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केदारनाथ धाम में मवेशियों पर अत्याचार और मानवाधिकार हनन पर हरिद्वार से उठी आवाज़,, एडवोकेट भदोरिया परिवार ने राज्य मानवाधिकार आयोग में दायर की याचिका, प्रशासन को ठहराया जिम्मेदार,, पूर्व में 214 खच्चरों की मौत, SOP की अनदेखी और पशु-श्रमिक दोनों के साथ हो रहा क्रूर व्यवहार

इन्तजार रजा हरिद्वार-केदारनाथ धाम में मवेशियों पर अत्याचार और मानवाधिकार हनन पर हरिद्वार से उठी आवाज़,,

एडवोकेट भदोरिया परिवार ने राज्य मानवाधिकार आयोग में दायर की याचिका, प्रशासन को ठहराया जिम्मेदार,,

पूर्व में 214 खच्चरों की मौत, SOP की अनदेखी और पशु-श्रमिक दोनों के साथ हो रहा क्रूर व्यवहार

हरिद्वार/देहरादून। रिपोर्ट: इंतज़ार रज़ा

उत्तराखंड के पवित्र केदारनाथ धाम में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन को पहुंचते हैं, लेकिन इस धार्मिक यात्रा के पीछे छिपे कड़वे और अमानवीय सच को हरिद्वार के भदोरिया परिवार ने बेनकाब किया है। अधिवक्ता अरुण भदोरिया, अधिवक्ता कमल भदोरिया और विधि छात्र चेतन भदोरिया ने राज्य मानवाधिकार आयोग उत्तराखंड में एक याचिका दायर कर जिला अधिकारी रुद्रप्रयाग, सचिव पर्यटन और उत्तराखंड शासन को कटघरे में खड़ा किया है।

याचिका में साफ आरोप लगाया गया है कि केदारनाथ यात्रा मार्ग पर घोड़ों-खच्चरों के साथ क्रूरता की पराकाष्ठा हो रही है, और साथ ही, श्रमिकों एवं पशुपालकों के मानवाधिकारों का भी उल्लंघन किया जा रहा है। यह याचिका न सिर्फ एक जन चेतना है, बल्कि यह मांग करती है कि अब इन अमानवीय व्यवहारों पर अंकुश लगाया जाए।

नाक में गांजे का धुआं और SOP की धज्जियां

याचिका में जुलाई 2023 की एक वायरल वीडियो को मुख्य साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें दो व्यक्तियों को एक मयूल (खच्चर) के नाक में गांजे का धुआं डालते हुए देखा गया। इस क्रूर हरकत का उद्देश्य जानवर को नशे में रखकर उसका दर्द कम करना और उसे अधिक समय तक काम पर लगाने की क्षमता पैदा करना था।

याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि यह कार्य “Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960” का घोर उल्लंघन है। यह न केवल पशु के साथ क्रूरता है बल्कि धार्मिक यात्रा के नाम पर एक बेहद अमानवीय कृत्य भी है।

इतना ही नहीं, SOP (Standard Operating Procedure) के अनुसार, एक मयूल को एक दिन में अधिकतम एक चक्कर लगाने की अनुमति है, लेकिन वर्तमान में दो-तीन चक्कर लगातार लगवाए जा रहे हैं। इस अनियमितता और लापरवाही का ही नतीजा है कि पूर्व वर्ष 2022 में 60 और 2023 में 214 मवेशियों की मौत दर्ज की गई। वर्ष 2025 की शुरुआत में ही अब तक दर्जनों खच्चर मर चुके हैं।

मृत पशुओं का सड़क किनारे और नदी में निपटान

याचिका में यह भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि जब खच्चर या घोड़े मर जाते हैं, तो प्रशासन की ओर से उनका वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से निस्तारण नहीं किया जाता। कई बार मृत जानवरों को मार्ग पर ही छोड़ दिया जाता है, या सीधे मंदाकिनी नदी में फेंक दिया जाता है।

इस वजह से नदी का जल प्रदूषित हो रहा है और वह पानी आसपास के ग्रामीणों द्वारा उपयोग किया जा रहा है, जिससे आम नागरिकों के स्वास्थ्य के अधिकारों का भी उल्लंघन हो रहा है। यह स्थिति न सिर्फ पशु कल्याण बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय नियमों की भी अवहेलना है।

श्रमिकों की हालत भी बद से बदतर

सिर्फ मवेशी ही नहीं, बल्कि उनके साथ काम करने वाले पशुपालक, हैंडलर और मजदूर भी प्रशासनिक अनदेखी का शिकार हो रहे हैं। यात्रा मार्ग पर कोई विश्राम गृह नहीं है, गर्म पानी की व्यवस्था नहीं है, चिकित्सकीय जांच की कोई सुविधा नहीं है। इन श्रमिकों से 18-20 घंटे तक लगातार काम लिया जा रहा है, चाहे वह कड़ाके की ठंड हो या भीषण गर्मी।

याचिका में यह बताया गया है कि यह व्यवहार मजदूरों के मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। मूलभूत सुविधाएं जैसे भोजन, विश्राम, शेड, स्वास्थ्य जांच और औषधीय सुविधा नहीं होना इस बात का प्रमाण है कि केदारनाथ यात्रा व्यवस्थाओं में श्रमिकों को केवल श्रमशक्ति मानकर शोषण किया जा रहा है।

मूलभूत मांगें और सुधार की पहल

हरिद्वार के भदोरिया परिवार की याचिका में निम्नलिखित महत्वपूर्ण मांगें की गई हैं:

  1. मवेशियों पर नशा देने वाले मालिकों पर सख्त कार्रवाई की जाए – जैसे कि एफआईआर दर्ज कर उन्हें यात्रा से ब्लैकलिस्ट किया जाए।
  2. पंजीकृत हैंडलर ही यात्रा मार्ग पर कार्य करें – अवैध या अस्थायी पशु-हैंडलर पर प्रतिबंध लगे।
  3. SOP का पूर्ण पालन सुनिश्चित किया जाए – एक दिन में एक ही चक्कर, मार्ग पर शेड, पानी, आराम स्थल, पशु चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था अनिवार्य हो।
  4. मवेशियों पर ढोने योग्य वजन की सीमा तय की जाए – और उसका पालन नियमित निगरानी से सुनिश्चित किया जाए।
  5. मृत जानवरों के निस्तारण के लिए शासन एक सुरक्षित और पृथक स्थान चिन्हित करे – जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा हो सके।
  6. श्रमिकों की कार्य दशा में सुधार – उन्हें मानवाधिकारों के अनुरूप सुविधाएं दी जाएं और मौसम के अनुसार विशेष सुरक्षा उपाय अपनाए जाएं।
  7. कठोर प्रशासनिक कार्रवाई की जाए – जिला प्रशासन और संबंधित विभागीय अधिकारियों की जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई की जाए।

यात्रा व्यवस्था में सुधार की सख्त ज़रूरत

केदारनाथ धाम की यात्रा न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि राज्य के पर्यटन और धार्मिक छवि के लिए भी महत्वपूर्ण है। लेकिन यदि इस यात्रा की आड़ में मूक प्राणियों और श्रमिकों के साथ ऐसी क्रूरता होती रही, तो यह राज्य की गरिमा के विपरीत होगा।

भदोरिया परिवार की याचिका एक चेतावनी है कि यदि अब भी समय रहते व्यवस्था नहीं सुधारी गई, तो आने वाले समय में यह मामला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी मानव और पशु अधिकारों के उल्लंघन के उदाहरण के रूप में उभर सकता है।

धर्म और मानवता का संतुलन आवश्यक

आस्था और व्यवस्था का संतुलन बनाना हर प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। अगर केदारनाथ जैसे दिव्य स्थल पर भी मवेशियों की हत्या, श्रमिकों का शोषण और पर्यावरण की अनदेखी हो रही है, तो यह किसी भी धार्मिक समाज के लिए चिंताजनक विषय है। अब देखना यह है कि उत्तराखंड सरकार इस याचिका पर क्या रुख अपनाती है—सुधार या मौन?


रिपोर्ट: इन्तजार रज़ा, विशेष संवाददाता – Daily Live Uttarakhand

 

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