त हो चुका था।

यह उदाहरण एक गंभीर चेतावनी है कि जल्दबाज़ी में की गई जांच कैसे एक ईमानदार अधिकारी के जीवन को तबाह कर सकती है।

कर्मेंद्र सिंह: जनहित के फैसलों के लिए जाने जाते हैं

जिलाधिकारी के रूप में कर्मेंद्र सिंह ने हरिद्वार में कुंभ मेला जैसे विशाल आयोजन के दौरान जिस तरह से प्रशासन को सजग और अनुशासित बनाए रखा, वह किसी से छुपा नहीं। उनका कार्यकाल हमेशा पारदर्शिता, समयबद्धता और जवाबदेही से जुड़ा रहा है।

उनका निलंबन यह संकेत देता है कि हमारे सिस्टम में कार्यशील, निडर और निष्पक्ष अधिकारियों के लिए कोई सुरक्षा कवच नहीं है।

वरुण चौधरी: स्मार्ट सिटी विज़न वाले अधिकारी

नगर आयुक्त के रूप में वरुण चौधरी ने हरिद्वार को गंदगी, ट्रैफिक जाम, अव्यवस्था और पारंपरिक ढांचे से निकालकर एक स्मार्ट शहरी व्यवस्था की दिशा में कार्य किया। उन्होंने निगम के कार्यों को डिजिटाइज़ किया, ठोस कचरा प्रबंधन योजनाओं को लागू किया, और नागरिकों को सेवाओं की पारदर्शी पहुंच सुनिश्चित की।

उन पर लगे आरोप उनके काम से मेल नहीं खाते, और इससे जनमानस में आक्रोश है।

अजय वीर पीसीएस अधिकारी: जनता के प्रिय एसडीएम सदर हरिद्वार 

एसडीएम सदर हरिद्वार अजय वीर एक ऐसे अधिकारी रहे हैं, जिनका जनता से सीधा संवाद रहा है। उनके कार्यालय के दरवाज़े हमेशा आम नागरिकों के लिए खुले रहते थे। उनकी कार्यशैली जनपक्षीय, सुलभ और संवेदनशील रही है।

आज उनके निलंबन से एक कड़ा संदेश गया है कि ईमानदारी की कीमत कभी-कभी चुकानी पड़ती है, चाहे आप दोषी हों या नहीं।

समाज का समर्थन, सबसे बड़ा प्रमाण

अधिवक्ता अरुण भदौरिया द्वारा उठाई गई आवाज़ अब सिर्फ एक कानूनी पत्र तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह एक जन आंदोलन का रूप लेने लगी है। हरिद्वार के वरिष्ठ नागरिक, वकील, समाजसेवी और पत्रकार इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या उत्तराखंड सरकार वाकई ईमानदार अधिकारियों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है?

एक स्पष्ट और निष्पक्ष पुनर्विचार की आवश्यकता

उत्तराखंड सरकार से यह अपेक्षा है कि वह इस पूरे प्रकरण में निष्पक्ष जांच कराए और जिन अधिकारियों के खिलाफ कोई वित्तीय लाभ या दुराचार साबित नहीं हुआ है, उनके सम्मान की पुनर्स्थापना करे।

उनका निलंबन सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवाओं में आने वाले हर युवा के लिए संदेह और भय की दीवार खड़ी करता है।

ईमानदारी को दंड नहीं, पुरस्कार मिलना चाहिए

कर्मेंद्र सिंह, वरुण चौधरी और अजय वीर — ये केवल तीन नाम नहीं, बल्कि उत्तराखंड प्रशासन की उस पीढ़ी के प्रतीक हैं, जो ईमानदारी, निष्ठा और पारदर्शिता के मूल्यों पर टिके हैं।

सरकार को चाहिए कि वह सत्य का सम्मान करे और जल्दबाज़ी में उठाए गए इस निर्णय पर दोबारा विचार करे। क्योंकि जिस समाज में ईमानदारी सज़ा बन जाए, वहाँ न्याय और लोकतंत्र दोनों ही खतरे में होते हैं।

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