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एआरटीओ कार्यालय में डिजिटल क्रांति की शुरुआत,, निखिल शर्मा ने खुद तैयार किया टोकन सॉफ्टवेयर, अब नहीं लगती लंबी कतारें,, ऑटोमेशन से बढ़ी पारदर्शिता, लोगों को मिल रही राहत

इन्तजार रजा हरिद्वार- एआरटीओ कार्यालय में डिजिटल क्रांति की शुरुआत,,
निखिल शर्मा ने खुद तैयार किया टोकन सॉफ्टवेयर, अब नहीं लगती लंबी कतारें,,
ऑटोमेशन से बढ़ी पारदर्शिता, लोगों को मिल रही राहत

इन्तजार रजा, हरिद्वार | Daily Live Uttarakhand

हरिद्वार के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (एआरटीओ) में इन दिनों एक अनूठा और सराहनीय बदलाव देखने को मिल रहा है। आमतौर पर सरकारी दफ्तरों में अव्यवस्था, लंबी कतारें और कर्मचारियों की बेरुखी जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं, लेकिन हरिद्वार के एआरटीओ निखिल शर्मा ने एक ऐसी पहल की है जो पूरे राज्य के लिए आदर्श बन सकती है।

यहां टोकन सिस्टम की शुरुआत की गई है, जो अब हर उस व्यक्ति की पहली पसंद बन गया है जो ड्राइविंग लाइसेंस, वाहन पंजीकरण, ट्रांसफर या अन्य परिवहन संबंधी सेवाओं के लिए दफ्तर आता है। यह पहल न सिर्फ टेक्नोलॉजी के बेहतर उपयोग का उदाहरण है, बल्कि एक अफसर की दूरदर्शिता और सेवा भावना को भी दर्शाती है।

कैसे काम करता है टोकन सिस्टम?

जैसे ही कोई नागरिक एआरटीओ ऑफिस आता है, उसे सबसे पहले एक रिसेप्शन पर जाना होता है। यहां उसे एक टोकन नंबर मिलता है जो उसके कार्य से संबंधित होता है — जैसे ड्राइविंग लाइसेंस, एनओसी, फिटनेस प्रमाणपत्र आदि। उस टोकन नंबर को वेटिंग एरिया में लगी बड़ी स्क्रीन पर दर्शाया जाता है। जब संबंधित काउंटर पर उस नंबर की बारी आती है, तो स्क्रीन पर अलर्ट आता है, और आवेदक सीधे वहीं पहुंच जाता है।

इससे पहले तक लोगों को काउंटर दर काउंटर भटकना पड़ता था, जानकारी की कमी के चलते परेशान होना पड़ता था और कई बार दलालों का सहारा लेना पड़ता था। अब पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और सुगम हो गई है।

सॉफ्टवेयर खुद बनाया, क्योंकि सिस्टम महंगा था

सबसे खास बात यह है कि इस टोकन व्यवस्था के लिए जो सॉफ्टवेयर इस्तेमाल हो रहा है, उसे किसी आईटी कंपनी ने नहीं बल्कि खुद एआरटीओ निखिल शर्मा ने तैयार किया है। दरअसल निखिल शर्मा कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं और उन्हें जब अपने दफ्तर की कार्यप्रणाली में सुधार की जरूरत महसूस हुई, तो उन्होंने इसकी तकनीकी जरूरत को समझा।

बाजार से जब उन्होंने टोकन मैनेजमेंट सिस्टम का कोटेशन मंगवाया तो पाया कि इसकी कीमत लाखों रुपये थी, जो एक सीमित संसाधनों वाले सरकारी दफ्तर के लिए संभव नहीं थी। ऐसे में उन्होंने तय किया कि वह खुद ही इस सिस्टम को विकसित करेंगे।

कुछ ही हफ्तों में उन्होंने एक प्रयोगात्मक प्रोग्राम तैयार किया, उसका परीक्षण किया और फिर इसे सफलतापूर्वक लागू कर दिया।

लाभार्थियों ने कहा- अब सरकारी दफ्तर का अनुभव बदला है

यह नया सिस्टम जनता के लिए कितना उपयोगी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जो लोग पहले यहां आने से कतराते थे, अब वे न सिर्फ खुद आ रहे हैं बल्कि दूसरों को भी सरकारी सिस्टम पर भरोसा करने की सलाह दे रहे हैं।

लाभार्थी नरेंद्र कश्यप बताते हैं,
“पहले यहां आने का नाम सुनकर ही सिर में दर्द हो जाता था। कतारें, चिल्लपों और कोई जवाब नहीं। अब टोकन लेकर बैठ जाते हैं, नंबर आता है, और आराम से काम हो जाता है। एआरटीओ साहब का यह प्रयास काबिले तारीफ है।”

एआरटीओ निखिल शर्मा बोले- “हर सरकारी कार्यालय को आधुनिक होना चाहिए”

निखिल शर्मा का मानना है कि सरकारी सेवाओं में देरी और असुविधा के पीछे सबसे बड़ा कारण सिस्टम की जड़ता है।
उनका कहना है,
“हम अक्सर सुनते हैं कि सरकारी दफ्तरों में काम नहीं होता, भ्रष्टाचार है या कर्मचारी सहयोग नहीं करते। लेकिन यदि अधिकारी खुद चाहें तो सिस्टम में बदलाव संभव है। मैं चाहता हूं कि हर कार्यालय टेक्नोलॉजी का उपयोग कर जनता को सुगमता दे। इससे पारदर्शिता भी बढ़ेगी और लोगों का भरोसा भी।”

उन्होंने कहा कि यह टोकन सिस्टम अभी शुरुआती स्तर पर है, आने वाले समय में इसे मोबाइल ऐप, ऑनलाइन टोकन बुकिंग और ई-संदेश जैसी सुविधाओं से भी जोड़ा जाएगा।


हरिद्वार बना मिसाल, दूसरे ज़िलों में भी हो सकता है लागू

हरिद्वार में एआरटीओ कार्यालय का यह बदलाव अन्य जिलों के लिए प्रेरणा बन सकता है। जहां अधिकांश स्थानों पर अभी भी मैनुअल सिस्टम और कागजी कार्रवाई का झंझट चलता है, वहां इस तरह की पहल न सिर्फ नागरिकों को राहत देगी बल्कि कर्मचारियों की कार्यक्षमता भी बढ़ाएगी।

राज्य परिवहन विभाग को चाहिए कि इस मॉडल को एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अपनाए और फिर पूरे उत्तराखंड में लागू करने की दिशा में काम करे। इसके लिए निखिल शर्मा जैसे टेक-सेवी अधिकारियों की जरूरत होगी, जो नौकरशाही को सेवा का माध्यम मानते हैं, बोझ नहीं।


निष्कर्ष: एक छोटी पहल, बड़ा असर

हरिद्वार एआरटीओ कार्यालय में टोकन सिस्टम कोई हाई-फाई या करोड़ों का प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि यह एक साधारण लेकिन व्यावहारिक पहल है। यह दिखाता है कि अगर एक अधिकारी अपनी जिम्मेदारी को सही मायनों में समझे, तो संसाधनों की कमी भी बाधा नहीं बनती।

निखिल शर्मा की यह पहल न सिर्फ तकनीकी रूप से उत्कृष्ट है, बल्कि यह इस बात का उदाहरण भी है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति और जनता की सेवा के प्रति समर्पण अगर हो, तो कोई भी सरकारी दफ्तर एक आदर्श सेवा केंद्र बन सकता है।


📌 महत्वपूर्ण बिंदु एक नज़र में:

  • ✔️ टोकन सिस्टम से लोगों को इंतजार और भ्रम से राहत
  • ✔️ एआरटीओ निखिल शर्मा ने खुद तैयार किया सॉफ्टवेयर
  • ✔️ पारदर्शिता और कार्यक्षमता में वृद्धि
  • ✔️ लाभार्थियों को मिला सीधा लाभ
  • ✔️ अन्य जिलों में भी लागू करने की मांग

▶ निखिल शर्मा, एआरटीओ हरिद्वार:
“हमारी कोशिश है कि हर व्यक्ति को यहां आने पर सहज अनुभव हो। यह सिस्टम उसी दिशा में एक छोटा लेकिन ठोस कदम है।”

▶ नरेंद्र कश्यप, लाभार्थी:
“पहली बार ऐसा लगा कि सरकारी दफ्तर भी अच्छे से काम कर सकते हैं। पहले यहां बहुत परेशानी होती थी, अब सब कुछ आसान है।”


रिपोर्ट – इन्तजार रजा, हरिद्वार
Daily Live Uttarakhand के लिए विशेष रिपोर्ट

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